साहित्य-सृजन हालाँकि किसी सम्मान का मुहताज़ नहीं होता फिर भी "एकनौलेजमेंट इज एकनौलेजमेंट"। समाज के द्वारा मिलने वाली प्रशस्ति बहुत उत्साह प्रदान करती है। विगत दिनों लखनऊ में 'तीसरी-आँख' के वार्षिक समारोह के दौरान भाई श्री मयंक अवस्थी जी को "श्रीमती सरस्वती सिंह स्मृति श्रेष्ठ सृजन सम्मान" प्रदान किया गया। मयंक अवस्थी जी के रचना संसार में ग़ज़ल, छंद के अलावा कवितायें और आलेख भी शामिल हैं। समीक्षा के क्षेत्र में उन्होंने नई राहें खोली हैं। सत्तर के दशक के आख़िरी वर्षों से उन का साहित्यिक सृजन अबाध रूप से ज़ारी है। विभिन्न पत्र पत्रिकायेँ उन्हें स-सम्मान छापती हैं। विभिन्न स्तरीय मंचीय कार्यक्रमों का हिस्सा भी बनते रहते हैं वह। पुरस्कार जिस रचना को मिला, पहले उसे पढ़ते हैं और फिर कार्यक्रम की कुछ झलकियाँ फ़ोटोस के माध्यम से
सितारा एक भी बाकी बचा क्या
निगोड़ी धूप खा जाती है क्या-क्या
फ़लक कंगाल है अब, पूछ लीजै
सहर ने मुँह दिखाई में लिया क्या
सब इक बहरे-फ़ना के बुलबुले हैं
किसी की इब्तिदा क्या इंतिहा क्या
जज़ीरे सर उठा कर हँस रहे हैं
ज़रा सोचो समन्दर कर सका क्या
ख़िरद इक नूर में ज़म हो रही है
झरोखा आगही का खुल गया क्या
तअल्लुक आन पहुँचा खामुशी तक
“ यहाँ से बन्द है हर रास्ता क्या”
बहुत शर्माओगे यह जान कर तुम
तुम्हारे साथ ख्वाबों में किया क्या
उसे ख़ुदकुश नहीं मज़बूर कहिये
बदल देता वो दिल का फैसला क्या
बरहना था मैं इक शीशे के घर में
मेरा किरदार कोई खोलता क्या
अजल का खौफ़ तारी है अज़ल से
किसी ने एक लम्हा भी जिया क्या
मक़ीं हो कर मुहाज़िर बन रहे हो
मियाँ, यकलख़्त भेजा फिर गया क्या
खुदा भी देखता है, ध्यान रखना
खुदा के नाम पर तुमने किया क्या
उठा कर सर बहुत अब बोलता हूँ
मेरा किरदार बौना हो गया क्या
मयंक अवस्थी
निगोड़ी धूप खा जाती है क्या-क्या
फ़लक कंगाल है अब, पूछ लीजै
सहर ने मुँह दिखाई में लिया क्या
सब इक बहरे-फ़ना के बुलबुले हैं
किसी की इब्तिदा क्या इंतिहा क्या
जज़ीरे सर उठा कर हँस रहे हैं
ज़रा सोचो समन्दर कर सका क्या
ख़िरद इक नूर में ज़म हो रही है
झरोखा आगही का खुल गया क्या
तअल्लुक आन पहुँचा खामुशी तक
“ यहाँ से बन्द है हर रास्ता क्या”
बहुत शर्माओगे यह जान कर तुम
तुम्हारे साथ ख्वाबों में किया क्या
उसे ख़ुदकुश नहीं मज़बूर कहिये
बदल देता वो दिल का फैसला क्या
बरहना था मैं इक शीशे के घर में
मेरा किरदार कोई खोलता क्या
अजल का खौफ़ तारी है अज़ल से
किसी ने एक लम्हा भी जिया क्या
मक़ीं हो कर मुहाज़िर बन रहे हो
मियाँ, यकलख़्त भेजा फिर गया क्या
खुदा भी देखता है, ध्यान रखना
खुदा के नाम पर तुमने किया क्या
उठा कर सर बहुत अब बोलता हूँ
मेरा किरदार बौना हो गया क्या
मयंक अवस्थी
( 078977167173)
‘तीसरी आँख’ : वार्षिक समारोह (लखनऊ)
कार्यक्रम-स्थल :
संघ भवन सभागार, डिप्लोमा इंजीनियर्स: लोक निर्माण विभाग,
(Opp. राज्यपाल भवन, गेट # 1)
96-महात्मा गाँधी मार्ग, हज़रतगंज, लखनऊ (उप्र).
श्रीमती सरस्वती सिंह स्मृति श्रेष्ठ सृजन सम्मान- 2012
एकल रचना के लिए- श्री मयंक अवस्थी (कानपुर, उप्र).
