31 जुलाई 2011

निभाई यार से यारी मेरा श'ऊर था वो - नवीन











स्वर राजेन्द्र स्वर्णकार


निभाई यार से यारी, मेरा श'ऊर था वो|
मगर, यूँ लगता है अब तो, कोई क़ुसूर था वो|१|

चली हवा तो पतंगे सा उड़ गया पल में|
बताया लोगों ने मुझको, मेरा ग़ुरूर था वो|२|

वो जो हसीन परी का ख़याल था दिल में|
सही कहूं, तो ख़यालात का फ़ितूर था वो|३|

फ़क़ीर दिल ने इरादा बदल दिया, वरना|
वो चाँद बाँहों में ही था, न मुझसे दूर था वो|४|

राजेन्द्र भाई ने अपनी आवाज़ से इस ग़ज़ल को सार्थक बना दिया है| उन का दिल से बारम्बार आभार|


मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन 
1212 1122 1212 22
बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ

24 टिप्‍पणियां:

  1. फ़क़ीर दिल ने इरादा बदल दिया, वरना|
    वो चाँद बाँहों में ही था, न मुझसे दूर था वो|४|

    बहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  2. चली हवा तो पतंगे सा उड़ गया पल में
    बताया लोगों ने मुझको, मेरा ग़ुरूर था वो

    चार शेरों में सबसे उम्दा शेर ।
    बहुत सुंदर ग़ज़ल।

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  3. बहुत सुन्दर गजल और उसको दिया गया स्वर |बहुत बहुत बधाई |
    आशा

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  4. AAPKEE GAZAL AUR RAJENRA JI KAA SURMAYEE GAAYAN
    SONE PAR SUHAAGA LAGAA HAI . AANANDIT HO GAYAA
    HOON.

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  5. बहुत खूबसूरत गज़ल है ! जितने अशआर बधुया हैं उतना ही मधुर राजेन्द्र भाई का स्वर है ! दोनों ने मिलकर इसे बेमिसाल बना दिया है ! सुन कर मन विभोर हो गया ! बहुत बहुत बधाई आप दोनों को !

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  6. टाइपिंग की भूलवश बढ़िया के स्थान पर गलत कुछ छप गया है ! उसे सुधार कर 'बढ़िया' पढ़ें ! सखेद !

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  7. वाह नवीन जी ... जितने लाजवाब बोल उतनी खूबसूरत आवाज़ ... सोने पे सुहागा है ये जुगलबंदी ...

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  8. सार्थक अशआर बेहतरीन प्रस्तुति .स्वर्णकार जी की आवाज़ में .

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  9. फ़क़ीर दिल ने इरादा बदल दिया, वरना|
    वो चाँद बाँहों में ही था, न मुझसे दूर था वो|


    -बेहतरीन अश’आर

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  10. आपने सर पकड़कर इतनी डुबकियॉं लगवाई है अभी अभी घनाक्षरी में कि मैं पहले तो इसे घनाक्षरी समझ पढ़ने का प्रयास करता रहा फिर ध्‍यान गया कि ये तो ग़ज़ल के शेर हैं।
    पढ़ा और सुना, आनंद आया।

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  11. वो जो हसीन परी का ख़याल था दिल में
    सही कहूं, तो खयालात का फितूर था वो

    खूबसूरत ख़याल ,, खूबसूरत लफ्ज़
    और दिल-फरेब आवाज़ ....
    ऐसा अनूठा और अनुपम संगम तो
    कहीं विरला ही देखने / सुनने को मिलता है हुज़ूर
    नविन जी, सच कहा आपने
    कि ग़ज़ल के इन अश`आर को राजेंद्र जी की मधुर आवाज़ ने
    आसमान की बलंदी तक ला खड़ा किया है... वाह !
    मेरी तरफ से
    नवीन जी आपको और भाई राजेंद्र जी को
    ढेरों ढेरों मुबारकबाद .

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  12. आद. सौरभ पाण्डेय जी की मेल पर प्राप्त टिप्पणी :-

    आपकी लेखिनी तथा राजेन्द्रभाई के स्वर्ण-कण्ठ को मेरी अनेकानेक बधाई..

    मैं अभी तक, नहीं भी तो, दसियों बार सुन गया हूँ.. क्या मुरकियाँ ली है उन्होंने..!.. वाह-वाह..!

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  13. खूबसूरत ग़ज़ल......मनमोहक स्वर .......मज़ा आ गया

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  14. क्या ग़ज़ल है और क्या गायकी है। कहने और गाने वाले दोनों को बधाई

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  15. चली हवा तो पतंगे सा उड़ गया पल में|
    बताया लोगों ने मुझको, मेरा ग़ुरूर था वो|२|
    .........behatreen ghazal...bahut baehatreen..
    rajendra ji ki awaaz ke to kya kahne..
    wakai ghazal saarthak ho uthi..

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  16. चली हवा तो पतंगे सा उड़ गया पल में ,
    बताया लोगों ने मुझको मेरा गुरूर था वो .
    बहुत सुन्दर अशआर है नवीन जी बारहा पढो ,कम लगे है .कृपया यहाँ भी पधारें .
    फ़कीर दिल ने इरादा बदल लिया वरना ,
    सही कहूं तो खयालात का फितूर था वो .


    .शुक्रिया ब्लॉग पर पधारकर दर्शन देने का.http://veerubhai1947.blogspot.com/कृपया इस संस्मरण पर भी आयें -
    .,

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  17. नवीन भाई, एवं आप सभी को सादर आभिवादन !

    माता शारदा की कृपा से मेरे माध्यम से संपन्न कार्य आप सबको पसंद आया … यह मेरा सौभाग्य है ।
    आप सब का आशीर्वाद और स्नेह मिलता रहे … यही कामना है ।

    हार्दिक बधाई !

    शुभकामनाओं मंगलकामनाओं सहित…
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  18. … और ग़ज़ल लिखी भी तो बहुत ख़ूबसूरत ! नवीन जी को हृदय से बधाई और शुभकामनाएं !

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