उफ़ ये थर्टीफर्स्टेनिया| हर साल आता है और गुजर जाता है| ये भी जैसे कि एक पर्व बन चुका है, होली दीवाली की तरह| अधिकतर लोगों से जुड़ा होता है ये अलग अलग स्वरूपों में|
इस बार की होली यादगार होली रही| समस्या पूर्ति मंच पर 'होली का त्यौहार' बहुत जोरदार तरीके से मना| वातायन पर भी जहाँ एक ओर हिन्दी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरीशचंद्र जी की ग़ज़ल पढ़ने को मिली वहीं दुष्यंत कुमार और धर्मवीर भारती जी के बीच का ग़जलिया पत्राचार भी उन दिनों की साहित्यिक नोंक झोंक की यादें ताज़ा करा गया| ठाले बैठे पर तो लालम लाल रंग थे ही|
आप सभी ने इस होली का मज़ा कइयों गुना बढ़ा दिया| वैसे तो हम में से ज़्यादातर, अभी क्रिकेट के महाकुंभ यानि कि वर्ल्ड कप के फाइनल मेच के ख़यालों में खोए हुए हैं उस के बाद भारतीय नववर्ष / संवत्सर आ रहा है| कई सारे दफ़्तरों में तो शनि / रवि / सोम छुट्टियों वाला माहौल है| उस के बाद मंगलवार ओन्वार्ड्स हम लोग रेगयुलर लाइफ की पटरी पर लौटेंगे, मोस्ट प्रोबेबली|
लगे हाथों कुछ बातों की शुरुआत कर देते हैं| जैसा क़ि हमने पहले भी व्यक्त किया क़ि अगली समस्या पूर्ति रोला छंद पर होने वाली है सो आइए बेसिक बातों की शुरुआत करते हैं रोला छंद की, बहुत ही संक्षेप में; और सभी विद्वत्जनों से फिर से सविनय अनुरोध करते हैं क़ि वे अपने अपने आलेख [रोला छन्द पर] प्रस्तुत करने की कृपा करें| उस के बाद हम घोषणा करेंगे समस्या पूर्ति की पंक्ति की|
रोला छंद
१. चार पंक्तियों वाला होता है रोला छंद
२. रोला छन्द की हर पंक्ति दो भागों में विभक्त होती है
३. रोला छन्द की हर पंक्ति के पहले भाग में ११ मात्रा अंत में गुरु लघु [२१] या लघु लघु लघु [१११] अपेक्षित
४. रोला छन्द की हर पंक्ति के दूसरे भाग में १३ मात्रा अंत में गुरु गुरु [२२] / लघु लघु गुरु [११२] या लघु लघु लघु लघु [११११] अपेक्षित| कई सारे विद्वानों का मत है क़ि रोला की पंक्ति की समाप्ति गुरु गुरु [२२] से ही होनी चाहिए|
५. रोला छन्द की किसी भी पंक्ति की शुरुआत में लघु गुरु लघु [१२१] के प्रयोग से बचना चाहिए, इस से लय में व्यवधान उत्पन्न होता है|
रोला छन्द के कुछ उदाहरण:-
हिंद युग्म - दोहा गाथा सनातन से साभार:-:-
नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है.
२२११ ११२१=११ / १११ ११ ११ २११२ = १३
सूर्य-चन्द्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है.
२१२१ ११ १११=११ / २१२ २२११२ = १३
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारा-मंडल हैं
११२ २१ १२१=११ / २१ २२ २११२ = १३
बंदीजन खगवृन्द, शेष-फन सिंहासन है.
