तुम जो सदा कहा करती थीं
मीत सदा मेरे बन रहना
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों
मैंने तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||
पुरुष-धर्म से जो गिर
जाता,
अवगुण युक्त वही पति
करता;
पतिव्रत धर्म-हीन, नारी को |
अर्थ राज्य छल और दंभ
हित,
नारी का प्रयोग जो
करता;
वह नर कब निज धर्म
निभाता ?
" परम व्योम की इस अशान्ति से ,
द्वंद्व भाव कण-कण में उभरा ;
हलचल से गति मिली कणों को ,
अप:तत्व में साम्य जगत के |
गति से आहत नाद बने ,फिर -
शब्द वायु ऊर्जा जल और मन ||"
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