नमस्कार
आज कल मुम्बई का मौसम भी ठण्डा है। कल रात हल्की
सी बरसात भी हुई थी। आज सुबह से ही काफ़ी कुहरा भी था। मगर इस पोस्ट को लिखते वक़्त ठण्डक
उतनी नहीं अब। फिर भी आइये आलू के गरमागरम पराठे खाते-खाते यह पोस्ट पढ़ियेगा।
साथियो हम इस पोस्ट को समापन पोस्ट की तरह लेने
वाले थे पर कुछ और छन्द आ गये सो वह आइडिया फ़िलहाल केन्सल, मतबल वह पोस्ट आगे बढ़ा
दी जाती है। वर्तमान समय में [अपने वर्तमान परिकर को ध्यान में रखते हुये] छन्द-साहित्य
की सेवा करने वाले व्यक्तियों का शुमार अगर किया जाये तो सम्भवत: भाई अम्बरीष जी
[08853273066] का नाम प्रथम पंक्ति में आयेगा। जब, जहाँ,
जिस मञ्च पर, जितना भी सम्भव हुआ, आप छन्द सेवा के लिये सदैव ही तत्पर दिखे हैं। ईश्वर आप में यह सद्भावना बनाये
रखे। आइये आप के छंदों को पढ़ते हैं :-
मैं-मैं-मैं का जाप ही, नित्य कीजिए मित्र.
सुख पायें, संतुष्टि हो, मनभावन यह इत्र.
मनभावन यह इत्र. इसे जो नित्य लगाये.
वही लगे सिरमौर, आम को ख़ास बनाये.
पगड़ी मैं की बाँध, मगन मय रखिये मैं मैं..
सब पी हों मदमस्त,
आप मत करिये मैं-मैं
तुम सा कोई है नहीं, तुम से ही है प्यार.
अपनापन तुम में भरा, तुम ही घर संसार.
तुम ही घर संसार, तुम्हीं हो मित्र हमारे.
बसे हृदय में नित्य, सृष्टि में सबसे प्यारे.
प्रखर सूर्य सा तेज, रंग गहरा कुमकुम सा.
सभी तुम्हारे फैन. कौन दुनिया में तुम सा
हम से होती एकता, और अहम् से नाश.
हम सब थे यह जानते, सुधरे होते काश.
सुधरे होते काश. देश फिर कभी न रोता.
सारे डालर ताम्र, रुपैया सोना होता.
करें प्रगति भरपूर, कार्य हो सम्यक दम से.
अब भी समझें मित्र, देश बनता है हम से
इस आयोजन में हम और अहम का प्रयोग ऑल्मोस्ट सभी
ने किया है मगर अम्बरीष भाई ने जिस तरह इसे नज़्म किया है, जिस तरह इन दो शब्दों
की जुगलबंदी की है, भाई वाह, बहुत ही शानदार
प्रयोग है यह। सिर्फ़ तीन शब्द और इन तीन शब्दों को ले कर आप सभी ने जो कमाल किया है
भाई क्या कहने, अलग-अलग कथानक, अलग-अलग
भाषाई सौन्दर्य और प्रत्येक सहभागी ने अपनी मेधा का ज़बर्दस्त परिचय दिया है। यही मंशा
होती है कि आयोजन में जितने लोग पार्टिसिपेट करें उतने फ्लेवर्स का लुत्फ़ भी मिले।
अम्बरीष भाई के साथ-साथ आप सभी को भी बहुत-बहुत बधाई।
अनुभूति वाली आ. पूर्णिमा दीदी के मार्फ़त एक और
साथी मिल रहा है इस मञ्च को। आप में से अधिकांश इन से परिचित हैं भी। आप ने एक छन्द-पुष्प
के साथ इस महफ़िल में प्रवेश किया है। आइये स्वागत करते हैं आदरणीया ज्योतिर्मयी पन्त
[09911274074] जी का :-
तुम अरु मैं जब सम रहें, ख़ुशियाँ रहें अपार
दोनों सोचें "मैं "बड़ा, तब होवे तकरार .
तब होवे तकरार, पनप रिश्ते नहिं पाते
अहम् बनें दीवार, मिलन के अवसर जाते .
तब-तब नाहक होंय, उदासी में हम गुमसुम
तू-तू, मैं-मैं राग, अलापें जब जब हम तुम.
ईश्वर ने आप को वास्तव में क्या ख़ास अंदाज़ बख़्शा
है, बड़ी ही सहजता से गम्भीर बात कह दी है आप ने। भविष्य में आप के और भी अच्छे-अच्छे छन्द पढ़ने
को मिलेंगे इस आशा के साथ।
साथियो गरमागरम पराठे खा चुके हों तो नवाजें इन
सुंदर-सुंदर छंदों को अपनी मोहक टिप्पणियों से और हम बढ़ते हैं अगली पोस्ट की ओर। अरे
हाँ एक बात और, आदरणीया ज्योतिर्मयी पन्त जी समस्या-पूर्ति मञ्च की उणनचासवीं रचनाधर्मी हैं
मतलब अगला नया रचनाधर्मी पचासवाँ साथी होगा, देखते हैं कि यह पचासवाँ
साथी इस आयोजन में जुड़ता है या अगले आयोजन में।
नमस्कार .....