२२११ ११२१ =११ / २१११ २२११२ = १३
शिवकाव्य.कोम से साभार:-
अतल शून्य का मौन, तोडते - कौन कहाँ तुम|
१११ २१ २ २१ = ११ / २१२ २१ १२ ११ = १३
दया करो कुछ और, न होना मौन यहाँ तुम|
१२ १२ ११ २१ = ११ / १ २२ २१ १२ ११ = १३
नव जीवन संचार, करो , फिर से तो बोलो|
११ २११ २२१ = ११ / १२ ११ २ २ २२ = १३
तृषित युगों से श्रवण, अहा अमरित फिर घोलो||
१११ १२ २ १११ = ११ / १२ १११११ ११ २२ = १३
रूपचंद्र शास्त्री मयंक जी के ब्लॉग उच्चारण से साभार:-
समझो आदि न अंत, खिलेंगे सुमन मनोहर|
११२ २१ १ २१ = ११ / १२२ १११ १२११ = १३
रखना इसे सँभाल, प्यार अनमोल धरोहर|
११२ १२ १२१ = ११ / २१ ११२१ १२११ = १३
कवि श्रेष्ठ श्री मैथिली शरण गुप्त जी द्वारा रचित साकेत का द्वादश सर्ग तो रोला छन्द में ही है और उस की शुरुआती पंक्तियों पर भी एक नज़र डालते हैं:-
ढाल लेखनी सफल, अंत में मसि भी तेरी
२१ २१२ १११ = ११ / २१ २ ११ २ २२ = १२
तनिक और हो जाय, असित यह निशा अँधेरी
१११ २१ २ २१ = ११ / १११ ११ १२ १२२ = १३
इसी रोला छंद की तीसरी और चौथी पंक्तियाँ खास ध्यान देने योग्य हैं:-
ठहर तभी, क्रिश्णाभिसारिके, कण्टक कढ़ जा
१११ १२ २२१२१२ = १६ / २११ ११ २ = ८
बढ़ संजीवनि आज, मृत्यु के गढ़ पर चढ़ जा
११ २२११ २१ = ११ / २१ २ ११ ११ ११ २ = १३
तीसरी पंक्ति में यदि यति को प्रधान्यता दी जाए तो यति आ रही है १६ मात्रा के बाद| कुल मात्रा १६+८=२४ ही हैं| परंतु यदि हम 'क्रिष्णाभिसारिके' शब्द का संधि विच्छेद करते हुए पढ़ें तो यूँ पाते हैं:-
ठहर तभी क्रिश्णाभि-सारिके कण्टक कढ़ जा
१११ १२ २२१ = ११ / २१२ २११ ११ २ = १३
अब कुछ अपने मन से| छंद रचना को ले कर लोगों में फिर से जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से एकत्रित हो रहे हैं हम और आप यहाँ पर| हम में से कई सारे न सिर्फ़ बहुत ही सफलता से ग़ज़ल कह रहे हैं बल्कि उनकी तख्तियों को आसानी से समझ भी जाते हैं| एक्जेक्टली शायद न भी हो, पर कुछ कुछ ये नीचे दिए गये वज्ञ [काल्पनिक] भी रोला छंद लिखने में मदद कर सकते है, यथा:-
अपना तो है काम, छंद की बातें करना
फइलातुन फइलात फाइलातुन फइलातुन
२२२ २२१ = ११ / २१२२ २२२ = १३
भाषा का सौंदर्य, सदा सर चढ़ के बोले
फाईलुन मफऊलु / फईलुन फइलुन फइलुन
२२२ २२१ = ११ / १२२ २२ २२ = १३
इस बार की होली यादगार होली रही| समस्या पूर्ति मंच पर 'होली का त्यौहार' बहुत जोरदार तरीके से मना| वातायन पर भी जहाँ एक ओर हिन्दी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरीशचंद्र जी की ग़ज़ल पढ़ने को मिली वहीं दुष्यंत कुमार और धर्मवीर भारती जी के बीच का ग़जलिया पत्राचार भी उन दिनों की साहित्यिक नोंक झोंक की यादें ताज़ा करा गया| ठाले बैठे पर तो लालम लाल रंग थे ही|
आप सभी ने इस होली का मज़ा कइयों गुना बढ़ा दिया| वैसे तो हम में से ज़्यादातर, अभी क्रिकेट के महाकुंभ यानि कि वर्ल्ड कप के फाइनल मेच के ख़यालों में खोए हुए हैं उस के बाद भारतीय नववर्ष / संवत्सर आ रहा है| कई सारे दफ़्तरों में तो शनि / रवि / सोम छुट्टियों वाला माहौल है| उस के बाद मंगलवार ओन्वार्ड्स हम लोग रेगयुलर लाइफ की पटरी पर लौटेंगे, मोस्ट प्रोबेबली|
