आने वाले नये साल [केलेंडर ईयर] की ढेर सारी शुभकामनाएँ

टेंशन सारी छोड़ के, बढ़िया करें विचार|
बढ़िया पहनें-खायँ हम, बढ़िया हों व्यवहार||
बढ़िया हों व्यवहार, यार आमद या खर्चे|
बढ़िया हों आधार, करें सब बढ़िया चर्चे|
बढ़िया मेल मिलाप होयँ बढ़िया ट्रांजेक्शन|
बढ़िया हो नव-वर्ष, रहे ना कोई टेंशन||

नीती में अंतर न हो, प्रीति बढ़े दिन रात|
दुर्बल- निर्धन व्यक्ति पे, करें न हम आघात||
करें न हम आघात, बात बस इतनी प्यारे|
दम दम दमके चंद्र, साथ जब चमकें तारे|
हिल मिल हम रह पायँ, भूल कर बातें बीती|
औरों को बतलायँ - वही - जो पालें नीती||


सभी साहित्य रसिकों को आने वाले नये साल [केलेंडर ईयर] की ढेर सारी शुभकामनाएँ|

प्रेम - उत्पत्ति, विकास और प्रभाव

भाव जभी उदगार बन - सहज, पूछते क्षेम|
अनुभूति की कोख से, तभी जन्मता प्रेम||
तभी जन्मता प्रेम, नेम से फलता बढ़ता|
सरोकार के साथ, गगन सा ऊँचा चढ़ता|
रहता दिल में, ख़ाता गुस्सा, पीता नफ़रत|
लेता कुछ ना, हरदम देने को ही उद्यत||

चल फिर हम तुम प्रेम से, करें प्रेम की बात|
प्रेम सगाई विश्व में, सर्वोत्तम सौगात||
सर्वोत्तम सौगात, घात ना करती है ये|
कैसा भी हो जख्म, फटाफट भरती है ये|
प्रेम बिना पुरुषार्थ - विनाशक, नारि - निरंकुश|
प्रेम बढ़ा कर लेता, नर, हाथी पर अंकुश||

पहली समस्या पूर्ति - चौपाई

हम में से कई ने अपने बचपन की पाठ्य पुस्तकों में यह कविता पढ़ी होगी:

उठो लाल अब आँखें खोलो|
पानी लाई हूँ, मुँह धो लो|
बीती रात, कमल दल फूले|
उन के ऊपर भँवरे झूले|

हम में से ज़्यादातर ने रामायण और हनुमान चालीसा भी ज़रूर पढ़ी है| आइए देखें कुछ पंक्तियाँ:-

मंगल भवन अमंगल हारी|
द्रवहु सू दसरथ अजर बिहारी||

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर|
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर||

ऊपर की पंक्तियों को अगर ध्यान से पढ़ा जाए, तो आप पाएँगे ये चौपाई 'छंद' हैं|

चौपाई छंद

सबसे सरल छंद है ये| चार चरणों में बँटा होता है ये| प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं| पहले-दूसरे चरणों के अंत में समान शब्द आते हैं, और तीसरे-चौथे चरणों के अंत में समान शब्द आते हैं| यदि कवि चारों के चारों चरणों में समान शब्द लेना चाहे, तो सुंदरता और भी बढ़ जाती है| चरणांत में तगण और जगण वर्जित|

उदाहरण देखिए:-

उठो लाल अब आँखें खोलो
१२ २१ ११ २२ २२ = १६ मात्राएँ

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
११ ११२१ २१ ११ २११ = १६ मात्राएँ


देखा आपने कितना आसान है ये छंद| तो चलो इस मंच पर की सबसे पहली 'समस्या पूर्ति' शुरू करते हैं| यह समस्या पूर्ति लोगों में रुझान जागने तक जारी रहेगी| उस के बाद सदस्यों / रचनाकारों के उत्साह को देखते हुए दूसरी पॅक्ति की घोषणा की जाएगी|


पहली समस्या पूर्ति की पंक्ति है:-

"कितने अच्छे लगते हो तुम|"

