21 अप्रैल 2012

चार ग़ज़लें - नरहरि अमरोहवी

[१]

क़ब्र के सिरहाने आशिक टूट कर रोया कोई
ढूँढिये मोती वहाँ मिल जाएगा यक़ता कोई

अब नहीं मुमकिन यहाँ ठंडी हवा के वास्ते
साँस लेने को खुले खिड़की या दरवाज़ा कोई

जान कर काटे गये हैं हाथ धंधों के यहाँ
अब हुनर से चीख कर ये रोज़ ही कहता कोई

ज़िंदगी में किस क़दर मज़बूर है अब आदमी
दाम की परवा बिना बाज़ार में बिकता कोई

झूठ ने तड़पा दिया मुझको कि जैसे जान कर
हाथ पर रख दे मेरे इक कोयला जलता कोई

बादलों ने जान कर बदला है मौसम का मिजाज़ 
धूप  की शिद्दत में नंगे पाँव है बच्चा कोई 

बहरे रमल मुसमन महजूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलुन
2122 2122 2122 212

[२]

गौर से देखो हसीं चेहरों पे लिक्खी चिट्ठियाँ 
इश्क़ है पढ़ लो दुखी लोगों की लम्बी चिट्ठियाँ 

चुप कहाँ रहती हैं ये रंगीन पन्नों पे लिखीं
हैं मुहब्बत खोलतीं ये राज़ वाली चिट्ठियाँ 

इक तमन्ना थी हसीं हाथों को मैं चूमूँ कभी
हैं बहुत ख़ामोश वादों को भुलाती चिट्ठियाँ

हौसला इन का न तोडें इश्क़ में हैं जो ज़नाब
आशिक़ी में देती हैं सच्ची गवाही चिट्ठियाँ 

आग का दरिया मुहब्बत को कहा सब ने यहाँ
रहती हैं महफ़ूज़ ये अश्क़ों में भीगी चिट्ठियाँ 


बहरे रमल मुसमन महजूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलुन
2122 2122 2122 212

[३]


मिशअलें मैं यहाँ जलाता हूँ 
रौशनी का सबक पढाता हूँ

इक धुआँ दिल के पास होता है
ख़ुद को अक्सर मैं यूँ सताता हूँ 

खींच कर दर्द की लक़ीरों को
अपने चेहरे को मैं सजाता हूँ 

दूर थीं जो परायी तहज़ीबें
अब उन्हें आसपास पाता हूँ 

ये ज़माना नमक ही छिड़केगा
ज़ख्म मैं इसलिए छुपाता हूँ 

यादों को हूँ छिपाये सीने में
ज़िंदगी आग सी बिताता हूँ 

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून
फाएलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
2122 1212 22

[४]

तल्खियों का अब मुझे कुछ डर नहीं 
साजिशें हैं अब मेरे अन्दर नहीं 

सूरतेहालात कैसे भी रहें
वक़्त की ठोकर में हूँ पत्थर नहीं 

आज़मा मेरी ज़मीं तू बारहा
मखमली हूँ घास, मैं बंजर नहीं 

सिलसिला है प्यार का अन्दर मेरे
फूल सा नाजुक हूँ मैं खंज़र नहीं

इश्क़ की तहरीर हूँ, पढ़ ले मुझे
मैं पहेली या कोई मंतर नहीं 


बहरे रमल मुसद्दस महजूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलुन
2122 2122 212

:- नरहरि अमरोहवी, मुम्बई
H-803, Orchid
Valley of Flowers
Thakur Village, Knadivali - East
Mumbai - 400101
cell: +91 9322125416

14 टिप्‍पणियां:

  1. बादलों ने जान कर बदला है मौसम का मिजाज़
    धूप की शिद्दत में नंगे पाँव है बच्चा कोई

    मिशअलें मैं यहाँ जलाता हूँ
    रौशनी का सबक पढाता हूँ

    तल्खियों का अब मुझे कुछ डर नहीं
    साजिशें हैं अब मेरे अन्दर नहीं

    बहुत बढ़िया गज़लें

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  2. वाह!!!!!!!!!!!

    बहुत खूबसूरत गज़ल...
    सभी एक से बढ़ कर एक.......
    लाजवाब....

    सादर.

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  3. नरहरी जी की चारों गज़लें बेहतरीन हैं. और सारी गज़लें अलग अलग मिजाज की चुनी है आपने नवीन जी मज़ा आ गया. सुभानल्लाह.

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  4. सुन्दर गजलें ।
    आभार भाई जी ।।

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  5. बढ़िया ग़ज़लें!
    पृथ्वी दिवस की शुभकामनाएँ!

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  6. लाज़वाब ग़ज़लें अर्थ और भाव भूमि पर सशक्त गज़लें .

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  7. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  8. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  9. एक से बढ़कर एक ग़ज़ल मजा आ गया पढ़ के बहुत बहुत आभार इन ग़ज़लों को शेयर करने के लिए

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  10. बादलों ने जान कर बदला है मौसम का मिजाज़
    धूप की शिद्दत में नंगे पाँव है बच्चा कोई


    ये ज़माना नमक ही छिड़केगा
    ज़ख्म मैं इसलिए छुपाता हूँ


    शायर नरहरि अमरोहवी को पढ़ना गोया ऊपर से शांत सी दीखती नदिया की वेगवती अंतर्धार को बूझना है. अश’आर महज़ वो नहीं कहते जो दीखते हैं.
    भाई नवीनजी, आपकी उदार कोशिश से इन ग़ज़लों को सुन पाना संभव हो पाया.
    सादर

    -सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

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