नमस्कार
गणतन्त्र दिवस की शुभ-कामनाएँ। वर्तमान आयोजन की समापन पोस्ट में सभी साहित्यानुरागियों
का सहृदय स्वागत है। वर्तमान आयोजन में अब तक 14 रचनाधर्मियों के छन्द पढे जा चुके
हैं। छन्द आधारित समस्या-पूर्ति आयोजन में 15 लोगों के डिफरेंट फ्लेवर वाले स्तरीय
छन्द पढ़ना एक सुखद अनुभव है। आज की पोस्ट में हम पढ़ेंगे भाई धर्मेन्द्र कुमार सज्जन जी के
छन्द :-
हम सब मिलजुल कर चले, हिलने
लगी ज़मीन
सिंहासन खाली हुये, टूटे
गढ़ प्राचीन
टूटे गढ़ प्राचीन, मगर यह
लक्ष्य नहीं है
शोषण वाला दैत्य आज भी खड़ा वहीं है
कह ‘सज्जन’ कविराय, नहीं
बदला गर ‘सिस्टम’
बिजली, पानी, अन्न, कहाँ से लायेंगे हम
तुम से मिलकर हो गये, स्वप्न
सभी साकार
अपने संगम ने रचा, नन्हा
सा संसार
नन्हा सा संसार, जहाँ
ग़म रहे खुशी से
सुन बच्चों की बात, हवा भी
कहे खुशी से
ये पल हैं अनमोल, न होने
दो यूँ ही गुम
इनको रखो सँभाल, पर्स
में यादों के तुम
‘मैं’ ही ने मुझको रखा, सदा स्वयं
में लीन
हो मदान्ध चलता गया, दिखे
न मुझको दीन
दिखे न मुझको दीन, दुखी,
भूखे, प्यासे जन
सिर्फ़ कमाना और खर्च करना था जीवन
कह ‘सज्जन’ कविराय, मरा मुझमें
तिस दिन ‘मैं’
लगा मतलबी और घृणित, मुझको
जिस दिन ‘मैं’
धर्मेन्द्र भाई साहित्य की अनेक विधाओं में अपने मुख़्तलिफ़ अंदाज़ के साथ मौजूद हैं।
आप की ग़ज़लें हों या आप की कविताएँ या फिर आप के नवगीत, हर विधा में अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं धर्मेन्द्र भाई।
“कह ‘सज्जन’ कविराय, नहीं बदला गर ‘सिस्टम’। बिजली, पानी, अन्न, कहाँ से लायेंगे हम”
कितनी सच्ची बात है और वह भी कितनी आसानी के साथ, बधाई आप को।
‘”जहाँ ग़म रहे खुशी से” “पर्स में यादों के” “सिर्फ़ कमाना और
खर्च करना था जीवन” ..... वाह वाह वाह ..... छन्द कब से अपने
इस पुरातन फ्लेवर की बाट जोह रहे हैं।
बहुत ही ख़ुशी की बात है कि वर्तमान आयोजन सहज-सरस-सरल और सार्थक वाक्यों / मिसरों
की अहमियत बताने और उन के विभिन्न उदाहरण हमारे सामने रखने में क़ामयाब हुआ। इस आयोजन के सभी
रचनाधर्मियों को इस क़ामयाबी के लिये बहुत-बहुत बधाई और इच्छित कार्य को परिणाम तक पहुँचाने
के लिये बहुत-बहुत आभार।
समय-समय पर विभिन्न विद्वान साथियों / आचार्यों / पुस्तकों / अन्तर्जालीय आलेखों
से प्राप्त जानकारियाँ आप सभी के साथ बाँटी हैं और आशा है “सरसुति के भण्डार की बड़ी
अपूरब बात। ज्यों-ज्यों खरचौ, त्यों बढ़ै, बिनु खरचें घट जात॥“ वाले सिद्धान्त का अनुसरण करते हुये आप सब लोग भी इन
बातों को अन्य व्यक्तियों तक अवश्य पहुँचाएँगे।
वर्तमान आयोजन यहाँ पूर्णता को प्राप्त होता है। धर्मेन्द्र भाई के छन्द आप को
कैसे लगे अवश्य ही लिखियेगा।
विशेष निवेदन :- इस पोस्ट के बाद वातायन पर शिव आधारित छंदों, ग़ज़लों, कविताओं, गीतों, आलेखों वग़ैरह का सिलसिला शुरू करने की इच्छा हो रही है। यदि यह विचार आप को पसन्द आवे तो प्रकाशन हेतु सामाग्री navincchaturvedi@gmail.com पर भेज कर अनुग्रहीत करें।
नमस्कार.......