कहा तो सब ने सभी से कि है छुपाना क्या।
मगर किसी ने किसी के कहे को माना क्या॥
पराई आँखों से जलधार को बहाना क्या।
नहीं है प्यार तो फिर प्यार का बहाना क्या॥
ये रोज़-रोज़ का ही रूठना मनाना क्या।
मुहब्बतों में सनम जीतना-हराना क्या॥
कभी तो दिल की नदी के भँवर को भी तोड़ो।
नदी किनारे ही पानी को छपछपाना क्या॥
हयात जैसी भी गुजरी, दुरुस्त गुजरी है।
सो रोज़-रोज़ इसे जोड़ना-घटाना क्या॥
न फूल जैसी छुअन और न ख़ार जैसी चुभन।
तुम्हारी यादों को अब ओढ़ना-बिछाना क्या॥
उसे बता दो कि दिल उस का कर दिया खाली।
जो अपना है ही नहीं उस पे हक़ जताना क्या॥
कभी वनों को जलाया कभी बुझाये चराग़।
हवाओ तुमने किसी के मरम को जाना क्या॥
तेरे हुजूर में, तेरी पनाह में रख ले।
यूँ बार-बार मुझे भेजना-बुलाना क्या॥
मगर किसी ने किसी के कहे को माना क्या॥
पराई आँखों से जलधार को बहाना क्या।
नहीं है प्यार तो फिर प्यार का बहाना क्या॥
ये रोज़-रोज़ का ही रूठना मनाना क्या।
मुहब्बतों में सनम जीतना-हराना क्या॥
कभी तो दिल की नदी के भँवर को भी तोड़ो।
नदी किनारे ही पानी को छपछपाना क्या॥
हयात जैसी भी गुजरी, दुरुस्त गुजरी है।
सो रोज़-रोज़ इसे जोड़ना-घटाना क्या॥
न फूल जैसी छुअन और न ख़ार जैसी चुभन।
तुम्हारी यादों को अब ओढ़ना-बिछाना क्या॥
उसे बता दो कि दिल उस का कर दिया खाली।
जो अपना है ही नहीं उस पे हक़ जताना क्या॥
कभी वनों को जलाया कभी बुझाये चराग़।
हवाओ तुमने किसी के मरम को जाना क्या॥
तेरे हुजूर में, तेरी पनाह में रख ले।
यूँ बार-बार मुझे भेजना-बुलाना क्या॥
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे
मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन
फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22
वाह बहुत सुन्दर, नयी प्रकार की अनुभूति...
जवाब देंहटाएंकल 26/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
वाह क्या बात है ... इतने लाजवाब और अलग अलग रस और भाव लिए ...
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया नवीन भई ...
बहुत सुन्दर ,दोबार पढ़ा ,बहुत अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !
वाह, वाह! बहुत सुन्दर!
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