पिछली पोस्ट में कल्पना जी के एक छंद की एक पंक्ति
उन शूलों के साथ बाग़ में रहते हैं हम
पर एक सुझाव आया कि क्यूँ न इसे “उन शूलों के
साथ रहते हैं बाग़ में हम” की तरह कहा जाये? मञ्च आभारी है कि एक महत्वपूर्ण
विषय पर चर्चा के लिये संकेत दिया गया। यह पाद-संयोजन का विषय है।
थोड़ी तेज़ रफ़्तार में चलते-चलते अगर हम अचानक मुड़
जाएँ, साइकिल चलाते-चलाते अगर हम साइकिल का हेण्डल अचानक ही एक दिशा में मोड दें
तो हम लड़खड़ा जाते हैं। सामान्य चलने पर ऐसा कुछ नहीं होता। यह सारी बातें मानव व्यवहार
का अङ्ग हैं। ठीक इसी तरह जब हम सामान्य बातचीत करते हैं तो शब्दों के संयोजन तथा व्याकरण
वग़ैरह पर ध्यान नहीं देते मगर जब यही बातचीत पद्य का स्वरूप धारण कर लेती है तो शिल्प
सम्बन्धित बातें महत्वपूर्ण हो जाती हैं। पाद संयोजन उन बातों में से एक है।
पाद क्या होता है?
शब्दों का वह समूह जिन से किसी छंद का एक चरण या उस चरण का यति-पर्यन्त एक अंश बनता है, पाद कहलाता है। यथा, विवेच्य पंक्ति में 'उन शूलों के साथ' तथा 'बाग़ में रहते हैं हम' दो पाद हुये। कुछ विद्वान इसे यति के साथ एक पाद भी मानते रहे हैं। अपने लिये ये दो पाद वाला विषय है।
पाद क्या होता है?
शब्दों का वह समूह जिन से किसी छंद का एक चरण या उस चरण का यति-पर्यन्त एक अंश बनता है, पाद कहलाता है। यथा, विवेच्य पंक्ति में 'उन शूलों के साथ' तथा 'बाग़ में रहते हैं हम' दो पाद हुये। कुछ विद्वान इसे यति के साथ एक पाद भी मानते रहे हैं। अपने लिये ये दो पाद वाला विषय है।
पाद-संयोजन क्या है ?
एकल – द्विकल – त्रिकल –चौकल –पञ्चकल वग़ैरह
शब्दों को एक पाद में इस तरह गूँथना कि बात एकदम सरलता से कही जा सके, पाद-संयोजन कहलाता है।
एकल – द्विकल – त्रिकल वग़ैरह क्या होता है ?
एकल
जिस शब्द में एक मात्रा भार या लघु-वर्ण ही हो, उसे एकल कहा जाता है,
यथा –
न
कि
व
द्विकल
दो मात्रा भार या गुरु वर्ण, यथा –
मैं
का
वह
व्रत [व तथा र सन्युक्ताक्षर हैं]
कृष [क तथा र सन्युक्ताक्षर हैं]
स्थिति [स और थ सन्युक्ताक्षर हैं]
त्रिकल
सनम
शर्म
भला
लाभ
द्रुपद
चतुष्कल / चौकल
शबनम
शबाना
शाना
सलमा
साजन
द्रौपदि
उदार
उदार
पञ्चकल
द्रौपदी
हमसफ़र
बेदख़ल
अलगाव
फुलझड़ी
षटकल
याराना
दावानल
बारदान
उलाहना
मोरपखा
अभिव्यक्ति
यहाँ ‘अभिव्यक्ति’ शब्द को सोद्देश्य लिया गया
है। ‘अभि’ द्विकल है और ‘व्यक्ति’ त्रिकल इस तरह तो यह द्विकल + त्रिकल = पञ्चकल हुआ
मगर चूँकि बोलते वक़्त हम ‘अभि’ के बाद ‘व्यक्ति’ के ‘व’ पर अधिक भार देते हैं इस लिये
यह त्रिकल+त्रिकल यानि षट्कल माना जायेगा। हालाङ्कि पिङ्गलाचार्य जी ने ने कवि को इसे
उच्चारण के आधार पर पञ्चकल मानने की छूट भी दे रखी है।
इसी तरह सप्तकल , अष्टकल वग़ैरह होते हैं।
रोला छन्द के चरण के पूर्वार्ध में ग्यारहवीं
मात्रा पर लघु अक्षर के साथ यति होती है। मतलब वहाँ या तो त्रिकल [सरल, शर्म, लाभ, शह्र टाइप - शहर, भला या सनम टाइप नहीं] आएगा या एकल [कि] या चौकल [उदार] या पञ्च्कल [अलगाव] या ऐसा ही कुछ
और। त्रिकल के बाद का शब्द त्रिकल होने पर ही उच्चारण सटीक हो पाता है। अब उस उदाहरण
को दौनों तरह से बोल कर देखा जाये :-
मूल पंक्ति – “उन शूलों के साथ बाग़ में रहते हैं
हम”