लगे हाथों कुछ बातों की शुरुआत कर देते हैं| जैसा क़ि हमने पहले भी व्यक्त किया क़ि अगली समस्या पूर्ति रोला छंद पर होने वाली है सो आइए बेसिक बातों की शुरुआत करते हैं रोला छंद की, बहुत ही संक्षेप में; और सभी विद्वत्जनों से फिर से सविनय अनुरोध करते हैं क़ि वे अपने अपने आलेख [रोला छन्द पर] प्रस्तुत करने की कृपा करें| उस के बाद हम घोषणा करेंगे समस्या पूर्ति की पंक्ति की|
रोला छंद
१. चार पंक्तियों वाला होता है रोला छंद
२. रोला छन्द की हर पंक्ति दो भागों में विभक्त होती है
३. रोला छन्द की हर पंक्ति के पहले भाग में ११ मात्रा अंत में गुरु लघु [२१] या लघु लघु लघु [१११] अपेक्षित
४. रोला छन्द की हर पंक्ति के दूसरे भाग में १३ मात्रा अंत में गुरु गुरु [२२] / लघु लघु गुरु [११२] या लघु लघु लघु लघु [११११] अपेक्षित| कई सारे विद्वानों का मत है क़ि रोला की पंक्ति की समाप्ति गुरु गुरु [२२] से ही होनी चाहिए|
५. रोला छन्द की किसी भी पंक्ति की शुरुआत में लघु गुरु लघु [१२१] के प्रयोग से बचना चाहिए, इस से लय में व्यवधान उत्पन्न होता है|
रोला छन्द के कुछ उदाहरण:-
हिंद युग्म - दोहा गाथा सनातन से साभार:-:-
नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है.
२२११ ११२१=११ / १११ ११ ११ २११२ = १३
सूर्य-चन्द्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है.
२१२१ ११ १११=११ / २१२ २२११२ = १३
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारा-मंडल हैं
११२ २१ १२१=११ / २१ २२ २११२ = १३
बंदीजन खगवृन्द, शेष-फन सिंहासन है.
२२११ ११२१ =११ / २१११ २२११२ = १३
शिवकाव्य.कोम से साभार:-
अतल शून्य का मौन, तोडते - कौन कहाँ तुम|
१११ २१ २ २१ = ११ / २१२ २१ १२ ११ = १३
दया करो कुछ और, न होना मौन यहाँ तुम|
१२ १२ ११ २१ = ११ / १ २२ २१ १२ ११ = १३
नव जीवन संचार, करो , फिर से तो बोलो|
११ २११ २२१ = ११ / १२ ११ २ २ २२ = १३
तृषित युगों से श्रवण, अहा अमरित फिर घोलो||
१११ १२ २ १११ = ११ / १२ १११११ ११ २२ = १३
रूपचंद्र शास्त्री मयंक जी के ब्लॉग उच्चारण से साभार:-
समझो आदि न अंत, खिलेंगे सुमन मनोहर|
११२ २१ १ २१ = ११ / १२२ १११ १२११ = १३
रखना इसे सँभाल, प्यार अनमोल धरोहर|
११२ १२ १२१ = ११ / २१ ११२१ १२११ = १३
कवि श्रेष्ठ श्री मैथिली शरण गुप्त जी द्वारा रचित साकेत का द्वादश सर्ग तो रोला छन्द में ही है और उस की शुरुआती पंक्तियों पर भी एक नज़र डालते हैं:-
ढाल लेखनी सफल, अंत में मसि भी तेरी
२१ २१२ १११ = ११ / २१ २ ११ २ २२ = १२
तनिक और हो जाय, असित यह निशा अँधेरी
१११ २१ २ २१ = ११ / १११ ११ १२ १२२ = १३
इसी रोला छंद की तीसरी और चौथी पंक्तियाँ खास ध्यान देने योग्य हैं:-
ठहर तभी, क्रिश्णाभिसारिके, कण्टक कढ़ जा
१११ १२ २२१२१२ = १६ / २११ ११ २ = ८
बढ़ संजीवनि आज, मृत्यु के गढ़ पर चढ़ जा
