14 जून 2011

चौथी समस्या पूर्ति - घनाक्षरी - ताड़-सा , खजूर जैसा , आठवें अज़ूबे जैसा

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन

समस्या पूर्ति मंच द्वारा घनाक्षरी छन्द पर आयोजित इस चौथी समस्या पूर्ति के चौथे चक्र में आप सभी का स्वागत है| सुरेन्द्र भाई, महेंद्र भाई और योगराज भाई के बाद अब हम पढ़ते हैं बीकानेर वाले राजेन्द्र स्वर्णकार जी को| सुरेन्द्र, महेंद्र और राजेन्द्र में 'द्र' की बारंबारता से अनुप्रास [वृत्यानुप्रास] अलंकार हुआ| अनुप्रास अलंकार के पांचों प्रकार, फिल्मी गानों के माध्यम से समझने के लिए यहाँ क्लिक करें|

तो आइये घूमने चलते हैं भाई राजेन्द्र जी के कल्पना लोक में..............




घर-परिवार है साक्षात् स्वर्ग ; स्वर्ग यह
त्याग श्रद्धा स्नेह सहयोग से सजाइए !
ईर्ष्या [ईरष्या] जलन द्वेष डाह चालबाजियों से
निंदा शक़ बैर से , माहौल न बिगाड़िए !
चैनलों के किस्सों की चपेट में उलझ कर
गृहस्थी बसी-बसाई हाथों न उजाड़िए !
देवियों ! माताओं ! बहनों ! भाभियों ! विनति है –
राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइए !

[टी वी की महारबानी से घरों में राजनीति किस कदर हावी हो चुकी है, इसे बखूबी बखाना है अपने| यही होता है कवि का धर्म, कि हमारी जड़ों को हिलाने वाले तत्वों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करे]



कलियां कोमल अंग-अंग में सजी हैं तेरे
संदली बदन तेरा दूध में नहाया है !
रूप मनहरण लुभावना है सुंदरिये !
देखतेरी सुंदरता चांद भी लजाया है !
गढ़ के विधाता-सा चितेरा भी हुआ है धन्य
तुम्हें चाव लगन से जिसने बनाया है ।
धरती क्या , स्वर्ग में पाताल में भी नहीं दूजी
तुमने सौंदर्य ऐसा अद्वितीय पाया है !

[हाँ भाई हाँ| हम तो कुण्डलिया वाले आयोजन में पहले ही मान चुके हैं|
आप सोलह आने सही कह रहे हैं| मित्रो अंदर की बात आप को बता दूँ -
इस पंक्ति के प्रणेता स्वयं राजेन्द्र भाई ही हैं]



वरमाल लिये’ खड़ी , सोचे वधू घड़ी-घड़ी ,
हाय दैया… लीला तेरी कैसी करतार है ?
ताड़-सा , खजूर जैसा , आठवें अज़ूबे जैसा ,
बिजली का खंभा कोई जैसे बिना तार है !
मानुष है ? जिन्न है ? तैमूर का लकड़दादा ,
बन्ने का बदन जैसे कुतुबमीनार है !
दुल्हनिया गश खाए , सखियां मंगल गाए ,
आया ठूंठ ; ऊंट-सा बछेरी पे सवार है !

[ताड़ सा खजूर जैसा, आठवे अजूबे जैसा............... ठूंठ ; ऊंट-सा................ ये कल्पना
तो पहले की तीनों कल्पनाओं से एक दम डिफ़्रेंट आई है भाई| तैमूर का लकड़दादा,
भाई आप तो हमें बचपन वाली कोमिक्स की दुनिया में ले गए|
हास्य के अद्भुत रंग बिखेरे हैं आपने|]

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और अब बारी है विशेष पंक्ति वाली समस्या पूर्ति की| इस मंच की पहली विशेष पंक्ति पर पहली प्रस्तुति आई है राजेन्द्र भाई के द्वारा| आपने इस पंक्ति पर छन्द लिखने की ठानी और कर भी दिखाया| इस पंक्ति को ले कर अपेक्षा के ऑल्मोस्ट करीब हैं आप| छन्द शिल्प एक ऐसा विषय है जिस पर अलग अलग व्यक्ति अलग अलग मत रखते हैं| इन सब बातों के बावजूद कहना होगा कि आज के दौर में जब कवियों को छंदों में विशेष लगाव रह नहीं गया है, ऐसे में मित्र राजेन्द्र जी द्वारा इस दिशा में उठाए गए कदम की भूरि-भूरि प्रशंसा की जानी चाहिए|

साधारण भाषा में कहें तो श्लेष अलंकार यानि रहस्य बनाए रखते हुए डबल मीनिंग वाली बात| बात का अर्थ वक्ता और श्रोता अपने अपने हिसाब से निकालने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिये जाएँ|

