हजरत अकबर इलाहाबादी साहब की ज़मीन ‘बाज़ार से गुजरा हूँ ख़रीदार
नहीं हूँ’ पर एक
कोशिश
जो कुछ भी हूँ पर यार गुनहगार नहीं हूँ
दहलीज़ हूँ, दरवाज़ा
हूँ, दीवार
नहीं हूँ
छह गलियों से असबाब चला आता है मुझ में
किस तरह से कह दूँ कि ख़रीदार नहीं हूँ
छह गली - छह इंद्रिय , असबाब - सामान
कल भोर का सपना है कोई बोल रहा था
इस पार ही रहता हूँ मैं उस पार नहीं हूँ
सब कुछ हूँ मगर वो नहीं जिस का हूँ तलबगार
मंज़र हूँ, मुसव्विर
भी हूँ, मेयार
नहीं हूँ
तलबगार - ढूँढने वाला / इच्छुक, मंज़र - दृश्य, मुसव्विर -
चित्रकार, मेयार - स्तर
जब कुछ नहीं करता हूँ तो करता हूँ तसव्वुर
इस तरह से जीता हूँ कि बेकार नहीं हूँ
तसव्वुर - कल्पना
:- नवीन
सी. चतुर्वेदी
बहरे हजज़ मुसमन अखरब मकफूफ महजूफ
मफ़ऊलु
मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन
221 1221 1221 122
बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएं@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
छह गलियों से असबाब चले आते हैं मुझ में
जवाब देंहटाएंकिस तरह से कह दूँ कि ख़रीदार नहीं हूँ
खूबसूरत ख्याल ! अतिउत्तम