नमस्कार
मकर पर्व संक्रान्ति की
अनेक शुभ-कामनाएँ। परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि समस्त मानव समुदाय के
जीवन को ख़ुशियों से भर दे और राजेन्द्र स्वर्णकार भाई जी के घर होने वाले मांगलिक
कार्यक्रम की खुशियों को दोबाला कर दे। मञ्च के साथी भाई श्री राजेन्द्र स्वर्णकार
जी के दो सुपुत्र इसी महीने परिणय सूत्र में बँधने जा रहे हैं। मञ्च दौनों बालकों
के सुखमय दाम्पत्य जीवन की मंगलकामना करता है।
अपने राजेन्द्र भाई जी
को जानने वाले अच्छी तरह से जानते हैं कि राजेन्द्र जी इस मञ्च के लिये सदैव और
सहर्ष तत्पर रहते हैं। “रस परिवर्तन” के आह्वान का सम्मान रखते हुये आपने इतने
बिजी शेड्यूल के बीच भी क्या ही शानदार छंद भेजे हैं। आइये पहले छंद पढ़ते हैं।
मैं क्या था? तुम बिन, प्रिये ! मात्र मूक-पाषाण
!
फूँक दिए निष्प्राण में , सजनी ! तुमने प्राण !!
सजनी ! तुमने प्राण भरे , उपवन महकाया !
हर अंकुर हर पुष्प खिला डाला ...मुर्झाया
!!
है उपकृत हर साँस , कहूँ रसना से क्या मैं ?!
मेरे सब दिन-रैन तुम्हारे आभारी हैं !
तुम से मैंने पा लिया जीने का आधार !
अब जीवन पल-पल लगे इक अनुपम उपहार !!
इक अनुपम उपहार ; प्रिये हूँ ऋणी तुम्हारा !
जीवन सुख-संयोग सहित हो पूर्ण हमारा !!
हँसते-गाते नित्य रहें हम क्यों गुम-सुम से ?
ख़ुश रहना संसार सीख ले हमसे-तुमसे !!
हम ही राधा-कृष्ण थे , हम ही राँझा-हीर !
कैसे समझेंगे न हम इक-दूजे की पीर ?!
इक-दूजे की पीर , एक सुख-दुख सब अपने !
एक प्राण दो देह, एक-से अपने सपने !!
सौ जनमों तक प्रीत हमारी ना होगी कम !
बने पुजारी-प्रीत जनम फिर से लेंगे हम !!
राजेन्द्र स्वर्णकार 09314682626
पहले छन्द की दूसरी पंक्ति
यानि दोहे के चौथे चरण की, फिर उस के बाद इसी छन्द की तीसरी पंक्ति यानि रोला
वाले हिस्से के प्रथम चरण के पूर्वार्ध में “सजनी तुमने प्राण” वाले हिस्से को
पढ़िएगा और देखिएगा कवि के कौशल्य को। किस तरह एक शब्द समूह 'सजनी
तुमने प्राण' दो अलग हिस्सों में दो पृथक वाक्यों का परफेक्ट
हिस्सा बन रहा है। कुण्डलिया छंदों में इस तरह के प्रयोग कवि की मेधा का प्रदर्शन
करते हैं। इसी पहले छंद की पञ्च लाइन यानि कि आख़िरी पंक्ति “मेरे सब दिन-रैन
तुम्हारे आभारी हैं “ भी बहुत ही ज़बरदस्त है। तीसरे छंद में 'एक प्राण दो देह' वाला हिस्सा तो अतिशय मनोरम है। एक
प्राण दो देह की संज्ञा हमें राधा और कृष्ण के माध्यम से मिली है, राधा और कृष्ण जैसे प्रेम की बातें करने वाले छंद में एक प्राण दो देह ने
समाँ बाँध दिया है।
जिस तरह हमें खाने की
थाली में सिर्फ़ मीठा या सिर्फ़ नमकीन या सिर्फ़ तरल की अपेक्षा न रहकर एक सम्पूर्ण
भोजन की अपेक्षा रहती है, ठीक उसी तरह साहित्य में भी विविध रसों के साथ ही