सुझाव – “उन शूलों के साथ रहते हैं बाग़ में हम”
हम समझ सकते हैं कि ओरिजिनल पंक्ति बोलने में कोई रुकावट
नहीं होती जब कि सुझाव वाली पंक्ति में अवरोध उत्पन्न होता है। हाँ, अगर हम चाहें तो मूल
पंक्ति में बाग़ की जगह चमन [उन शूलों के साथ चमन में रहते हैं हम] का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। इस स्थिति में भी त्रिकल के
बाद त्रिकल ही आता है। रोला छंद में पाद संयोजन के लिये कुछ और उदाहरण:-
लाला लाला लाल लला ला लाला लाला
इस उपरोक्त सूत्र को ध्यान में रखें। यहाँ पूर्वार्ध की ग्यारहवीं मात्रा का लघु जोना अनिवार्य है। अन्य शब्दों को पाद संयोजन की सहायता लेते हुये अलग-अलग तरह से सेट किया जा सकता है। यथा:-
लला लालला लाल लला ला लाला लाला
पिङ्गल में इस तरह की और भी बहुत सारी जानकारियाँ दी हुई हैं।
सारी जानकारियों को प्रस्तुत करना थोड़ा मुश्किल और अव्यावहारिक भी है; इसलिए समय-समय पर थोड़ी-थोड़ी जानकारियाँ पटल पर आती रहेंगी। आशा करते हैं कि
शंका का समाधान हो गया होगा। यदि फिर भी कुछ शंका शेष हो तो अवश्य ही टिप्पणी या मेल
या फोन के ज़रिये बात की जा सकती है।
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चरण क्या होता है ?
एक छंद को अमुक भागों में विभक्त किया जाता है, उन भागों को चरण कहते हैं। दोहा, सोरठा, चौपाई, हरिगीतिका, गीतिका, घनाक्षरी, ललित, ताटंक आदि सभी छंदों में चार चरण होते हैं। दोहा और सोरठा में प्रत्येक चरण के अंत में ही यति होती है मगर रोला, हरिगीतिका, ताटंक आदि जैसे छंदों में प्रत्येक चरण के बीच में कहीं यति की व्यवस्था भी होती है। छन्द का कोई एक चरण, यति व्यवस्था के द्वारा जिन दो भागों में विभक्त हुआ उन दो भागों को पाद कहा जाता है।
उदाहरण
हे पद्म आसन पर विराजित, मातु वीणा वादिनी
उपरोक्त पंक्ति हरिगीतिका छन्द का एक चरण है
यह चरण यति के साथ दो भागों में विभक्त है यथा
हे पद्म आसन पर विराजित, = 16 मात्रा, विराजित कहने के साथ ही हम साँस लेते हैं, यही यति है
मातु वीणा वादिनी = 12 मात्रा
हरिगीतिका छन्द के एक चरण के 16 मात्रा और 12 मात्रा वाले दो भाग, दो पाद हुये।
लाला लाला लाल लला ला लाला लाला
इस उपरोक्त सूत्र को ध्यान में रखें। यहाँ पूर्वार्ध की ग्यारहवीं मात्रा का लघु जोना अनिवार्य है। अन्य शब्दों को पाद संयोजन की सहायता लेते हुये अलग-अलग तरह से सेट किया जा सकता है। यथा:-
लला लालला लाल लला ला लाला लाला
लालल लाला लाल लाल ला ललाल लाला
वग़ैरह वग़ैरह।
पंक्ति जितनी अधिक सीधी यानि 'लाला लाला लाल लला ला लाला लाला' के अधिकतम निकट रहेगी, उतना ही बोलने में सरलता का अनुभव होगा। बादबाकी प्रयोग कवि के हाथ में है। ध्यान रहे कि पाद-संयोजन करते वक़्त अपने मुख के उच्चारण का नहीं बल्कि जन-सामान्य के मुख के उच्चारण का ध्यान रखा जाता है।
पंक्ति जितनी अधिक सीधी यानि 'लाला लाला लाल लला ला लाला लाला' के अधिकतम निकट रहेगी, उतना ही बोलने में सरलता का अनुभव होगा। बादबाकी प्रयोग कवि के हाथ में है। ध्यान रहे कि पाद-संयोजन करते वक़्त अपने मुख के उच्चारण का नहीं बल्कि जन-सामान्य के मुख के उच्चारण का ध्यान रखा जाता है।
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चरण क्या होता है ?
