इस ग़ज़ल पर नया काम
तनहाई का चेहरा अक्सर सच्चा लगता है।
ख़ुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है।१।
दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी।
जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। २।
वक्त बदन से चिपकी स्थितियों के काँधों पर।
सुख-दुख संग लटकता जीवन झोला लगता है।३।
हम भी इसी दुनिया के रहने वाले हैं यारो।
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है।४।
सात समंदर पार बसे वो, उस को क्या मालूम।
उस को फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है।५।
ताज़्ज़ुब होता है हम-तुम कैसे पढ़ लिख गये यार।
अब तो पैदा होने में भी खर्चा लगता है।६।
दुनिया ने जब मान लिया फिर हम क्यूँ ना मानें!
तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है।७।
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नवंबर माह की हिंद युग्म द्वारा आयोजित यूनिप्रतियोगिता में इस ग़ज़ल को पुरस्कृत किया गया है| इस अनुग्रह के लिए हिंद युग्म परिवार का शत शत आभार| |
NAVIN C. CHATURVEDI |
पुरस्कृत रचना: अच्छा लगता है
तनहाई का चेहरा अक्सर सच्चा लगता है|
खुद से मिलना बातें करना अच्छा लगता है। |१|
दुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी|
जिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। |२|
वक्त बदन से चिपके हालातों के काँधों पर|
सुख दुख संग लटकता जीवन झोला लगता है|३|
हम भी तो इस दुनिया के वाशिंदे हैं यारो|
हमको भी कोई बेगाना अपना लगता है। |४|
सात समंदर पार रहे तू, कैसे समझाऊँ|
तुझको फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है। |५|
मुँह में चाँदी चम्मच ले जन्मे, वो क्या जानें?
पैदा होने में भी कितना खर्चा लगता है। |६|
शहरों में सीमेंट नहीं तो गाँव करे भी क्या|
उस की कुटिया में तो बाँस खपच्चा लगता है। |७|
वर्ल्ड बॅंक ने पूछा है हमसे, आख़िर - क्यों कर?
मर्सिडीज में भी सड़कों पर झटका लगता है। |८|
दुनिया ने जब मान लिया फिर हम क्यूँ ना मानें!
तेंदुलकर हर किरकेटर का चच्चा लगता है। |९|
अच्छी गज़ल , रचनाकार को बधाई।
जवाब देंहटाएंनवीन भाई को इस प्रतियोगीता में 6वां स्थान पाने के लिये भी बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंआभार संजय भाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना एंव पुरुस्कृत होने पर बधाई....
जवाब देंहटाएं"आपको बधाई देना, मुझे अच्छा लगता है"
बधाई नविन जी!!!
जवाब देंहटाएंअरविंद जी और अनुपमा जी उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंनवीन जी,
जवाब देंहटाएंमेरी बधाई और शुभकामनाएं स्वीकार करें!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
ज्ञान चंद मर्मज्ञ जी बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंदुनिया ने उस को ही माँ कह कर इज़्ज़त बख़्शी|
जवाब देंहटाएंजिसको अपना बच्चा हरदम बच्चा लगता है। |२|
सात समंदर पार रहे तू, कैसे समझाऊँ|
तुझको फ़ोन करूँ तो कितना पैसा लगता है। |५|
मुँह में चाँदी चम्मच ले जन्मे, वो क्या जानें?
पैदा होने में भी कितना खर्चा लगता है। |६|
kuchh nayi baateN, kuchh chote-chhote naye prayog..achchhi lagi ghazal, Badhaayi.
नवीन जी,
जवाब देंहटाएंबधाई और शुभकामनाएं
हिंद युग्म द्वारा इस ग़ज़ल को पुरस्कृत किए जाने पर आपको हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंभाई संजय ग्रोवर जी बहुत सलाम आपकी पारखी नज़र को|
जवाब देंहटाएंसंजय कुमार चौरसिया जी एवम महेंद्र भाई जी उत्साह वर्धन और शुभकामनाओं के लिए दिल से आभार|
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार गजल कही है आपने नवीन जी। गजल का प्रत्येक शेअर बढ़िया लगा। गजल पुरस्कृत होनी ही चाहिए थी और हो गई क्योँकि इतने अच्छे भाव संजोय हैँ आपने । आभार नवीन जी !
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है ।
" ना जाते थे किसी दर पे हम "
भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
अशोक भाई और राजीव भाई उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंManoj Kaushik Maharaj
जवाब देंहटाएंMAI BHI MANU MAI BHI AB TAK BCHCHA LAGTA HUON
MAA KHATI HAI TU TO AB TAK BCHCHA LAGTA HI
HARDAM KISKE AANE KI AAHAT HAI PEECHE SE
TANHAAI ME AKSAR YE DAR SACHCHA LGTA HAI
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