1 अप्रैल 2013

हरकत न हो तो आब-ओ-हवा भी न टिक सके - नवीन

हरकत न हो तो आब-ओ-हवा भी न टिक सके
आमद बग़ैर माल-ओ-मता भी न टिक सके

रंजिश कि प्यार कुछ तो है रेत और लह्र में
साहिल पे मेरे पाँव ज़रा भी न टिक सके

हद में रहे बशर तो मिलें सौ नियामतें
हद भूल जाये फिर तो अना भी न टिक सके

पानी बग़ैर टिक न सकेगी धरा, मगर
पानी ही पानी हो तो धरा भी न टिक सके

सच में ये आदमी जो निभाये मुहब्बतें
टकसाल छोड़िये जी टका भी न टिक सके

बदहाल आदमी को डरायेगी मौत क्या
नंगा हो सामने तो बला भी न टिक सके

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

मफ़ऊलु फाएलातु मुफ़ाईलु फाएलुन 
221 2121 1221 212 

बहरे मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ़ महजूफ

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