वाह ! सभी छंद बहुत ही सुन्दर ! मन प्रसन्न हो गया ! श्री अम्बरीष जी तथा आ. ज्योतिर्मयी जी को बहुत-बहुत बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएं-----अच्छे छंद हैं अम्बरीश जी के... हाँ ....मगन मय रखिये मैं मैं.....का अर्थ समझ नहीं आया...
जवाब देंहटाएं---ज्योतिर्मयी पन्त की इकलौती कुण्डली दमदार है....
आ. अम्बरीष जी की कुंडलियां पढ़कर मन सचमुच मगन हो गया है एवं आ. ज्योतिर्मयी पंत जी की इकलौती कुंडली भी अपने में लाजबाब है अतएव आ. आ. अम्बरीष जी तथा आ. ज्योतिर्मयी पंत जी को हृदयतल से हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण छंद ...आ० अम्बरीश सर एवं ज्योतिर्मयी जी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंसर्दी के कारण हुआ, अपना लेखन बंद
जवाब देंहटाएंऐसे में वो आ गए, लेकर अपने छंद
लेकर अपने छंद, आ गए अम्बरीष जी
क्या ही सुंदर शिल्प, छा गए अम्बरीष जी
कहते हैं अब हाथ, मुझे पहनाओ वर्दी
मिली भाव की आँच, करेगी अब क्या सर्दी
अम्बरीष जी को बधाई इन छंदों के लिए।
ज्योतिर्मयी जी ने तो एक ही छंद में मैं, तुम, हम तीनों का सटीक प्रयोग किया है। उन्हें बहुत बहुत बधाई।
वाह ... सभी छंद और अम्बरीश जी के प्रेम सरोबर छंद दिल को छू गए ... आदरणीय पन्त जी का छंद भी सजग सन्देश देता हुआ है ... बधाई इन छंदों पर ...
जवाब देंहटाएंछंदों में बरसती, मन की बातें।
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति गुरुवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंभाई मित्र नवीन जी, भाया यह संसार .
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ मान्यवर, किये छंद स्वीकार.
किये छंद स्वीकार, इन्हें परखा पहुँचाया.
मिला स्नेह का भाव, शिल्प संगति में पाया.
सबको नमन प्रणाम, मिली जो हृदय बधाई.
धन्यवाद हे बन्धु, हृदय पुलकित जो भाई..
सादर
प्रणाम आदरेया साधना जी, आपका स्नेहाशीष पाकर मन प्रफुल्लित हो गया ...इसी भाँति स्नेह बनाये रखें ! सादर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद श्री श्याम गुप्त जी, छंद पसंद करने हेतु हार्दिक आभार..
जवाब देंहटाएंप्रणाम आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी, आपसे सराहना पाकर यह सृजन सार्थक हुआ...इस निमित्त हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये ...सादर
जवाब देंहटाएंनमस्कार ऋता शेखर मधु जी, छंदों को पसंद करने व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकार कीजिये ...सस्नेह
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद श्री प्रवीण पाण्डेय जी.
जवाब देंहटाएंअभिनन्दन धर्मेन्द्र जी, मिला छंदमय प्यार.
जवाब देंहटाएंमन भायी यह प्रतिक्रिया, कुण्डलिया में धार.
कुण्डलिया में धार, भाव हैं सहज सुशोभित.
लेता जो भी बाँच, वही होता है मोहित.
सनातनी है शिल्प, महकता जैसे चन्दन.
धन्यवाद हे मित्र, आपका पुनि अभिनन्दन..
सादर
नमस्कार आदरणीय दिगंबर जी, आप जैसे विद्वान से सराहना प्राप्त करके यह सृजन धन्य हुआ ...हार्दिक धन्यवाद आदरणीय ....सादर
जवाब देंहटाएंनमस्कार रविकर जी, हार्दिक धन्यवाद मित्रवर..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...बधाई....
जवाब देंहटाएंआदरणीय कैलाश जी, छंदों की सराहना के लिए हार्दिक आभार स्वीकार कीजिये ...
हटाएंआ.अम्बरीश जी ने जो मैं रूपी अहंकारी इत्र की उपमा कल्पित की है ,अनुपम है |आदरणीया ज्योतिर्मयी जी के छंद में तीनों शब्दों का सुन्दर संगम साकार हुआ है |दोनों विद्वान छ्न्दानुरागियों को कोटि कोटि बधाई
जवाब देंहटाएंसादर