आप
की हूक दिल में जो उठबे लगी
जिन्दगी
सगरे पन्ना उलटिबे लगी
बस
निहारौ हतो आप कौ चन्द्र-मुख
जा
ह्रिदे की नदी घाट चढ़िबे लगी
पीउ
तनिबे लग्यौ,
बन गई बौ लता
छिन
में चढ़िबे लगी छिन उतरिबे लगी
प्रेम
कौ रंग जीबन में रस भर गयौ
रेत
पानी सौ ब्यौहार करिबे लगी
मन
की आबाज सुन कें भयौ जै गजब
ओस
की बूँद सूँ प्यास बुझबे लगी
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
[मानकों के अधिकतम निकट रहते हुये उपरोक्त गजल का भावार्थ]
[मानकों के अधिकतम निकट रहते हुये उपरोक्त गजल का भावार्थ]
आप की हूक दिल में जो उठने लगी
जिन्दगी सारे पन्ने उलटने लगी
बस निहारा ही था आप का चन्द्र-मुख
इस हृदय की नदी घाट चढ़ने लगी
पिय जो तनने लगे, बन गई वह लता
छिन में चढ़ने लगी छिन उतरने लगी
प्रेम का रङ्ग जीवन में रस भर गया
रेत पानी सा ब्यौहार करने लगी
मन की आवाज़ सुन कें हुआ ये गज़ब
ओस की बूँद से प्यास बुझने लगी
अपने भावों को ख़ूबसूरती से प्रस्तुति करती सुंदर गजल...!
जवाब देंहटाएंRecent post -: सूनापन कितना खलता है.
अपने भावों को ख़ूबसूरती से प्रस्तुति करती सुंदर रचना...!
जवाब देंहटाएंRecent post -: सूनापन कितना खलता है.
आपकी रचना एक अलग सुख ले कर आती है।
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