अश्लील पक्ष को नज़र अंदाज़ कर दें, तो कादर खान और आनंद बक्षी जी ने फिल्मों में इस का भरपूर उपयोग किया है| श्लेष अलंकार के बारे में और अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें|

तो आइये अब पढ़ते हैं उस विशेष पंक्ति वाली पहली प्रस्तुति:-


घर में न हो तो सूना-सूना लगे घर ; कोई
चीज़ न ठिकाने मिले और चूल्हा जले ना !
मिले न कलाई में मरीज़ की तो बैद कहे
जान का है ख़तरा जो टाले से भी टले ना !
साथ न निभाए तो शरीर मुरझाए , और
दुनिया में घर भी किसी का फूले-फले ना !
जीवन-आधार नारी-नाड़ी’ ; स्वर्णकार कहे
काम जीव का कोई भी नारबिन चले ना

[राजेन्द्र भाई ने 'नार' शब्द के जो दो अर्थ लिए हैं उन में से एक है नारी / स्त्री और दूसरा
है नाड़ी| मंच की प्रार्थना पर आप ने अपना सर्वोत्तम प्रस्तुत कर के साबित किया है कि
आप छंदों को ले कर कितने संजीदा हैं| व्यक्तिगत रूप से मैं आप के इस प्रयास की
जितनी भी तारीफ करूँ कम होगी]




हर मंच का दायित्व होता है कि स्थापित रचनाधर्मियों के साथ साथ नवोदित एवम् स्थापित परंतु विधा विशेष में आरम्भिक प्रयास करने वाले कवि / कवियात्रियों को भी स-सम्मान स्थान दें| इस क्रम में अगली बार हम कुछ नये सदस्यों से मिलेंगे और उन के प्रयासों को पढ़ेंगे| जिन सदस्यों को अपने छन्दों में कुछ सुधार की ज़रूरत लग रही हो, वे जल्द से जल्द नये छन्द भेजने की कृपा करें|

आप सभी राजेन्द्र भाई के कल्पना लोक की सैर करें और ये अद्भुत रचना संसार आप को कैसा लगा, टिप्पणियों के माध्यम से व्यक्त कर इस साहित्यिक आयोजन को वेग प्रदान करें, और हम वही करते हैं - एक और पोस्ट की तैयारी|

जय माँ शारदे!

14 टिप्‍पणियां:

  1. जै हो .... मज़ा आ गया ... भाई सवर्णकार जी को बधाई ...

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  2. सारे ही छंद शानदार हैं। हर घनाक्षरी यह बता रही है कि राजेन्द्र जी इस विधा में भी किसी से कम नहीं हैं और श्लेष अलंकार वाली घनाक्षरी तो कमाल की है। बहुत बहुत बधाई राजेन्द्र जी को।

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  3. भाई राजेंद्र जी मन गदगद हो गया..क्या छंद लिखें हैं आपने...वाह...नारी-नाडी वाले छंद में आपने अपने आपको उस्ताद साबित किया है...मैं तो हमेशा कहता हूँ और कहता रहूँगा के आप माँ सरस्वती के लाडले पुत्र हैं...माँ की कृपा आप पर सदा यूँ ही बनी रहे बस ये ही प्रार्थना करते हैं.

    नीरज

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  4. सभी छंद लाज़वाब..राजेन्द्र जी का कोई ज़वाब नहीं..हार्दिक बधाई और शुभकामनायें..

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  5. भाई राजेन्द्र की घनाक्षरियों का वैशिष्ट्य कथ्य की मौलिकता, बिम्बों का अनूठापन तथा प्रतीकों का देशज जीवन्तता से जुदा होना है. गति, यति, लय और प्रवाह में वे स्वयं तो इन्हें साध लेंगे किन्तु अन्य जनों को विशेष प्रयास करना होगा. अंतिम घनाक्षरी में शब्द चमत्कार और फिर उसे छंद के बीच में ही सुलझाना असाधारण है. बधाई.

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  6. आनंद आ गया।
    इन मनभावन छंदों के लिए राजेन्द्र जी को हृदय से बधाई।
    शब्दों की शिल्पकारी में राजेन्द्र जी दक्ष हैं।

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  7. शुक्रिया आपका चतुर्वेदीजी जिन राजेन्द्र स्वर्णकार मिलायो ,सोना क्या सुनार को ही उठाय लाये .आप .

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  8. राजेन्द्र भाई बहुत ही सुयोग्य एवं प्रतिष्ठित रचनाकार हैं ! उनकी लेखनी की जितनी प्रशंसा की जाये कम ही होगी ! इतनी सुन्दर पंक्तियों को पढ़ कर आनंद आ गया ! बधाई स्वीकार करें !

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  9. आदरणीय वरिष्ठजनों , मित्रों , स्नेहीजनों
    सादर प्रणाम ! नमस्कार !