एक छंद को अमुक भागों में विभक्त किया जाता है, उन भागों को चरण कहते हैं। दोहा, सोरठा, चौपाई, हरिगीतिका, गीतिका, घनाक्षरी, ललित, ताटंक आदि सभी छंदों में चार चरण होते हैं। दोहा और सोरठा में प्रत्येक चरण के अंत में ही यति होती है मगर रोला, हरिगीतिका, ताटंक आदि जैसे छंदों में प्रत्येक चरण के बीच में कहीं यति की व्यवस्था भी होती है। छन्द का कोई एक चरण, यति व्यवस्था के द्वारा जिन दो भागों में विभक्त हुआ उन दो भागों को पाद कहा जाता है।
उदाहरण
हे पद्म आसन पर विराजित, मातु वीणा वादिनी
उपरोक्त पंक्ति हरिगीतिका छन्द का एक चरण है
यह चरण यति के साथ दो भागों में विभक्त है यथा
हे पद्म आसन पर विराजित, = 16 मात्रा, विराजित कहने के साथ ही हम साँस लेते हैं, यही यति है
मातु वीणा वादिनी = 12 मात्रा
हरिगीतिका छन्द के एक चरण के 16 मात्रा और 12 मात्रा वाले दो भाग, दो पाद हुये।
सही है.
जवाब देंहटाएंप्राचीन छंद-विद्वानों के अनुसार रोले के भी कई और प्रारूप हैं, तदनुरूप उनके चरणों की मात्रिकता का निर्वाह होता है. लेकिन अत्यंत आवश्यक यह है कि हम इस छंद की मूलभूत और सर्वमान्य अवधारणा को ही प्रमुखता से स्वीकार करें. उस हिसाब से आपका कहना उचित है.
रोला छंद के चरणों के विन्यास के मूलभूत नियम -
1. रोला के विषम चरण यानि पहले चरण का संयोजन या विन्यास दोहा के सम चरण की तरह ही होता है, यानि 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3 तथा चरणांत गुरु लघु या ऽ।.
यहाँ 2 द्विकल के लिए, 3 त्रिकल के लिए तथा 4 चौकल के लिए लिखा गया है.
2. रोला के सम चरण यनि दूसरे चरण का संयोजन 3, 2, 4, 4 या 3, 2, 3, 2, 2 होता है. ध्यातव्य है कि रोला का सम चरण ऐसे शब्द या शब्द-समूह से प्रारम्भ हो जो त्रिकल का निर्माण करें.
यानि दूसरे चरण का पहला शब्द या शब्द-समुच्चय त्रिकल ही बनायेगा.
इसी कारण, सुझाव के अनुसार ’रहते’ शब्द से चरण प्रारम्भ नहीं होगा.
इन तथ्यों को स्पष्टता से साझा किया गया, इसके लिए धन्यवाद.
यदि मेरी यह प्रतिक्रिया अनावश्यक या प्रस्तुत पोस्ट पर किसी तरह का अतिक्रमण प्रतीत हो रहा हो तो आप अवश्य उचित निर्णय ले लें. मेरा आशय मात्र स्पष्टता ही है.
