मर्द के दर्द
तुमने कहा एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो ?
मैं खटता रहा दिन रात ताकि जुटा सकूँ
सिंदूर के साथ गहने कपड़े तुम्हारे लिए
और देख सकूँ तुम्हे मुस्कुराते हुए ..
तुमने कहा मर्दों के दिल नहीं होता
और मैं मौन आंसू पीता रहा .और छुपाता रहा अपने हर दर्द को
और उठाता रहा हर जिम्मेदारी हँसते हँसते ..
ताकि तुम महसूस ना कर सको किसी भी दर्द को और खिलखिलाती रहो यूँ ही
तुम मुझे बदलना चाहती थी और जब मैंने ढाल लिया खुद को तुम्हारे मुताबिक
और एक दिन कितनी आसानी से तुमने कह दिया
तुम बदल गए हो ...
और इस बार मैं मुस्कुरा दिया था हौले से
अबकी तुमने कहा ‘तुम मर्द एक बार में सिर्फ एक काम ही कर सकते हैं
हम महिलाएं ही होती हैं मल्टीटास्किंग में महारथी
और मैं ऑफिस ,बॉस ,घर, बच्चे ,माँ और
तुम्हें खुश रखने के सारे जतन करता रहा
बिना थके बिना हारे
सच कहा तुमने ,
नहीं जानता मैं सिंदूर की कीमत
ना ही होता है मुझे दर्द आखिर मैं हूँ मर्द
और मर्द के दर्द नहीं होता ।।
अर्चना चतुर्वेदी
👌 Superb 👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 20 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.11,2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3526 में दिया जाएगा | आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वाह, अर्चना जी, मर्द को भी दर्द होता है। यूँ तो सदियों से नारी को ही शोषित और पीड़ित माना गया, पर एक मजबूत पौरुष के पीछे छिपी भावनाओं की सुनामियां लिंये दूसरों की खुशियों का आवश्यक और अनावश्यक बोझ ढोते पुरुष की विवशता अक्सर नजर नहीं आती। भावपूर्ण रचना के लिए शुभकामनायें। पुरुष दिवस भी होता है, ये जानकर अच्छा लगा, सभी को इस दिवस विशेष पर शुभकामनायें 🙏🙏🙏
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