    आप सबके स्नेह , प्रोत्साहन और आशीर्वाद के लिए आभार !

    # पिछले समस्या पूर्ति अंकों में सुरेन्द्र सिंह जी , महेंद्र वर्मा जी , योगराज प्रभाकर जी की शानदार रचनाओं के लिए मेरी ओर से यहीं बहुत बहुत बधाई स्वीकार करने की कृपा करें ।
    मेरी माताजी का स्वास्थ्य सही न होने के कारण मैं पहुंच नहीं पा रहा … कल सवेरे उन्हें हॉस्पीटल एड्मिट करना है … … …


    हार्दिक शुभकामनाओं सहित

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  10. तीनों ही छंद दिल को भा गए .....बधाई राजेंद्र जी!, बधाई नवीन जी ! सोने के ढेर से हीरा जो तलाशा !

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  11. //घर-परिवार है साक्षात् स्वर्ग ; स्वर्ग यह
    त्याग श्रद्धा स्नेह सहयोग से सजाइए !//


    (वाकई दुरुस्त फ़रमाया अपने - घर परिवार से बढ़ कर और स्वर्ग क्या हो सकता है ! इस चरण में को संदेश आपने दिया है - बहुत ही कमाल का है ! वाह वाह वाह !)


    //ईर्ष्या [ईरष्या] जलन द्वेष डाह चालबाजियों से
    निंदा शक़ बैर से , माहौल न बिगाड़िए !//

    (बस बस बस - ये ही वो सब चीज़ें हैं जो घरों की बुनियादें तक हिला देती हैं, अगर इनसे दूर रहा जाए तो घर का माहौल कभी बिगड़ ही नहीं सकता है !)


    //चैनलों के किस्सों की चपेट में उलझ कर
    गृहस्थी बसी-बसाई हाथों न उजाड़िए !
    देवियों ! माताओं ! बहनों ! भाभियों ! विनति है –
    राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइए !//


    (यह बात बहुत कमाल की और बिल्कुल नई कही है आपने - वाह ! ये हकीकत है की सास बहू वाले सीरिअलों ने भी बहुत जगह घर तोड़ने में बड़ी तगड़ी भूनिका निभाई है ! आपकी काव्य कला के साथ साथ आपकी पैनी पारखी दृष्टि को भी शत शत नमन !)



    //कलियां कोमल अंग-अंग में सजी हैं तेरे
    संदली बदन तेरा दूध में नहाया है !
    रूप मनहरण लुभावना है सुंदरिये !
    देख’ तेरी सुंदरता चांद भी लजाया है !
    गढ़ के विधाता-सा चितेरा भी हुआ है धन्य
    तुम्हें चाव लगन से जिसने बनाया है ।
    धरती क्या , स्वर्ग में पाताल में भी नहीं दूजी
    तुमने सौंदर्य ऐसा अद्वितीय पाया है !//


    (ओये होए होए होए, प्रभु जी कुछ औरों के कहने के लिए भी बाकी छोड़ेंगे या की नहीं ? यह छंद भी झरने की रवानी लिए हुए दौड़ता चला जाता है - दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ !)


    //वरमाल लिये’ खड़ी , सोचे वधू घड़ी-घड़ी ,
    हाय दैया… लीला तेरी कैसी करतार है ?
    ताड़-सा , खजूर जैसा , आठवें अज़ूबे जैसा ,
    बिजली का खंभा कोई जैसे बिना तार है !//


    (क्या मंज़रकशी की है मेरी सरकार, हद्द है ये तो हद्द - वाह वाह ! बिजली का खम्बा ओर वो भी तार - हाय हाय हाय !)



    //मानुष है ? जिन्न है ? तैमूर का लकड़दादा ,
    बन्ने का बदन जैसे कुतुबमीनार है !//


    (हा हा हा हा हा हा हा - कमाल बेमिसाल !)


    //दुल्हनिया गश खाए , सखियां मंगल गाए ,
    आया ठूंठ ; ऊंट-सा बछेरी पे सवार है !//

    (भाई जी, दूल्हे की जो सिफात आपने गिनाई हैं - और उस पर सोने पे सुहागा उस गरीब को ऊँट बना कर बछेरी पर चढ़ा दिया है, तो दुल्हनिया अगर गश नहीं खाएगी तो और क्या खायेगी? )

    आदरणीय राजेन्द्र स्वर्णकार जी, यह तीनो घनाक्षरी छंद "फाइव स्टार" रेटिंग के हक़दार हैं ! मैं दिल से बधाई देता हूँ इन शाहकारों के लिए !

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  12. वाह वाह वाह आनंदम प्रीतम

    राजेन्द्र जी को हार्दिक बधाई

    तीनो घनाक्षरी छंद बहुत पसंद आये

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  13. राजेन्द्र जी का कोई ज़वाब नहीं, हार्दिक बधाई और शुभकामनायें|

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