Palash |
लुप्त हों न पलाश
बिन तुम्हारे होलिका त्यौहार
था इक कल्पना भर
हाट में बाक़ायदा
तुम स्थान पाते थे बराबर
अब कहाँ वो रंग
वो रंगीन भू-आकाश
लुप्त हों न पलाश
'मख-अगन' सा दृष्टिगोचर
है तुम्हारा यह कलेवर
पर तुम्हारे पात नर ने
वार डाले बीडियों पर
गाँव तो सब जानते हैं
नगर समझें काश
लुप्त हों न पलाश
शब्दों के अर्थ
हाट = बाजार
मख-अगन = हवन की अग्नि
कलेवर = शरीर
पात = पत्ते / पत्तियाँ
पर न हारे तुम तनिक भी
जवाब देंहटाएंऔ हुए न हताश
खिलते हुए पलाश ...
बहुत सुन्दर नव गीत है ... नवीन चेतना का आगार करता ...
बहुत कोमल नव गीत.. बहुत सुन्दर... अदभुद...
जवाब देंहटाएं'मख-अगन' सा दृष्टिगोचर
जवाब देंहटाएंहै तुम्हारा यह कलेवर
पर तुम्हारे पात नर ने
वार डाले बीडियों पर
पर न हारे तुम तनिक भी
औ हुए न हताश
खिलते हुए पलाश
अद्भुत चित्रण! भावों का, बिम्बों का। लाजवाब!!
बड़ा ही सुन्दर गीत, पलाश के रंगों जैसा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बिम्बो के साथ पलाश के अद्भुत रंग और हिम्मत ... बहुत खूबसूरत कविता .. सादर
जवाब देंहटाएंबहुत कोमल नव गीत, पलाश के रंगों जैसा।
जवाब देंहटाएंनव रंग, नव चेतना भरता सुंदर नव गीत.
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण कविता और सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंआशा
इस भाव पूर्ण नवगीत ने १९५०-१९६०के दशकों की होली धुलेंडी की याद ताज़ा कर दी .पलाश के फूल रात को पानी में भिगो दिए जाते थे ,एक बड़ी देगची होती थी पीतल और ताम्बे के मिश्र की उसमे चूना भी इन रंगों को गाढा करने के लिए मिला दिया जाता था .जिस पर ये रंग पड़ता था रंग जाता था नशा भी करता था इसमें भीगते चले जाना .रासायनिक रंगों का चलन न था तब जलता हुआ पलाश जंगल की आग सा ,विरहनी के बदन सा सुलगता हमने मध्य प्रदेश की वादियों में भी देखा है .कुदरत के सारे रंग इस दौर में कृत्रिम रसायन हज़म कर गए .वरना वानस्पतिक रंग जीवन के संग होते थे .बधाई इस नव गीत की .भावपूर अर्थ पूर्ण अतीत को दुलारता गीत .
जवाब देंहटाएंअच्छा नवगीत है। खिलते हुए पलाश अब स्मृतियों में ही बचे हैं!
जवाब देंहटाएंपर न हारे तुम तनिक भी
जवाब देंहटाएंऔ हुए न हताश
खिलते हुए पलाश
sunder nav geet hai ati sunder
bahut abhut badhai
saader
rachana