आपको ऊपर दी गयी पंक्ति को ध्यान में रखते हुए कम से कम चार चरणों वाली ३ चौपाई लिख कर navincchaturvedi@gmailcom पर भेजनी हैं, जिन्हें समय समय पर यहाँ मंच पर प्रकाशित किया जाएगा| रचनाकारों के समझने हेतु एक प्रस्तुति यहाँ दी जा रही है?:-

सब के सब अपने लगते हैं| पर जब तब हम को ठगते हैं|
सबकी बातें मोहित करतीं| आँखों में आँसू भी भरतीं|१|

अपने अपने कारण सबके| कोई न रहना चाहे दब के|
विजय पताका लहराते हैं| अपना दम खम दिखलाते हैं|२|

इन सब में तुम अलग थलग हो| उच्च गगन के मुक्त विहग हो|
सचमुच सच्चे लगते हो तुम| कितने अच्छे लगते हो तुम|३|

'कितने अच्छे लगते हो तुम', ये हिस्सा प्रस्तुति के किसी भी चरण में लेने के लिए स्वतंत्र हैं सभी रचनाकार|

आप सभी अपनी अपनी रचनाएँ navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें

हिंद युग्म पुरस्कृत ग़ज़ल: अच्छा लगता है - नवीन

इस ग़ज़ल पर नया काम
तनहाई का चेहरा अक्सर सच्चा लगता है।
ख़ुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है।१।

दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी।
जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। २।

वक्त बदन से चिपकी स्थितियों के काँधों पर।
सुख-दुख संग लटकता जीवन झोला लगता है।३।

हम भी इसी दुनिया के रहने वाले हैं यारो।
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है।४।

सात समंदर पार बसे वो, उस को क्या मालूम।
उस को फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है।५। 
 
ताज़्ज़ुब होता है हम-तुम कैसे पढ़ लिख गये यार।
अब तो पैदा होने में भी खर्चा लगता है।६।

दुनिया ने जब मान लिया फिर हम क्यूँ ना मानें!
तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है।७।

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नवंबर माह की हिंद युग्म द्वारा आयोजित यूनिप्रतियोगिता में इस ग़ज़ल को पुरस्कृत किया गया है| इस अनुग्रह के लिए हिंद युग्म परिवार का शत शत आभार|




Monday, December 20, 2010
NAVIN C. CHATURVEDI
प्रतियोगिता मे छठा स्थान नवीन चतुर्वेदी की ग़ज़ल को मिला है। हिंद-युग्म पर यह उनकी पहली रचना है। नवीन सी चतुर्वेदी का जन्म अक्टूबर 1968 मे मथुरा मे हुआ। वाणिज्य से स्नातक नवीन जी ने वेदों मे भी आरंभिक शिक्षा ग्रहण की है। अभी मुम्बई मे रहते हैं और साहित्य के प्रति खासा रुझान रखते हैं। आकाशवाणी मुंबई पर कविता पाठ के अलावा अनेकों काव्यगोष्ठियों मे भी शिरकत की है और आँडियो कसेट्स के लिये भी लेखन किया है। ब्रजभाषा, हिंदी, अंग्रेजी और मराठी मे लेखन के साथ नवीन जी ब्लॉग पर तरही मुशायरों का संचालन भी करते हैं। ज्यादा से ज्यादा नयी पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने का प्रयास है।


पुरस्कृत रचना: अच्छा लगता है


तनहाई का चेहरा अक्सर सच्चा लगता है|
खुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है। |१|

दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी|
जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। |२|

वक्त बदन से चिपके हालातों के काँधों पर|
सुख दुख संग लटकता जीवन झोला लगता है|३|

हम भी तो इस दुनिया के वाशिंदे हैं यारो|
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है। |४|

सात समंदर पार रहे तू, कैसे समझाऊँ|
तुझको फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है। |५|

मुँह में चाँदी चम्मच ले जन्मे, वो क्या जानें?
पैदा होने में भी कितना खर्चा लगता है। |६|

शहरों में सीमेंट नहीं तो गाँव करे भी क्या|
उस की कुटिया में तो बाँस खपच्चा लगता है। |७|

वर्ल्ड बॅंक ने पूछा है हमसे, आख़िर - क्यों कर?
मर्सिडीज में भी सड़कों पर झटका लगता है। |८|

