29 मार्च 2014

तीन अगीत - डा. श्याम गुप्त

तुम जो सदा कहा करती थीं
मीत सदा मेरे बन रहना
             तुमने ही मुख फेर लिया क्यों 
  मैंने  तो कुछ नहीं कहा था |
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको |
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ||     

पुरुष-धर्म से जो गिर जाता,
अवगुण युक्त वही पति करता;
पतिव्रत धर्म-हीननारी को |
अर्थ राज्य छल और दंभ हित,
नारी का प्रयोग जो करता;
वह नर कब निज धर्म निभाता ?

परम व्योम की इस अशान्ति से ,
द्वंद्व भाव कण-कण में उभरा ;
हलचल से गति मिली कणों को ,
अप:तत्व  में  साम्य जगत के |
गति से  आहत नाद बने ,फिर -
शब्द वायु ऊर्जा जल और मन ||"

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