११ २२११ २१ = ११ / २१ २ ११ ११ ११ २ = १३
तीसरी पंक्ति में यदि यति को प्रधान्यता दी जाए तो यति आ रही है १६ मात्रा के बाद| कुल मात्रा १६+८=२४ ही हैं| परंतु यदि हम 'क्रिष्णाभिसारिके' शब्द का संधि विच्छेद करते हुए पढ़ें तो यूँ पाते हैं:-
ठहर तभी क्रिश्णाभि-सारिके कण्टक कढ़ जा
१११ १२ २२१ = ११ / २१२ २११ ११ २ = १३
अब कुछ अपने मन से| छंद रचना को ले कर लोगों में फिर से जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से एकत्रित हो रहे हैं हम और आप यहाँ पर| हम में से कई सारे न सिर्फ़ बहुत ही सफलता से ग़ज़ल कह रहे हैं बल्कि उनकी तख्तियों को आसानी से समझ भी जाते हैं| एक्जेक्टली शायद न भी हो, पर कुछ कुछ ये नीचे दिए गये वज्ञ [काल्पनिक] भी रोला छंद लिखने में मदद कर सकते है, यथा:-
अपना तो है काम, छंद की बातें करना
फइलातुन फइलात फाइलातुन फइलातुन
२२२ २२१ = ११ / २१२२ २२२ = १३
भाषा का सौंदर्य, सदा सर चढ़ के बोले
फाईलुन मफऊलु / फईलुन फइलुन फइलुन
२२२ २२१ = ११ / १२२ २२ २२ = १३
रोला छन्द संबन्धित कुछ अन्य उदाहरणों के लिए यहाँ पर क्लिक करें :-
तख्तियों के जानकार इस बारे में और भी बहुत कुछ हम लोगों से साझा कर सकते हैं|
बहुत लंबा न खींचते हुए फिलहाल यहाँ विराम लेते हैं और इंतेज़ार करते हैं आप लोगों के विचारों का| कई सारे लोग सोनेट और रुबाई को भी रोला से जोड़ते हुए बातें करते हैं.......................................
बहुत लंबा न खींचते हुए फिलहाल यहाँ विराम लेते हैं और इंतेज़ार करते हैं आप लोगों के विचारों का| कई सारे लोग सोनेट और रुबाई को भी रोला से जोड़ते हुए बातें करते हैं.......................................
बहुत बढ़िया .....
जवाब देंहटाएंहम भी आजमाते हैं ..
अच्छी जानकारी , आभार आपका।
जवाब देंहटाएंACHCHHEE JANKAAREE DENE KE LIYE AAPKO BADHAAEE
जवाब देंहटाएंAUR SHUBH KAMNA .
नवीन जी...आपने यह ब्लॉग में जिस तरह से यह ज्ञानवर्धक और जीवंत मतलब जहाँ हम सीख कर लिख भेज भी सकते है... ऐसे ज्ञान भरे ब्लॉग से काफी लोगो को जानकारी हासिल हो रही है...आपका सहृदय आभार ...
जवाब देंहटाएंचलो भैया इसी बहाने हम भी कोशिश करते हैं. नवीन भाई, कान पकड़कर लिखवाते हैं, ये बहुत अच्छी बात है नहीं तो इन विधाओं को तो जैसे लोग भूलते जा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंआपने बहुत शिद्दत से जानकारी पेश की है ...बहुत कुछ सिखने को मिला यहाँ ...इन्हें भी प्रयोग करके देखते हैं ..आपका शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआप सभी की टिप्पणियों को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा| कुछ अन्य उदाहरण देखने के लिए यहाँ पधारिये| http://thalebaithe.blogspot.com/2011/04/blog-post.html
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व ज्ञानवर्धक पोस्ट .....इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई मित्र नवीन जी .......