दुनिया ने जब मान लिया फिर हम क्यूँ ना मानें!
तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है। |९|

सलाम सचिन तेंदुलकर

अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट में शतकों का अर्ध शतक पूरा करने पर सचिन तेंदुलकर के सम्मान में:-

सचिन सचिन सच्चिन सचिन, सचिन सचिन सच्चिन्न|
दुनिया की किरकेट का, तुम हो भाग अभिन्न||
तुम हो भाग अभिन्न, भिन्न है खेल तुम्हारा|
खिन्न हुआ था वार्न, देख कर स्वप्न, बेचारा|
आज तलक है याद, सचिन हमको वो मंज़र|
'बच्चू' जिसने कहा, उसी को मारा सिक्सर||

नवगीत : आप हम सब खुश रहें

आप हम सब खुश रहें!

खेत खलिहानों में
पैदावार हो,
हसरतों का ना कहीं
व्यापार हो,
बाल बच्चों को मिले
शिक्षा अमित,
बहन बेटी घूम पाएँ
भय रहित,
हो तरक्की
और
नदियाँ भी बहें|
आप हम सब खुश रहें।1|

गैर की दहलीज पर
जब जाएँ हम,
मोल इज़्ज़त का
न दे के आएँ हम,
बाँह फैला के
सभी को स्थान दें,
साथ ही सरहद पे भी
हम ध्यान दें,
ताकि भावी पीढ़ियाँ
सब सुख लहें|
आप हम सब खुश रहें।2|

हम रहें खुश
इस तरह कुछ
इस बरस,
विश्व को
आए न हम तुम पे
तरस,
हम भी हैं कुछ
विश्व को
बतलाएँ हम,
कंधे से कंधा मिला
बतियाएँ हम,
देख तन गोरा
न स्तर से ढहें|
आप हम सब खुश रहें।3|

सब से छोटी बहर की ग़ज़ल

मुद्दतों से एक जुनून था, सब से छोटे रूक्न पर ग़ज़ल लिखूं| गूगल पर सर्च किया, 'फाइलातुन' और 'फाइलुन' रूक्न पर ग़ज़लें मिलीं| फिर सोचा अगर इस से भी छोटे रूक्न को पकड़ा जाए तो कैसा! एक कोशिश जो की सिर्फ़ ३ मात्रा वाले रूक्न 'फअल' पर, जो अब आप सभी के सामने हाजिर है| आप सभी की राय मेरे लिए महत्वपूर्ण है| कृपया अपनी राय से ज़रूर अवगत कराने की कृपा करें|

सजन |
नमन |१|

सिफ़र |
सघन |२|

स-धन |
सु-जन |३|

महक |
चुभन |४|

शरम |
वसन |५|

धरम |
न हन |६|

समय |
वहन |७|

फिकर |
अगन |८|

कुमति |
पतन |९|

सफ़र |
जतन |१०|

नव-युवकों का करना ही होगा अभिनंदन

अद्भुत, अत्युत्तम, अमित, अनुपम, अगम, अपार|
कल थी सारी इंडिया, यूसुफ़ पर बलिहार||
यूसुफ़ पर बलिहार, यार सब हक्के बक्के|
घुमा घुमा कर क्या मारे हैं चौके छक्के|
खेल-कला-व्यापार-राजनीति या प्रबंधन|
नव-युवकों का करना ही होगा अभिनंदन||

हरिगीतिका छन्द विधान

हरिगीतिका छन्द विधान 

सोलह गिनें मात्रा, रुकें फिर, सांस लेने के लिए|
फिर बाद उस के आप मात्रा - भार बारह लीजिए||

चरणान्त में लघु-गुरु, तुकान्तक, चार पंक्ति विधान है|
हरिगीतिका वह छन्द है जो, महफ़िलों की शान है||




उदाहरण मात्रा गणना सहित  


सोलह गिनें मात्रा, रुकें फिर, 
२११ १२ २२ १२ ११ = १६ मात्रा, यति 

सांस लेने के लिए|
२१ २२ २ १२ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु 


फिर बाद उस के आप मात्रा - 
 ११ २१ ११ २ २१ २२ = १६ मात्रा, यति

भार बारह लीजिए||
२१ २११ २१२ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु


