नमस्कार
पुरानी
बात को दुहराना होगा एक बार। काका हाथरसी जी का फॉर्मेट उन्हों ने शुरू किया या फिर
इस फॉर्मेट के सिद्ध होने का सेहरा उन के सिर पर बँधा, जो
भी हो हम इस छंद को काका हाथरसी जी के नाम से जानते हैं। यह कुण्डलिया जैसा ही दिखता
है। दिखने को अमृत ध्वनि छंद भी कुण्डलिया जैसा ही दिख सकता है परन्तु दौनों में अन्तर
है। हम बात कर रहे हैं काका हाथरसी वाले फॉर्मेट की। मुझे दुख हुआ जब देखा कि लोग इस
छंद को ‘छक्का’ कह रहे हैं। मुझे लगा कि यदि गीत के बाद नवगीत आ सकता है तो ‘छक्का
कहने की बजाय हम ‘कुण्डलिया छंद’ को उस के नये स्वरूप में ‘नव-कुण्डलिया छन्द’ भी तो
कह सकते हैं। यह मेरा प्रस्ताव है और क़तई ज़ुरूरी नहीं कि सभी विद्वान इस बात को मानें। मेरे लिये
यह नव-कुण्डलिया छन्द है। अधिकतर लोग इस छन्द को अधिकतम सीमा तक ठीक-ठाक कह / लिख लेते हैं
सो वह भी एक कारण है इस छन्द को इस बार के आयोजन में लेने का।
यह
छन्द भी छह पंक्तियों का होता है।
पहली
दो पंक्तियाँ दोहे वाली। दोहा का विधान यहाँ ब्लॉग पर है ही। और अधिकांश साथी उस से
सु-परिचित भी हैं।
तीसरी
से छठी पंक्ति रोला टाइप। ध्यान रहे एकजेक्ट रोला नहीं, जस्ट
रोला टाइप। यानि हर पंक्ति में चौबीस मात्रा।
अंत में ‘दो गुरु’ या ‘एक गुरु दो लघु’ या ‘दो लघु एक गुरु’ या ‘चार लघु’।
पहला
और अन्तिम शब्द समान होना अनिवार्य नहीं।
और
अब करते हैं इस आयोजन की घोषणा। मञ्च के साथियों से विमर्श के अनुसार आयोजन की घोषणा
निमन्वत है :-
आयोजन
अगले वर्ष के पहले सप्ताह में शुरू किया जायेगा।
छन्द
– रचनाधर्मी अपनी सुविधानुसार कुण्डलिया या नव-कुण्डलिया छन्द का चुनाव कर सकते हैं।
छन्द
संख्या – कम से कम एक और अधिक से अधिक तीन। छन्द कोई भी रहे संख्या अधिक से अधिक तीन।
विषय
/ पंक्ति / शब्द
[1]
मैं
[2]
हम
[3]
तुम
देखने में ये सिर्फ़ तीन शब्द हैं पर यदि गहराई से देखें तो विषय-रस-सन्दर्भ वग़ैरह अपरिमित हैं। बल्कि हमें अपने साथियों के अन्तर्मन के उस भाग के दर्शन करने को मिल सकते हैं, जो हो सकता है अब तक उजालों में न आ सका हो।
जिन
लोगों ने सिर्फ़ एक ही या दो छन्द भेजने हों, वे व्यक्ति ऊपर दिये गये शब्दों में
से किसी भी एक या दो शब्द / शब्दों से छन्द की शुरुआत कर सकते हैं। एक शब्द एक छन्द। कहने की
आवश्यकता नहीं कि यह शब्द बीच में कई बार आ सकते हैं, यहाँ बात
सिर्फ़ शुरू के शब्द की है।
जिन
लोगों ने तीन छन्द भेजने हों वह एक छन्द की शुरुआत ‘मैं’ से, दूसरे
की ‘हम’ से और तीसरे छन्द की शुरुआत ‘तुम’ शब्द से करें।
छन्द
कुण्डलिया ले रहे हैं तो उस का अनुपालन पूरी तरह करने की कृपा करें। कुण्डलिया छन्द
का विधान इस ब्लॉग पर उपलब्ध है, जानने के लिये यहाँ क्लिक करें।
साथियो
ऊपर दिये गये तीन शब्द बहुत ही मर्म-पूर्ण शब्द हैं। वैसे तो रचनाधर्मी अपने अन्तर्मन
को मथने के बाद ही किसी रचना को मूर्तरूप दे पाता है; फिर
भी मुझे लगता है कि उपरोक्त तीन शब्दों [मैं – हम – तुम] से शुरू कर के छन्द को कहते
वक़्त रचनाधर्मी एक बड़े ही अच्छे अनुभव से गुजरेंगे। आत्म-चिंतन का बहुत अच्छा अवसर
है। छन्द navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने हैं। तो बस उठाइये
अपनी लेखनी और सार्थक भाग बनिए साहित्यिक उन्नयन का। छन्द-साहित्य को आप की ज़ुरूरत
है।
नमस्कार
.....
आपकी जानकारी ने शिल्प समझने में बहुत मदद की ... आभार नवीन भई ...
जवाब देंहटाएंनव वर्ष आपको बहुत मंगलमय हो ...