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अंबरीश भाई
जवाब देंहटाएंआदरणीय नवीन सी. चतुर्वेदी, जी
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
आपका आभार मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए ...आशा आपका मार्गदर्शन यूँ ही मिलता रहेगा ..!
आप उपयोगी कार्य कर रहे हैं!
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी आप जैसे अग्रजों के सहयोग के बिना यह संभव नहीं है| साहित्य रसिकों से समय पर मिलने वाले वाले सहयोग के कारण ही आज हम तीसरी समस्या पूर्ति की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं|
जवाब देंहटाएंमैं इस विषय में निराशा की स्थिति तो उत्पन्न नहीं करना चाहता लेकिन हिन्दी के छंदों की तुलना ग़ज़ल की बह्र से करना एक निरर्थक प्रयास है। इसका स्पष्ट कारण है छंद-प्रकृति। जो छंद चरणवार कुल मात्रा पर निर्धारित होता है उसमें मात्रिक क्रम की स्वच्छंदता रहती है जबकि ग़ज़ल की बह्र में मात्रिक क्रम में प्रत्येक स्थान पर लघु-गुरू निर्धारित रहते हैं।
जवाब देंहटाएंतिलक भाई साब यहाँ रोला छन्द की तुलना बहर से नहीं की जा रही| बल्कि उन मित्रों के लिए, जो ग़ज़ल के मीटर को जल्दी से समझ जाते हैं, रोला छन्द को ले कर एक विकल्प भर सुझाया है|
जवाब देंहटाएंउदाहरण देखिए, सिर्फ़ उदाहरण - तुलना नहीं:-
फइलातुन फइलात फाइलातुन फइलातुन [सिर्फ़ एक काल्पनिक मीटर]
२२२ २२१ २१२२ २२२
[रोला] छन्द गणना के अनुसार:-
हार गये जो टॉस
२१ १२ २ २१ = ११
किस लिए उसे नकारा
११ १२ १२ १२२ = १३
भद्रजनों की रीत
२११२ २ २१ = ११
नहीं ये संगाकारा
१२ २ २२२२ = १३
ग़ज़ल के प्रचलित मीटर के मुताबिक [काल्पनिक]:-
हार गये जो टॉस
२१ १२ २ २१ = ११
किस लिए उसे नकारा
२ १२ १२ १२२ = १३
भद्रजनों की रीत
२११२ २ २१ = ११
नहीं ये संगाकारा
१२ २ २२२२ = १३
फिर से दोहराना चाहूँगा कि ये कोई तुलना नहीं है, परंतु, फिर भी, कई सारे लोग जो कि छन्दों में मात्राओं की गणना नहीं कर पाते - उन्हें क्लिष्ट समझते हैं; खास कर उन्हीं मित्रों के लिए यह एक सुझाव मात्र है क़ि भाई यदि [रोला] छन्द मात्रा गणना सम्भव न हो पा रही हो तो इस तरह से कर के भी देख सकते हैं| फिर भी यदि इस में कुछ त्रुटि हो तो आप साधिकार सुधार करने की कृपा करें|
ज्ञानवर्धक ... बेहतरीन ... बहुत बढ़िया ....
जवाब देंहटाएंटिप्पणी प्रयास।
जवाब देंहटाएंछंद-ज्ञान का विस्तार साहित्य को समृद्ध करेगा,इसमें शक नहीं.सार्थक प्रयास.
जवाब देंहटाएंआदरणीय कुसूमेश जी आप का आशीर्वाद पा कर बहुत अच्छा लग रहा है| आप जैसे वरिष्ठ और गुणी जनों का सहयोग सदा मिलता रहे, यही सविनय निवेदन है|
जवाब देंहटाएं