चरणान्त में लघु-गुरु, तुकान्तक, 
११२१ २ ११ ११ १२११ = १६ मात्रा, यति 
 
चार पंक्ति विधान है|
 २१ २१ १२१ २ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु

हरिगीतिका वह छन्द है जो, 
११२१२ ११ २१ २ २ = १६ मात्रा, यति 
 
महफ़िलों की शान है||
 १११२ २ २१ २ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु


हरिगीतिका छंद १६+१२=२८ मात्रा वाला छंद होता है| अंत में लघु गुरु अनिवार्य है| इस छंद का अलिखित नियम यह है कि इस की धुन -

ला ला ल ला 
ला ला ल ला ला 
ला ल ला 
ला ला ल ला 

के अनुरूप चलती है| यहाँ धुन वाले ला का अर्थ गुरु अक्षर न समझ कर २ मात्रा भार समझना चाहिए|

ठीक इसी तरह का एक और छंद है - उसे सार या ललित छंद के नाम से जाना जाता है| इस छंद में भी १६+१२=२८ मात्रा होती हैं| अंत में गुरु गुरु आते हैं| और इस सार / ललित छंद की धुन होती है - 

ला ला ला ला 
ला ला ला ला 
ला ला ला ला 
ला ला

यहाँ भी धुन वाले ला का अभिप्राय गुरु वर्ण से न हो कर २ मात्रा भार से है|

हरिगीतिका को कभी कभी कुछ व्यक्ति गीतिका समझने की भूल कर बैठते हैं| जब कि वह एक अलग ही छंद है| गीतिका में १४+१२=१६ मात्रा होती हैं| अंत में लघु गुरु| इस छंद की धुन होती है -

ला ल ला ला 
ला ल ला ला 
ला ल ला ला
ला ल ला 

यहाँ भी धुन वाले ला का अभिप्राय गुरु अक्षर न हो कर २ मात्रा भार है| गीतिका छंद का उदाहरण - "हे प्रभो आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिये"|

सरस्वती वन्दना


सरस्वती वन्दना


पद्मासनासीना, प्रवीणा, मातु, वीणा-वादिनी।
स्वर-शब्द-लय-सरगम-समेकित, शुद्ध-शास्वत-रागिनी॥
 
सब के हृदय सन्तप्त हैं माँ! निज-कृपा बरसाइये।
भटके हुए संसार को माँ! रासता दिखलाइये॥
 

यति-गति समो कर ज़िन्दगी में, हम सफल जीवन जिएँ।
स्वच्छन्द-सरिता में उतर कर, प्रेम का अमृत पिएँ॥
व्यवहार में भी व्याकरण सम, शुद्ध-अनुशासन रहें।
सुन कर जिन्हें जग झूम जाए, हम वही बातें कहें॥ 
 

इक और छोटी सी अरज है, शान्ति हो हर ठौर में।
परिवार के सँग हम खुशी से, जी सकें इस दौर में॥  
कह दीजिये अपनी बहन से, रह्म हम पर भी करें।
हे शारदे! वर दीजियेगा, हम सरसता को वरें॥


नवीन सी. चतुर्वेदी

छन्द हरिगीतिका




YouTube link :- Saraswati vandana - https://m.youtube.com/watch?v=hA3leJgE4Do

लघु कथा : घोटाला

पति:-
[अख़बार पढ़ते हुए]
अजी सुनती हो, तुमने पढ़ा क्या एक और घोटाला राजनेताओं का?

पत्नी:-
[अनसुना करते हुए]
आपने बताया नहीं, आपकी जेब में जो २० हज़ार पड़े हैं, वो कहाँ से मिले आपको?

नव-कुण्डलिया - IND vs NZ 2nd ODI JAIPUR 01.12.10

गोवाहाटी में दिखी, हट कर युवा ब्रिगेड|
कीवी जिसके सामने, करते दिखे परेड||
करते दिखे परेड, ग्रेड दिखलाई जम के|
अश्विन, युवी, विराट, श्रिसन्त धमक कर चमके|
हमने तो यारो ये ही निरधार कर लिया|
भारत जब भी खेला, जीती टीम इंडिया||

क्या कहते हैं आप?

