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चौथी समस्या पूर्ति - घनाक्षरी - मैंने कहा पति हूँ मैं, कोई चपड़ासी नहीं

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन


आप लोगों के सक्रिय सहयोग के कारण अब इस घनाक्षरी वाले आयोजन में विशेष पंक्ति पर कम से कम 4 प्रस्तुतियों के साथ 14 से अधिक सरस्वती पुत्रों / पुत्रियों के छन्द पढ़ने का अवसर मिलना तय है| मंच आगे भी प्रयास करता रहेगा ताकि रचनाधर्मी अपना सर्वोत्तम लोकार्पित करें| आज की पोस्ट में हम मिलते हैं तीन नए सदस्यों से|




चितचोर बना मोर, पंख फैला थिरकता
रंगों की छटा बिखेर, मन में समाया है |


तेरा ये मधुर स्वर ,कानों में गूंजती धुन
जब स्वर पास आया, और पास लाया है|


अदभुत रूप तेरा, आकर्षित करता है
अपने जादू से तूने सबको लुभाया है|


मृदु मुसकान भरी, ऐसी प्यारी छवि तेरी
देख तेरी सुंदरता, चाँद भी लजाया है||

[आदरणीया निर्मला जी के लिए प्रयुक्त करने वाले शब्द ही इनके लिए भी प्रयुक्त
करूंगा - आशा जी आप ने इस उम्र में घनाक्षरी सीखने का जो बीड़ा उठाया
उस के लिए आप के जीवट को प्रणाम| सच सीखने की कोई भी उम्र नहीं
होती| चितचोर बना मोर ............. अदभुत रूप तेरा............
मृदु मुसकान ............. वाह क्या शब्द संयोजन किए हैं
आपने, वाह, आनंद आ गया|]









राग से ही राज आवे, रार को ना राम भावे
सार सार बात यही, खार को मिटाइए।
पत्‍नी को जलाए पति, रति में ही गति रहे
यति कैसे घर आए, मति को जगाइए।
बहु बोले सास अब, बेटे से तो आस नहीं
मैं तो चली काम पर, घर को सम्‍भालिए।
भाई भाई लड़ रहे, राई राई बंट रहे
राज‍नीति का अखाड़ा, घर ना बनाइए।

[कमाल है अजित जी पहली बार में ही इतना सुंदर छन्द| भाई लोग सँभल जाइए,
अब बहनें आ गई हैं ज़ोर शोर से| अजित जी, 'रति-गति-मति' में आपने
अनुप्रास का बहुत ही सुंदर प्रयोग किया है| इस के अलावा, बेटे से तो
आस नहीं - ऐसी पंक्ति कोई नारी शक्ति ही ला सकती थी|
सुंदर नहीं - बहुत सुंदर छन्द|]








सुबह के आठ बजे, बीवी की आवाज़ सुनी,
गर साँस ले रहे तो, अब उठ जाइए.

नौकर की छुट्टी आज, झाड़ू पोंछे जैसे काज,
मुझको आवे है लाज, आप निपटाइए,

मैंने कहा पति हूँ मैं, कोई चपड़ासी नहीं,
आप ऐसा मुझपे न, हुकम चलाइए.

सुबह उठते ही क्यों, बेलन दिखाती मुझे,
राजनीति का अखाड़ा, घर ना बनाइए.

[ये हमारे फेसबुक वाले मित्र हैं| पैरोडियों के माध्यम से लोगों को अक्सर गुदगुदाते
रहते हैं| उसी क्रम में इन्होंने, नीतिगत वाली पंक्ति पर हास्य प्रस्तुति दे दी है| क्या
करें भाई, भाभीजी के बेलन जी का चमत्कार जो है| इन्होंने औडियो क्लिप भी
भेजी थी, पर वो मुझसे अपलोड नहीं हो पायी| आइये हम इन के दुख में इन
को ढाढ़स बँधाते हैं, बाकी और क्या कर सकते हैं हम और आप :) ]


आज की इस पोस्ट से दो बातें सिद्ध हुईं, पहली तो ये कि यदि हम बहाने बनाना छोड़ कर कुछ करने की ठानें तो अवश्य कर सकते हैं और दूसरी ये कि घनाक्षरी [कवित्त] वाकई ऐसा जादुई छन्द है जो जाने अनजाने में अनुप्रास अलंकार ले ही आता है|

आइये हम सभी मंच पर इन तीनों सदस्यों का स्वागत और उत्साह वर्धन करें|

अब लगता है हफ्ते में दो से ज्यादा पोस्ट्स लगानी चाहिए| फिर मिलते हैं, जल्द ही अगली पोस्ट के साथ|


जय माँ शारदे!