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मुख्य अतिथि :
डॉ. आनन्द सुमन सिंह
(प्र. संपादक, ‘सरस्वती सुमन’, देहरादून)
उत्सवमूर्ति :
डॉ. रामगोपाल चतुर्वेदी डी. लिट्. (जयपुर)
अध्यक्ष, विशिष्ट अतिथि एवं मुख्य वक्ता (विभिन्न सत्र) :
1. प्रो. सोम ठाकुर
2. डॉ. कुँअर बेचैन
3. डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’
4. श्री गुलाबचन्द्र (अपर महानिदेशक, आकाशवाणी, लखनऊ)
5. ई. (श्री) हरिकिशोर तिवारी (प्रदेश अध्यक्ष : राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद्, उप्र तथा डिप्लो. इंजी. संघ)
अभिप्रेरक :
1. डॉ. शिव ओम अम्बर (वरिष्ठ साहित्यकार) फ़र्रुख़ाबाद, उप्र
2. श्री आमोद तिवारी (पूर्व डिप्टी कलेक्टर) कटनी, मप्र
मंच-संचालन :
1. जितेन्द्र ‘जौहर’ (सोनभद्र)
2. डॉ. राहुल अवस्थी (बरेली)
स्वागत-प्रमुख :
इं. रवीन्द्र श्रीवास्तव ‘बेज़ुबान’
आयोजक :
‘तीसरी आँख’
सम्पर्क-सूत्र : जितेन्द्र ‘जौहर’ +91 9450320472
{Only between 12:15 - 01:00 pm}
दिनांक : 18/02/2013 (सोमवार)
सुपरिचित ग़ज़लकार श्री मयंक अवस्थी जी (कानपुर,
उप्र) को उनकी एक उत्कृष्ट ग़ज़ल के लिए एकल रचना सम्मान (श्रीमती सरस्वती
सिंह स्मृति श्रेष्ठ सृजन सम्मान- 2012) के रूप में अंगवस्त्रम्,
स्मृति-चिह्न, प्रमाण-पत्र एवं सम्मान-राशि भेंट करते हुए मुख्य अतिथि डॉ.
आनन्दसुमन सिंह जी, सभाध्यक्ष प्रो. सोम ठाकुर जी एवं डॉ. देवेन्द्र आर्य
जी...
प्रेक्षागृह (ऑडिटोरिअम) में उपस्थित साहित्यकार एवं काव्य-रसिक श्रोतागण [सोफ़े पर टी-शर्त में मयंक अवस्थी जी]
ग़ज़ल पढ़ते हुये मयंक अवस्थी जी
भाई मयंक अवस्थी जी को बहुत-बहुत बधाइयाँ। निस्वार्थ भाव से उजाला बाँटने वाले व्यक्तित्व का सम्मान अन्य व्यक्तियों के लिये प्रेरणास्रोत बनेगा, ऐसा विश्वास है।
बहुत२ बधाई भाई मयंक अवस्थी जी को ,आभार
जवाब देंहटाएंRecent Post : अमन के लिए.
bahut bahut badhai ho
जवाब देंहटाएंsaader
rachana
बहुत बहुत बधाई मयंक जी को। जिस ग़ज़ल पर सम्मान मिला वह तो एक उदाहरण भर है मयंक जी के सृजन का।
जवाब देंहटाएंअभी तो भविष्य में बहुत कुछ है।
एक बार पुन: बधाई।
मयंक जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंमयंक जी को बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबधाई ...मयंक जी को .......
जवाब देंहटाएंढेरों बधाइयाँ..
जवाब देंहटाएंबधाई..... यह दिन बार बार आये....
जवाब देंहटाएंखुदा भी देखता है, ध्यान रखना
जवाब देंहटाएंखुदा के नाम पर तुमने किया क्या
इस शेर के बरअक्स -आदरणीय भाई मयंक अवस्थी जी ने सामयिन और पाठक में खुदा देखा; खुदा ने सामयिन और पाठक से नज़रिये से देखा; खुदाई निभी.
मंज़िलें और भी हैं. मग़र इस पड़ाव पर बहुत-बहुत बधाई भाई साहब.
मयंक अवस्थी जी को बहुत बहुत बधाई!!
जवाब देंहटाएंउनका सृजन निरंतर जारी रहे...शुभकामनाएँ!!
mayank ji bahut bahut badhaiyan...
जवाब देंहटाएंइस अनमोल सृजन के लिये एवँ सरस्वती सम्मान से पुरस्कृत होने के लिये मयंक जी का हार्दिक अभिनन्दन, बधाई एवँ शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभ कामनाएं मयंक !
जवाब देंहटाएंयह एक शुरुआत है और इस सिलसिले को अभी और बहुत आगे जाना है क्यूंकि आप इस सफ़र पर निरंतर.......... आगे .......बहुत आगे बढते रहने में पूरी तरह सक्षम हैं . मेरी दुआएं हमेशा आप के साथ हैं ......
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जवाब देंहटाएंमयन्क जी को ढेर बधाइयाँ
कमल [एस. एन. शर्मा]
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जवाब देंहटाएंसम्मान हेतु हार्दिक बधाई |
आशा
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जवाब देंहटाएंMayank ji meri janib se dheroN mubarakbad.aapse to aage bhi bahut
achhi -achhi ummeedeN haiN. Anware Islam.
बहुत बहुत बधाई मयंक जी को और भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंMayank Bhai ko bahut bahut badhaiyaan. Bahut prasannata hui. Ye to shuriaat hai...............aage aage dekhiye abhee ..............
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