साहित्यकार कैसा होना चाहिए?

बड़ा ही सीधा सा प्रश्न है ना ये! फिर भी कुछ है जो अनुत्तरित सा लगता रहता है|

मसलन:-

क्या साहित्यकार वो है :-

जो लिखता है.......
जो दूसरों के लिखे को भी पढ़ता है..............
जो सिर्फ़ अपनी आत्मा की आवाज़ पर ही लिखता है.............
जो दूसरों के कहने पर ही लिखता है...........
जो तारीफ करना जानता है............
जो तारीफ सुनने का शैदाई होता है............
जो साधारण बात को भी अलंकृत कर दे.........
जो सिर्फ़ अपनी दुनिया में ही सुखी और संतुष्ट रहता है..............
जिसे बाहर की दुनिया को देखने का भी शौक हो............
जो झक्की मिज़ाज हो.............
जिसकी सदाशायता के चर्चे सभी जगह हों.............
जिसके यहाँ महफ़िलों का दौर चलता रहता हो...............
जिसकी बातों में हमेशा आदर्श की बातें हों...............
जो जन साधारण से ऊपर उठ कर हो.............
जिसे सरकार पुरस्कृत करे...............
जो कई कई सालों से लिख रहा हो और जिसे सभी जानते हों............
जो पहचान का मोहताज होने के बावजूद साहित्य के प्रति समर्पित हो...................
जो स्थापित लोगों की रचनाओं को सम्मान देना जनता हो............
जो नयी पौध को भी उत्साहित करने में विश्वास रखता हो.......
जो दिल पे चोट करने वाली ग़ज़ल लिखे............
जिसकी हिन्दी पर अच्छी पकड़ हो.................
जिसने कुछ नयी विधा का प्रादुर्भाव किया हो.................


आदि आदि आदि...............


और भी बहुत कुछ| क्या ये सभी लक्षण होने चाहिए एक साहित्यकार में? या इन में से कुछ? या इनके अलावा भी.....
वो!
वो!!
वो!!!
वो!!!!

क्या कहते हैं आप? हम किसे समझें साहित्यकार? क्या परिभाषा होनी चाहिए साहित्यकार की? क्या आप सभी बुद्धिजीवी अपने कीमती वक्त में से कुछ पल निकाल कर इस विषय पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणी देना चाहेंगे? इस विद्यार्थी को आप सभी के उत्तरों की प्रतीक्षा रहेगी|

आपका अपना ही
नवीन सी चतुर्वेदी

नवरात्रि का त्यौहार, मानव मात्र का त्यौहार है

मस्ती भरे आबाल बच्चे, नाचते अरु झूमते।
पावस अनंतर तरु सघन, जैसे धरा को चूमते।।

हर ओर सुख समृद्धि के ही, दृश्य दिखते हैं घने।
जैसे कि हलधर, देख अपनी - फसल, खुशियों से तने।१।


कर्मठ मनुज, करते दिखें, बस - कर्म की आराधना।
वाणी-हृदय- व्यवहार से, बस - शक्ति की ही साधना।।

जिसने इसे अपना लिया, उस - का सफ़ीना पार है।
नवरात्रि का त्यौहार, मानव - मात्र का त्यौहार है।२। 

हरिगीतिका छंद

किस का हम करें यक़ीं, सारे एक थैली के चट्टे-बट्टे - नवीन

क़रीब 10-15 साल पहले संझा जनसत्ता में प्रकाशित


किस का हम करें यक़ीं, सारे एक थैली के चट्टे-बट्टे
खाने को नहीं मिले तो फ़रमाया, अंगूर हैं खट्टे

जनता के तारनहार बड़े मासूम, बड़े दरिया दिल हैं
तर जाएँगी सातौं पीढ़ी, लिख डाले हैं इतने पट्टे

मज़हब हो या फिर राजनीति ठेकेदारों को पहिचानो
धन से बोझल, मन से कोमल तन  से होंगे हट्टे-कट्टे

जनता की ख़ातिर, जनता के अरमानों पर, जनता से ही -
जनता के हाथों जनसेवक सब खेल रहे खुल कर सट्टे