सब कछ हतै कन्ट्रौल में तौ फिर परेसानी ऐ चौं
सहरन में भिच्चम –भिच्च और गामन में बीरानी ऐ चौं
जा कौ डसयौ कुरुछेत्र पानी माँगत्वै संसार सूँ
अजहूँ खुपड़ियन में बु ई कीड़ा सुलेमानी ऐ चौं
धरती पे तारे लायबे की जिद्द हम नें चौं करी
अब कर दई तौ रात की सत्ता पे हैरानी ऐ चौं
सगरौ सरोबर सोख कें बस बूँद भर बरसातु एँ
बच्चन की मैया-बाप पे इत्ती महरबानी ऐ चौं
सब्दन पे नाहीं भाबनन पे ध्यान धर कें सोचियो
सहरन कौ खिदमतगार गामन कौ हबा-पानी ऐ चौं
: नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुनमुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212 2212
सब कुछ है गर कन्ट्रौल में तो फिर परेशानी है क्यों
शहरों में भिच्चम –भिच्च [अत्यधिक भीड़] और गाँवों में वीरानी है क्यों
जिस का डसा कुरुक्षेत्र पानी माँगता है विश्व से
अब भी खुपड़ियों में वही कीड़ा सुलेमानी है क्यों
धरती पे तारे लाने की जिद किसलिए की थी भला
अब कर ही दी तो रात की सत्ता पे हैरानी है क्यों
सारा सरोवर सोख कर बस बूँद भर बरसाते हैं
बच्चों की मैया-बाप पर इतनी महरबानी है क्यों
शब्दों को छोड़ो भावनाओं पर ज़रा करिएगा ग़ौर
शहरों का ख़िदमतगार गाँवों का हवा-पानी है क्यों
सहरन में भिच्चम –भिच्च और गामन में बीरानी ऐ चौं........कहा बात कहि दई भैया... साँचु साँचु
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