27 जून 2011

चौथी समस्या पूर्ति - घनाक्षरी - बन्नो के हैं आभूषण-परिधान भ्रष्टाचार

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन

दो नौजवान कवियों के छन्द पढ़ने के बाद, इस आयोजन के नौवें चक्र में आज हम पढ़ेंगे आदरणीय श्री बृजेश त्रिपाठी जी के छंदों को| इस पोस्ट के साथ इस आयोजन के कवियों की संख्या हो गई ११ और घनाक्षरी छंदों की संख्या हो गई ३०|

आदरणीय श्री बृजेश त्रिपाठी जी को इस मंच पर हम पहले भी पढ़ चुके हैं| जैसा कि हमने पिछली पोस्ट में कहा था कि कवि की कल्पना अथाह सागर की भांति होती है, उसी को चरितार्थ करते हैं आप के छन्द| अनुभवी निगाहें, बात में से कैसे बात निकाल लेती हैं, इस का अच्छा उदाहरण दे रहे हैं आप| हालाँकि रस परिवर्तन जैसी कुछ रियायतें ली हैं आपने, परन्तु उम्र को दरकिनार करती छन्द साहित्य की सेवा और विषय की विशिष्टता उसे ढँक देती है| आइये पढ़ते हैं - भ्रष्टाचार पर निशाना साधते इन के छंदों को:-




साधु-संतो-योगियों पे, कीजिये न अत्याचार,
संतों से ले कर सीख, भ्रष्टता मिटाइए|

सोती हुई जनता पे, लाठियाँ चलाते हुए,
थोडा थमिएगा, थोडा - सा तो शरमाइए|

काले धन की वापसी - पे हैरानी होती है क्यों,
काले धन को वापस, देश में ही लाईये|

खुद ही जो दोषी हों तो, करें प्रायश्चित आप,
राजनीति का अखाडा, घर न बनाईये||

[सम सामयिक विषय पर दो टूक बात कही है आपने| काले धन की वापसी
होनी ही चाहिए| और 'खुद ही दोषी हों' वाली बात तो क्या कहने|
नीतिगत विषय पर उम्दा प्रस्तुति]


ऊबड़-खाबड़ चाँद - से न तुलना करो जी
जानिए कि उसने क्यों - खुद को छिपाया है|

कहाँ सदरीति, कहाँ - रूखा-सूखा निशापति,
तुलना की कल्पना से, व्योम घबड़ाया है|

लाठी - गोली - आँसू-गैस, सारे हथकंडे फेल,
ब्यूटी-कम्पटीशन में, वो हड़बड़ाया है|

जग की अनीति पे तू, भारी सदा सदरीति
देख तेरी सुन्दरता, चाँद भी लजाया है||

[ओहो, इस पंक्ति को ले कर इस तरह की प्रस्तुति!!! है न अनुभव वाली बात!!!!
वाकई सदरीति की भला क्या तुलना रूखे सूखे निशापति से| रस-विषय
परिवर्तन जो थोड़ा सा है भी, विशिष्टता को ले कर आया है|
'ब्यूटी कम्पटीशन' का बहुत ही मनोहारी प्रयोग किया है
आपने, बधाई के पूरे पूरे हकदार हैं आप]


बन्नो सरकारी वेश-भूषा में सुन्दर लगे,
बन्ने का तो भेष ही, रोचक समाचार है|

बन्नो के हैं आभूषण-परिधान भ्रष्टाचार,
बन्ने का तो भगवा दुपट्टा कंठहार है|

बन्नो शरमीली, मुँह - ढाँपे फिरे दशकों से,
बन्ने का तो ऊँचा स्वर एक इश्तहार है|

बन्नो खिसियाई बिल्ली, खम्भा नोचने में लगी,
बन्ने का बदन जैसे क़ुतुब मीनार है||

[ हास्य रस पर केन्द्रित इस पंक्ति पर आपने गज़ब की
व्यंग्यातमक प्रस्तुति दी है| कवि की कल्पना है भाई]


जहाँ चाह, वहाँ राह| कवि ठाने, तो कल्पनाएं खुद-ब-खुद चल कर आती हैं उस के पास| रूपक और उपमाएँ हाजिर रहती हैं उस के दरबार में| विषय - कल्पना - व्याकरण - रस - छन्द -अलंकार वगैरह का संसार बहुत बड़ा है| आलोचक और समीक्षक अभी भी उस पर काम कर रहे हैं, निष्कर्ष प्रतीक्षारत है :)| परिवर्तन संसार का अकाट्य नियम है|

