शिव स्तुति - यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'

यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'
11.05.1931 - 14.03.2005
गुरुदेव श्री यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम' जी 'ठाले-बैठे' पर पहली बार।
श्री गणेश, 'गणेश पिता शिव जी' की स्तुति से कर रहे हैं। आने वाले
समय में एक एक कर के हम 'प्रीतम' जी विरचित 'दैव-स्तुति', 
'ऋतु वर्णन', 'समस्या-पूर्ति', 'सामाजिक सरोकार', राष्ट्र हित 
चिन्तन'  तथा ऐसे अनेक विषयों से जुड़े छंदों को भी पढ़ेंगे।

बँधी मुट्ठी में जैसे कोई तितली फड़फड़ाती है - पवन कुमार


शायर पवन कुमार



 शायर पवन कुमार का दमदार आग़ाज़ “वाबस्ता
समीक्षा - मयंक अवस्थी
प्रकाशन संस्थान, 4268-B/3, दरिया गंज
नई दिली -110002

चार ग़ज़लें - नरहरि अमरोहवी

[१]

क़ब्र के सिरहाने आशिक टूट कर रोया कोई
ढूँढिये मोती वहाँ मिल जाएगा यक़ता कोई

अब नहीं मुमकिन यहाँ ठंडी हवा के वास्ते
साँस लेने को खुले खिड़की या दरवाज़ा कोई

दिल में यही तमन्ना है सारी दुनिया की सैर करूँ


संस्कार पत्रिका ने इस कविता को अप्रैल'१२ के 'पर्यटन विशेषांक' में [भारत पर केन्द्रित करते हुए] छापा है।



देश-गाँव-शहरों-कस्बों से अनुभव का हर पृष्ठ भरूँ
दिल में यही तमन्ना है सारी दुनिया की सैर करूँ

“रहगुज़र” – अक़ील नोमानी ( समीक्षा -- मयंक अवस्थी)

“रहगुज़र”  – अक़ील नोमानी                   ( समीक्षा -- मयंक अवस्थी)


अक़ील नोमानी साहब का तअर्रुफ मैं एक ही पंक्ति मे कहना चाहूँगा – जो लोग ग़ज़ल के दुनिया से वाक़िफ नहीं हैं वो अकील नोमानी को जानते हैं और जो लोग गज़ल की दुनिया से वास्ता रखते हैं वो अक़ील नोमानी को मानते हैं । यह नाम इलेक्ट्रानिक मीडिया , मुशायरों और अदबी रिसालों में इतना गूँजता है कि जो लोग शाइरी की बज़्म से ना आशना हैं वो भी उनको जानते हैं । शोर की इस दुनिया में आपकी आवाज़ पहचानी जाती है और शोर इस आवाज़ को सुनने के लिये मुश्ताक और मुंतज़िर रहता है और इज़हार के इम्कान होने पर सिजदे भी करता है । पिछले 30-35 बरसों से एक मोतबर गज़ल के ताइर ने जब देवनागरी के  आसमान में उड़ान भरी तो आसमान उसकी कुव्व्वते –परवाज़ का शाहिद भी हुआ काइल भी  और प्रो वसीम बरेलवी की बात सच हुयी कि उनकी शायरी की रमक उनको नयी सम्तों का ऐतबार बनायेगी – प्रो कौसर मज़हरी कह ही चुके हैं कि उनकी गज़लें उर्दू शाइरी में इज़ाफा तसलीम के जायेंगी – सच यह है कि हम अब हिन्दी और उर्दू के फर्क से उबर चुके हैं –हमारी ज़ुबान हिन्दुस्तानी है और अकील साहब की  हर ग़ज़ल शाइरी की दुनिया का हासिल है । क्यों न हो ?!! सच्ची शाइरी क्यों दिलो ज़ेहन पर तारी हो जाती है ?! इसकी कुछ वाज़िब दलीलें हैं ---

आदमी का पता नहीं कोई - राजेन्द्र स्वर्णकार

   
ठाले बैठे परिवार से अभिन्न रूप से जुड़े हमारे स्नेही राजेन्द्र भाई से लगभग हर ब्लॉगर  परिचित है।  पहली बार उन्होंने  एक ग़ज़ल की मार्फ़त वातायन की सूची को सुशोभित किया है ।स्वागत है बड़े भाई !




ढूँढता हूँ , मिला नहीं कोई
आदमी का पता नहीं कोई

नक़्शे-पा राहे-सख़्त पर न मिले
याँ से होक्या चला नहीं कोई

कल बदल जाएगी हर इक सूरत
देर तक याँ रहा नहीं कोई

आइनों से न यूँ ख़फ़ा होना
सच में उनकी ख़ता नहीं कोई

हर घड़ी जो ख़ुदा ख़ुदा करता
उसका सच में ख़ुदा नहीं कोई

आज इनआम मिल रहे इनको
क़ातिलों को सज़ा नहीं कोई

दिल का काग़ज़ अभी भी कोरा है
नाम उस पर लिखा नहीं कोई

शाइरी से भी दिल लगा देखा
कुछ भी हासिल हुआ नहीं कोई

वो तो राजेन्द्र यूं ही बकता है
उससे होना ख़फ़ा नहीं कोई
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar


बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून
फाएलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
2122 1212 22

प्यार में थोड़ी सी कमी, कम नहीं होती - अक़ील नोमानी - मयंक अवस्थी


Aqeel Nomani
“ रहगुज़र” – अक़ील नोमानी ( समीक्षा -- मयंक अवस्थी)

लगता है कहीं प्यार में थोड़ी सी कमी थी
और प्यार में थोड़ी सी कमी, कम नहीं होती -1

यही ज़मीन यही आसमाँ था पहले भी
कहीं मिलेंगे ये दोनो, गुमाँ था पहले भी -2