दुनिया रङ्गीन दिखे
इसलिए तो नहीं भर लेते रङ्ग आँखों में
उदास रातों की कुछ उदास यादें
आँसू बन के न उतरें
तो खुद-ब-खुद रङ्गीन हो जाती है दुनिया
दुनिया तब भी रङ्गीन हो जाती है
जब हसीन लम्हों के दरख़्त
जड़ें बनाने लगते हैं
दिल की कोरी ज़मीन पर
क्योंकि
उसके साए में उगे रङ्गीन सपने
जगमगाते हैं उम्र भर
सच पूछो तो
दुनिया तब भी रङ्गीन होती है
जब
तेरे एहसास के कुछ कतरे लेकर
फूल फूल डोलती हैं
रङ्ग-बिरङ्गी तितलियाँ
ओर उनके पीछे भागते
कुछ मासूम बच्चे
रङ्ग-बिरङ्गे कपड़ों में
पूजा की थाली लिए
गुलाबी साड़ी और आसमानी शाल ओढ़े
तुम भी तो करती हो चहल-कदमी
रोज़
मेरे ज़ेहन में
दुनिया इसलिए भी तो रङ्गीन होती है
प्रेम की थिरकन हो आँखों में
जवाब देंहटाएंतो दुनिया रंगीन होती है ....
दिगम्बर नासवा जी इस बेहतरीन शब्दचित्र के लिये दाद हाज़िर है ! काव्य कला कौशल खुल कर बोल रहा है !! बहुत पहले धर्म्युग मे ऐसी स्तरीय कवितायें पढने को मिलती थीं – साधुवाद !! –मयंक
जवाब देंहटाएं