छंदों को सिर्फ एक फॉर्मेट / उपकरण मानते हुए, यदि उन पर समय के अनुसार हम लोग अच्छे, तार्किक और जन-साधारण को रुचिकर प्रयोग करते रहेंगे, तो इन छंदों को अगली पीढ़ियों तक 'सहज-स्वीकृत' रूप में पहुँचा पाएंगे, अन्यथा सत्य हम सब जानते ही हैं|

आदरणीय त्रिपाठी जी के इन अनमोल छंदों का रस पान करने के साथ साथ इन पर अपनी टिप्पणी रूपी पुष्प वर्षा आप को करनी है और हमें तैयारी करनी है एक और हिलाऊ टाइप पोस्ट की|

कुछ और मित्रों ने भी छन्द भेजे हैं, उन की लगन और दृढ़ इच्छा शक्ति को प्रणाम| व्यस्तता वश उत्तर पेंडिंग हैं, पर जल्द ही ये काम भी शुरू किया जायेगा| तब तक उन सभी मित्रों से निवेदन है कि इस आयोजन की घनाक्षरी छन्द संबन्धित अब तक की सभी पोस्ट पढ़ें, घोषणा वाली पोस्ट को बार बार पढ़ें, दी गईं औडियो लिंक्स को बार बार सुनें, इस से हमारा और उन का - दोनों का काम काफी आसान हो जाएगा| उन की आसानी के लिए सारी की सारी लिंक्स एक बार फिर से यहीं इसी पोस्ट में नीचे दी गई हैं|


इस आयोजन को आप लोगों द्वारा प्रदत्त सहयोग के लिए बहुत बहुत आभार| मित्रो, कभी कभी ठाले-बैठे भी देख लिया करो, भाई कवि हैं हम भी तो, आप की राय की प्रतीक्षा हमें भी रहती है|


जय माँ शारदे!

12 टिप्‍पणियां:

  1. त्रिपाठी जी, बधाई...
    बहुत खूबसूरत छंद लिखे हैं आपने
    आनंद आ गया।

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  2. बहुत अच्छे छंद हैं। बृजेश जी अनुभव साफ झलकता है इन छंदों में। शानदार घनाक्षरियों के लिए उन्हें बहुत बहुत बधाई।

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  3. छंद पढकर अच्छा लगा.सुन्दर ढंग से अपनी बातें कह् दीं हैं.

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  4. अपनी बात कहने का नया अंदाज |बधाई
    "बन्नो सरकारी वेश भूषा में अच्छी लगे " बहुत सही है
    आशा

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  5. ये बन्नो और दुल्हा तो जग ज़ाहिर हैं .लेकिन एक और क्वारा बन्ना है जो ४५ का हो चला लेकिन ब्याह न करे कहवे -वंश -शासन मिटाने का इससे बढ़िया ज़रिया क्या हो सकता है . घनाक्षरी एक के बाद एक कामल कर रही है .

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  6. त्रिपाठीजी ने समसामयिक विषय पर छंद लिखकर वर्तमान परिवेश को छंदों में ढाल दिया है, बहुत श्रेष्‍ठ। बधाई।

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  7. आप सभी सुधी जनों को प्रणाम आप की मधुर टिप्पणिया उत्साह बढाती हैं ... सुमधुर छंदों का यह प्रवाह आगे भी बढ़ता रहे हम सभी का यही प्रयास होना चाहिए

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  8. अपनी बात को इस तरीके से भी रहा जा सकता है ...छंदों के माध्यम से ... बहुत बड़ी बात है ... बुत लाजवाब छंद हैं सारे ... बहुत बहुत शुक्रिया ब्रिजेश जी का ...

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  9. त्रिपाठी जी ! आपके सारे छंद एकदम हटके रहे | बहुत आनंद आया पढ़ कर | बहुत खूब !!!!!

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  10. त्रिपाठी जी के चाँद से तुलना वाले छंद और बन्ने बननी के व्यंग से सने छंद अद्वितीय हैं...एक लोहार की सौ सुनार की वाली उक्ति सत्य हो गयी है...त्रिपाठी जी की लेखनी को नमन.

    नीरज

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  11. छंद ते अच्छे बन ही गये\ मगर आजकल वो संत कहाँ जिनसे कुछ सीख सकें दुकाने हैं जहाँ धनवान लोगों की ही पहुँच है। धन्यवाद।

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  12. बहुत सुन्दर और गहरे अर्थों के साथ धनाक्षरी छंद ..बहुत अछे लगे ..ब्रिजेश त्रिपाठी जी को धन्यवाद और नवीन भाई को सादर धन्यवाद

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