आज वारिद रो रहे हैं !
कुटिल जग की कालिमा निज अश्रुजल
से धो रहे हैं !
आज वारिद रो रहे हैं !
देख कर संतप्त भू को पाप
ज्वाला में सुलगते,
ह्रदय की सद्भावनाएँ वासनाओं
में बदलते,
विकल होकर आज अपने धैर्य
से च्युत हो रहे हैं !
आज वारिद रो रहे हैं !
ध्वंस लीला नीतियों की बढ़
रही जो आज भू पर,
देख ताण्डव नृत्य अत्याचार
का सब लोक ऊपर,
स्वयं होकर दुखित अपना आज
आपा खो रहे हैं !
आज वारिद रो रहे हैं !
बिलखते सुकुमार बालक कर रहे
उनको विकल अति,
पीड़ितों की अश्रुधारा रुद्ध
करती प्राण की गति,
सांत्वना के हेतु करूणा जल
निरंतर ढो रहे हैं !
आज वारिद रो रहे हैं !
ओज़स्वी ... भावपूर्ण रचना है किरण जी की ... बधाई ...
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