जितेंद्र जौहर |
पिछले दिनों, शायद दो हफ़्ते पहले, कामकाज़ के सिलसिले में चेम्बूर गया था तो फिर वहीं से ही आ. आर. पी. शर्मा महर्षि जी के दर्शन करने उन के घर भी चला गया। उन के घर पर "क़ता-मुक्तक-रूबाई" का शायद अब तक का सब से बड़ा संकलन देखने / पढ़ने को मिला। वहीं बैठे-बैठे इस संकलन के शिल्पी जितेंद्र जौहर से भी बात हुयी। कुछ दिनों बाद फिर जितेंद्र भाई का मेसेज आया कि नवीन जी आप के और आप के मित्रों के मुक्तक-क़ता-रूबाई भिजवाइएगा। जो पसंद आएंगे [यह शर्त मेरे लिए भी लागू] उन्हें संकलन में स्थान मिलेगा। तो मैंने सोचा एक ब्लॉग पोस्ट के ज़रिये न सिर्फ जितेंद्र जी का परिचय और उनकी रूबाइयाँ बल्कि उन की मंशा भी दोस्तों तक पहुँचायी जाये। रूबाइयों से मेरे लिए परिचय नई बात है। तो आइये पढ़ते हैं उन की रूबाइयाँ ब-क़लम जितेंद्र भाई:-
जितेन्द्र ‘जौहर’ की प्रयोगवादी रुबाइयाँ
१.
एक-शब्दांतर रुबाई :
इज़्ज़त को वो मिट्टी में मिला देता है।
शुहरत को वो मिट्टी में मिला देता है।
दामन पे कोई दाग़ जो लग जाये तो,
अज़मत को वो मिट्टी में मिला देता है!
२.
ज़ुल-काफ़्तैन रुबाई :
वो संत का किरदार जिया करता था।
उपदेश की रसधार दिया करता था।
जब राज़ खुला, सत्य उभरकर आया,
वो देह का व्यापार किया करता था।
३.
सह्-क़ाफ़्तैन रुबाई :
आचार में ले आ तू असर इंसानी।
संसार में ले आ तू सहर नूरानी।
इंसाँ को सही राह दिखाने के लिए,
व्यवहार में ले आ तू हुनर लासानी।
कुछ अन्य रुबाइयाँ :
४.
जीने का हुनर देगा, तुझे ढब देगा।
ज़र देगा, ज़मीं देगा, तुझे सब देगा।
तू माँग उसी से कि वही है मालिक,
हर चीज़ ज़रूरत की तुझे रब देगा!
५.
काटे हैं शबो-रोज़ वो काले कैसे?
सीने में छिपा दर्द निकाले कैसे?
मत पूछिए इस दौर में इक विधवा ने,
पाले हैं भला बच्चे, तो पाले कैसे?
६.
क़ानून की ये अज़मत, तौबा-तौबा!
थाने में लुटी इज़्ज़त, तौबा-तौबा!
हर ओर से पुरज़ोर ये आवाज़ उठी,
हर ओर से पुरज़ोर ये आवाज़ उठी,
लाहौल बिला कुव्वत, तौबा-तौबा!
[ठाले-बैठे ब्लॉग पर वातायन के अंतर्गत अगली पोस्ट में ऋता शेखर मधु जी के हरिगीतिका छंद]
छन्दों में पगे गहरे भाव।
जवाब देंहटाएंअरे वाह सर!
जवाब देंहटाएंसभी रुबाइयाँ एक से बढ़कर एक हैं और बहुत ही अच्छे भाव लिए हैं।
सच मे आपका ब्लॉग वाकई गजब का ब्लॉग है जहां सीखने और समझने को बहुत कुछ है।
सादर
सभी रुबाइयाँ बहुत उत्कृष्ट और भावपूर्ण....दिक् को छू जाती हैं..
जवाब देंहटाएंare waah... maza aa gaya
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट और भावपूर्ण....
जवाब देंहटाएंजीतेंद्र जी और उनकी ताज़ा उपलब्धि के विषय में हरकीर जी के ब्लॉग में पढ़ा था...
जवाब देंहटाएंयहाँ रुबाइयाँ पढ़ने मिली...
बहुत शुक्रिया.
सादर.
MAIN PRASIDH KAVI AUR AALOCHAK
जवाब देंहटाएंJITENDRA JAUHAR KEE LEKHNI KAA
RAS KUCHH SAALON SE LE RAHAA HUN .
HAR VIDHA MEIN UNHEN MAHAARAT HAASIL HAI . UNKEE IN RUBAAEEYON NE
DIL AUR DIMAAG PAR JAADOO SA KAR
DIYA HAI .
भाई जौहर जी ने इस विधा को खाई से निकालकर हाई वे पर खड़ा कर दिया । खुद भी स्तरीय लेखन का कार्य करके एक उदाहरण पेश किया है आशा है भविष्य में इस विधा को अपनाने वाले लोग गम्भीरता से काम करेंगे ।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट और भावपूर्ण....
जवाब देंहटाएंजौहर साहेब को मैंने एक कुशल रचनाकार, टीकाकार, आलोचक, व्याकरण विशेषज्ञ, शायर, कवि......होने के साथ साथ एक बेहतरीन शख्स के रूप में भी देखा हैं. मेरे ख्याल से शब्द-शिल्प कला में इनका कोई सानी नहीं है. मुझे इनसे हर वक्त कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता रहता है.
