हरकत
न हो तो आब-ओ-हवा भी न टिक सके
आमद
बग़ैर माल-ओ-मता भी न टिक सके
रंजिश
कि प्यार कुछ तो है रेत और लह्र में
साहिल
पे मेरे पाँव ज़रा भी न टिक सके
हद
में रहे बशर तो मिलें सौ नियामतें
हद
भूल जाये फिर तो अना भी न टिक सके
पानी
बग़ैर टिक न सकेगी धरा, मगर
पानी
ही पानी हो तो धरा भी न टिक सके
सच
में ये आदमी जो निभाये मुहब्बतें
टकसाल
छोड़िये जी टका भी न टिक सके
बदहाल
आदमी को डरायेगी मौत क्या
नंगा
हो सामने तो बला भी न टिक सके
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
मफ़ऊलु
फाएलातु मुफ़ाईलु फाएलुन
221 2121 1221 212
बहरे मुजारे मुसमन
अखरब मकफूफ़ महजूफ
बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंसुन्दर ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंवाह......वाह.......वाह.....अति उत्तम
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