ख़ुश्क सहराओं की तक़दीर बदल आते हैं
आप भी चलिये ज़रा दूर टहल आते हैं
आप के जाते ही ग़म आ के पसर जाता है
दिल की दीवार से छज्जे भी निकल आते हैं
एक तो बाग़ में जाते नहीं अब के बच्चे
और जाते हैं तो कलियों को मसल आते हैं
सुनते हैं आप के सीने से लगे रहते हैं ग़म
हम भी जाते हैं किसी सोज़ में ढल आते हैं
एक चिड़िया जो चमन से रही कुछ दिन ग़ायब
आज़ तक उस के ख़यालों में महल आते हैं
: नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22
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