जवाब देंहटाएंहालांकि उपर्युक्त रुबाइयों को प्रयोगात्मक लिखा गया है फिर भी ये पढ़ने में अत्यंत स्वाभाविक जान पड़ती हैं. यह जौहर साहेब की अनूठी शिल्प कला का ही एक उत्कृष्ट उदहारण है जो उन्होंने तीसरी रुबाई में रदीफ का उपयोग आखिर में न करके पंक्ति के बीच में किया है. एक ही रुबाई में हिंदी और उर्दू के शब्दों का चुनाव हमारी गंगा-जमुनी तहजीब की बेहतरीन मिसाल पेश करता है. जिस तरह विज्ञान में शोध पत्रों के माध्यम से नए तजुर्बों के परिणाम सामने आते हैं, ठीक वैसे ही इस तीसरी रुबाई में एक नई ताजगी और तासीर महसूस की जा सकती है. वैसे इनकी तमाम रुबाइयां आम आदमी के बहुत करीब जान पड़ती हैं. जब भी आप लिखते हैं तो ऐसा लगता है कि आपने दिलो-दिमाग के बीच एक कठिन संतुलन बिठा कर अपनी रचना को जीया है. इस बेहतरीन लफ्फाजी और कारीगरी के लिए मेरी दिली मुबारकबाद.
जितेन्द्र जी एक संस्था हैं।
जवाब देंहटाएंउन्हें पढ़ना सदैव एक सुखद अनुभव रहा है।
एक कुशल रचनाकार, टीकाकार, आलोचक, व्याकरण विशेषज्ञ, शायर, कवि..'' के साथ मैं कुछ और जोड़ दूँ ....?:))
जवाब देंहटाएंसमीक्षक, शिक्षक , संपा. सलाहकार,अतिथि संपादक और एक कुशल स्तम्भकार....
अद्भुत प्रतिभा है इनमें .....
नवीन जी क्षणिका विशेषांक के लिए क्षणिकाएं भेजने का भी aagrah है आपको .....
जितेन्द्र जौहर जी शब्दों से त्रिआयामी चित्र-सा बनाने में दक्ष हैं।
जवाब देंहटाएंउनके मुक्तकों में अनचाही स्थितियों के विरुद्ध आक्रोश साफ नज़र आता है।
जितेन्द्र जौहर जी शब्दों से त्रिआयामी चित्र-सा बनाने में दक्ष हैं।
जवाब देंहटाएंउनके मुक्तकों में अनचाही स्थितियों के विरुद्ध आक्रोश साफ नज़र आता है।
जितेन्द्र जौहर जी शब्दों से त्रिआयामी चित्र-सा बनाने में दक्ष हैं।
जवाब देंहटाएंउनके मुक्तकों में अनचाही स्थितियों के विरुद्ध आक्रोश साफ नज़र आता है।
४.
जवाब देंहटाएंजीने का हुनर देगा, तुझे ढब देगा।
ज़र देगा, ज़मीं देगा, तुझे सब देगा।
तू माँग उसी से कि वही है मालिक,
हर चीज़ ज़रूरत की तुझे रब देगा!
५.
काटे हैं शबो-रोज़ वो काले कैसे?
सीने में छिपा दर्द निकाले कैसे?
मत पूछिए इस दौर में इक विधवा ने,
पाले हैं भला बच्चे, तो पाले कैसे?
सभी रचनाये बेहद प्रभावी
Bahut khoob
जवाब देंहटाएंबेशकीमती रुबाईयाँ पढवाने के लिए सादर आभार....
जवाब देंहटाएंआद. नवीन भाई का हार्दिक आभारी हूँ कि उन्होंने सदाशय से अनुप्राणित होकर यह पोस्ट अपने प्रतिष्ठित ब्लॉग पर लगायी। वस्तुतः यह मेरे लिए किसी सरप्राइज़ से कम नहीं है...धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमैं सभी मित्रों की दस्तक और टिप्पणियों के रूप में अपनत्व-भरे सद्भाव के लिए हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। कृपया नव वर्ष की अग्रिम मंगलकामनाएँ स्वीकारें!
मुझे ये भाषा बहुत अधिक प्रभावित कर रही है -- यह हिन्दी उर्दू सेतु है --अधिकार है भाषा भावना और सम्प्रेषणीयता पर और साहस भी है किनारे काटने का -- सब्से बड़ी बात इनकी सामाजिक संचेतना -- यह पक्ष आजकल बहुधा शिल्प और विन्यास के प्रति बेशतर शायरों के आग्रह के कारण कारण कम दीखता है -- जितेन्द्र जी का कलम अपने उद्देश्य के प्रति जागरूक और समर्थ है और -उद्देश्य भाषा का सेतुबन्ध बनाना और सामाजिक संचेतना दोनो ही हैं स्पष्टत: --दोनो उद्देश्य महान हैं -- बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंjitendra ji bahut khoob !!
जवाब देंहटाएंकैसे तारीफ करें
जवाब देंहटाएंसमझ नहीं आता
शब्दों की महफिल में
आपकी तारीफ लायक
कोई शब्द नजर नहीं आता, भावो को हिरदय से महसूस करके तल्लीनता के साथ उभारा है शब्दों में .....