ठाले बैठे परिवार से अभिन्न रूप से जुड़े हमारे स्नेही राजेन्द्र भाई से लगभग हर ब्लॉगर परिचित है। पहली बार उन्होंने एक ग़ज़ल की मार्फ़त वातायन की सूची को सुशोभित किया है ।स्वागत है बड़े भाई !
ढूँढता हूँ , मिला नहीं कोई
आदमी का पता नहीं कोई
नक़्शे-पा राहे-सख़्त पर न मिले
याँ से हो' क्या चला नहीं कोई
कल बदल जाएगी हर इक सूरत
देर तक याँ रहा नहीं कोई
आइनों से न यूँ ख़फ़ा होना
सच में उनकी ख़ता नहीं कोई
हर घड़ी जो ख़ुदा ख़ुदा करता
उसका सच में ख़ुदा नहीं कोई
आज इनआम मिल रहे इनको
क़ातिलों को सज़ा नहीं कोई
दिल का काग़ज़ अभी भी कोरा है
नाम उस पर लिखा नहीं कोई
शाइरी से भी दिल लगा देखा
कुछ भी हासिल हुआ नहीं कोई
वो तो राजेन्द्र यूं ही बकता है
उससे होना ख़फ़ा नहीं कोई
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून
फाएलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
2122 1212 22