स्त्री - पुरूष
समान रूप से
एक दूसरे के पूरक
सुनते आ रहे हैं
न जाने कब से
लेकिन क्या सच में ही
दोनों में कोई समानता है?
एक के बिना
दूसरा अधूरा है
फिर भी कई मायनों में
पुरूष पूरे का पूरा है
अर्धांगनी नारी ही कहलाती
है
पुरूष बलात
अपना हक जताता है
और नारी अपने मन से
समर्पित भी नही हो पाती है
नारी भार्या बन
सम्मानित होती है
माँ बन कर
गौरवान्वित होती है
लेकिन जब
परित्यक्ता होती है तो
लोलुप निगाहें बीन्ध डालती
हैं
उसकी अस्मिता को
और अगर कोई
बलात्कार से पीड़ित हो तो
सबके लिए घृणित हो जाती है
यहाँ तक कि
ख़ुद का दोष न होते हुए भी
अपनी ही नज़रों से गिर जाती
है ।
सामाजिक मूल्यों
खोखले आदर्शों
और थोथे अंधविश्वासों के
बीच
नारी न जाने कब से
प्रताडित और शोषित
होती आ रही है
आज नारी को ख़ुद में
बदलाव लाना होगा
उसको संघर्ष के लिए
आगे आना होगा
पुरूष आकर्षण बल से
मुक्त हो
ख़ुद को सक्षम बनाना होगा
।
और फिर एक ऐसे समाज की
रचना होगी
जिसमें नर और नारी की
अलग - अलग नही
बल्कि सम्मिलित संरचना
निखर कर आएगी
और यह कृति
अर्धनारीश्वर कहलाएगी .
बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएं---सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंपर 'अर्धनारीश्वर' किस देवता का नाम है ....शिव का ..पुरुष का ..
शिव के समान पुरुष ।
जवाब देंहटाएंनारी पूरी है, जब खुद की पूर्णता मान लेगी, अपने को सम्मान देगी तो लोलुप निगाहों की रौशनी छीन लेगी
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना बुधवार 01 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति !
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