सादर
आप की टिप्पणी ने बात को और अधिक स्पष्ट कर दिया। आभार।
हटाएंएक छोटे से सुधार की आवश्यकता प्रतीत हो रही है शायद - रोला चार चरण का होता है और हर चरण के दो पाद होते हैं। आप शायद पाद के स्थान पर चरण लिख गए हैं। आप देख लीजिएगा प्लीज।
दूसरी बार 'उचित' पढ़ ने के बाद :)
- धींगामुश्ती अलाउड नहीं मतलब हर बार बाई डिफ़ाल्ट नकारात्मकता अलाउड नहीं है। आप को ज्ञात होगा यह क्यूँ लिखा गया था। स्वस्थ वार्तालाप तो इस मन्न्च की पहिचान है। यहाँ लोगों को अब तक बेन नहीं किया गया है। :)
हुज़ूर, आपका पटल है आप जो कहेंगे, यहाँ उसको हम सभी मानेंगे.
हटाएं’चरण’ जैसे शब्द को लेकर कई मंतव्य हैं. पद को आप चरण कह रहे हैं. और फिर, आपने जिसे पाद कहा है उसे मैं अपने ’स्कूल’ के अनुसार चरण कहता हूँ.
यानि उस हिसाब से रोला छंद के चार पद और तदनुरूप आठ चरण होते हैं. यह अवश्य है कि कई जगहों पर पद को चरण कहा गया है. लेकिन ऐसा तब होना उचित है जब पद में कोई यति न हो. तो दोनों शब्द समानार्थी होते हैं. जैसे चौपायी के केस में.
इस तरह, मैं चरण, पद आदि शब्दों के प्रयोग में कोई भूल नहीं कर रहा बल्कि उनके प्रचलित प्रारूप के अनुसार ही अभिव्यक्ति दे रहा हूँ.
सादर
जैसे चलते समय चरण .. दोनों पैरों की गति पूर्ण होने पर एक चरण ( या चलन) कहा जाता है एक पैर के एक गति को डग या पद कहा जाता है वैसे ही ...छंद का .एक चरण दो पद या पादों का होता है ...यथा चौपाई ( चवपैया) दो चरण..चार पद की होती है ...मेरे अनुसार यति एक पृथक तथ्य है जो लय व गति व गेयता से सम्बन्धित है....
जवाब देंहटाएंआपका कथन उचित है ...यदि नियम को न भी देखें तो भी मूल पंक्ति ही लय व गेयता की दृष्टि से सही है.... हाँ 'बाग़ के स्थान पर चमन रखने से कथ्य का प्रवाह और अधिक सहज होजाता है ...और गेयता भी ....
जवाब देंहटाएंव्यक्तिगत मंतव्यों की प्रतिस्थापना छंद या शास्त्रीय विधानों की चर्चाओं में कत्तई उचित नहीं है, नवीन भाईजी. आपके प्रस्तुत आलेख की महत्ता सर्वमान्य है. बस कुछ टर्म्स हैं उनके प्रति स्पष्टता चाहना और विभिन्न मतों को साझा कर प्रस्तुत करना इसलिए भी आवश्यक है ताकि सुधी पाठक आगे कहीं अध्ययन-मनन करें तो उस क्रम में भ्रमित में न हों. कहीं किसी पुस्तक में टर्म्स कोई क्यों न प्रयुक्त हुआ हो, वे मूल तथ्य को आत्मसात कर सकें.
जवाब देंहटाएंमैं पद-चरण को उद्धरण के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ जो अपनी उपरोक्त टिप्पणी में कहने से रह गया था.
पिंगल शास्त्र और छंदों के विशारद जगन्नाथ प्रसाद भानु के छंदः प्रभाकर के पृष्ठ 38 से उद्धरण लें -
जिस मात्रिक छंद के पहले और तीसरे चरण एक से हों तथा दूसरे और चौथे चरण भी एक से हों वे मात्रिकार्द्धसम हैं, जैसे, दोहा, सोरठा इत्यादि. जो छंद न सम हों न अर्द्धसम वे मात्रिक विषम हैं, जैसे, कुण्डलिया, छप्पय इत्यादि.
अब दोहा में कुल पंक्तियों की संख्या दो ही होती हैं, इसे कहने की आवश्यकता नहीं. उस लिहाज से उद्धृत वाक्य को हम समझने का प्रयास करें.
विश्वास है, आपके प्रस्तुत पोस्ट के समर्थन में मेरी टिप्पणी अधिक स्पष्ट हो पायी होगी.
सादर
स्पष्ट जानकारी दी आपने आदरणीय।
जवाब देंहटाएंशबाना चौकल कैसे होगा स्पष्ट कीजिये
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