हमने
गर हुस्न और ख़ुशबू ही को तोला होता
फिर तो हर पेड़ गुलाबों से भी हल्का होता
रब किसी शय में उतर कर ही मदद करता है
काश मैं भी किसी रहमत का ज़रीया होता
फिर तो हर पेड़ गुलाबों से भी हल्का होता
रब किसी शय में उतर कर ही मदद करता है
काश मैं भी किसी रहमत का ज़रीया होता
रहमत
- ईश्वरीय कृपा,ज़रीया - माध्यम
वक़्त
अकेला था, मेरी नाक में कुनबे की
नकेल
कम
नहीं पड़ता अगर मैं भी अकेला होता
सारे ख़त उस ने कलेज़े से लगा रक्खे हैं
ये किया होता अगर मैंने - तमाशा होता
आप को आग में बस आग ही दिखती है ‘नवीन’
ये न होती तो भला कैसे उजाला होता
फाएलातुन फ़एलातुन
फ़एलातुन फालुन
बहरे रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन
2122 1122 1122 22
बहरे रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन
2122 1122 1122 22
रब किसी शय में उतर कर ही मदद करता है
जवाब देंहटाएंकाश मैं भी किसी रहमत का ज़रीया होता
्बहुत सुन्दर ख्याल
सारे ख़त उस ने कलेज़े से लगा रक्खे हैं
जवाब देंहटाएंये किया होता अगर मैंने - तमाशा होता
आप को आग में बस आग ही दिखती है ‘नवीन’
ये न होती तो भला कैसे उजाला होता
बहुत खूब नवीन भाईजी. ..
पहले शेर को तो आपने पोस्टर-कोट ही कर रखा है, उस पर कुछ कहना क्या. वह उस लायक है भी.
इस ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंकल दिनांक 31/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (31-03-2013) के चर्चा मंच 1200 पर भी होगी. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंबड़े नाजुक ख्याल को लिपिबद्ध किया है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब नवीन जी ... हर शेर पे वाह वाह निकलती है ...
जवाब देंहटाएंउम्दा शेर हैं।
जवाब देंहटाएंवक़्त अकेला था, मेरी नाक में कुनबे की नकेल
जवाब देंहटाएंकम नहीं पड़ता अगर मैं भी अकेला होता
....लाज़वाब! बहुत उम्दा ग़ज़ल..सभी शेर दिल को छू जाते हैं...
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंपधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...
सारे ख़त उस ने कलेज़े से लगा रक्खे हैं
जवाब देंहटाएंये किया होता अगर मैंने - तमाशा होता
बहुत सुन्दर ग़ज़ल .....नवीनजी .बकौल एक शायर अर्ज करना चाहूँगा
मेरी भी तो मुफलिसी देखो जरा नज़र से यारों
अब भी है उनकी याद को दिल में बसाये रखा.