गाँव-नगर में हुई मुनादी
हाकिम आज निवाले देंगे
सूख गयी आशा की खेती
घर-आँगन अँधियारा बोती
छप्पर से भी फूस झर रहा
द्वार खड़ी कुतिया है रोती
जिन आँखों की ज्योति गई है
उनको आज दियाले देंगे
सर्द हवाएँ देह खँगालें
तपन सूर्य की माँस जारती
गुदड़ी में लिपटी रातें भी
इस मन को बस आह बाँटती
आस-भरे पसरे हाथों को
मस्जिद और शिवाले देंगे
चूल्हे हैं अब राख झाड़ते
बासन भी सब चमक रहे हैं
हरियाई सी एक लता है
फूल कहीं पर महक रहे हैं
मासूमों को पता नहीं है
वादे और हवाले देंगे
सर्द हवाएँ देह खँगालें
जवाब देंहटाएंतपन सूर्य की माँस जारती
गुदड़ी में लिपटी रातें भी
इस मन को बस आह बाँटती
आस-भरे पसरे हाथों को
मस्जिद और शिवाले देंगे
बहुत ही सुन्दर अर्थपूर्ण!
बहुत आभार आपका
हटाएंस्ंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंआभार
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