किसी आयोजन का पूर्ण आनंद आता है। वर्तमान समस्या पूर्ति आयोजन के शब्द घोषित करते
वक़्त यही मंशा थी कि अलग-अलग मेधाओं के दर्शन होंगे। शुरुआत में ही कल्पना जी ने न
सिर्फ़ एक स्त्री के मनोभावों को बहुत ही सशक्त ढंग से अभिव्यक्त किया बल्कि बालमना
अभिव्यक्ति बाग़ के फूल भी बहुत ही ज़बर्दस्त रही। उस के बाद खुर्शीद भाई ने हमें
राष्ट्र-प्रेम के डोंगे में बैठाया; सत्यनारायण जी, सौरभ जी और श्याम जी ने आध्यात्मिक और कल्याणकारी बातें बतियाईं और अब
राजेन्द्र जी ने मञ्च को अपने शृंगार रस आधारित छंदों से स-रसमय बना दिया है। कोई
अनिवार्य नहीं कि ‘मैं-हम-तुम’ केवल
आध्यात्मिक या शृंगारिक बातों के लिये ही सूटेबल हैं, वरन ये तीन शब्द तो
अपने अंदर समस्त रसों को समेटे हुये हैं। उम्मीद करते हैं कि हमारे साथी हमें
विविध रसों से सराबोर छन्द भेज कर अनुग्रहीत करेंगे।
एक और बात भी कहने को जी हो
रहा है कि गूढ बातों के लिये ज़रूरी नहीं कि शब्दावली भी अति गूढ ही ली जाये
[हालाँकि कभी-कभी मैं भी इस दुविधा का शिकार होता रहा हूँ] बल्कि वृंद जैसे
अल्पज्ञात मगर अत्यंत सशक्त कवि की तरह आसान ज़बान में भी पते की बात कही जा सकती
है। वृंद जी के कुछ दोहे इसी वेबपेज पर भी हैं, जिन्हें पढ़ने
के लिये आप 'वातायन के रत्न' वाली सूची
में 'V' पर जा कर उन के नाम पर क्लिक कर के पढ़ सकते हैं।
राजेन्द्र जी आप को इन
मधुर और मोदमय छन्द रचनाओं के लिये ख़ूब-ख़ूब बधाई। इतने बिजी शेड्यूल में भी आप ने
अपनी सहभागिता बनाये रखी, आप का बहुत-बहुत आभार। साथियो राजेन्द्र जी के छंदों
पर अपनी राय रखने के साथ ही साथ उन के घर होने वाले मांगलिक कार्य की अग्रिम
बधाइयाँ भी दीजियेगा और हम बढ़ते हैं अगली पोस्ट की ओर।
नमस्कार
तीनों छंद अत्यंत रसपूर्ण और रोचक शैली समेटे हुए मन को विभोर कर गए। आदरणीय स्वर्ण कार जी को लाखों बधाइयाँ और अनंत शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंआदरणीया कल्पना रामानी जी
प्रणाम !
छंद पसंद करने और उत्साहवर्द्धन के लिए कोटिशः आभार !
सादर शुभकामनाओं सहित...
रसमय, प्रेम मय कर दिया मकर संक्रांति के दिन इस मंच को ...
जवाब देंहटाएंसभी छंद एक से बढ़ कर एक ... बधाई मंच को, बधाई राजेन्द्र जी को ... और मकर संक्रांति की शुभकामनायें सभी को ...
आदरणीय दिगंबर नासवा जी
इतनी प्रशंसा और सहृदयता से परिपूर्ण उद्गारों के लिए आभारी हूं...
आपको भी मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आदरणीय राजेंद्र कुमार जी !
आपको भी मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !
आदरणीय कालीपद प्रसाद जी
प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद !
आपको भी मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !
सादर...
राजेन्द्र जी को इन शानदार छंदों के लिए बहुत बहुत बधाई और पुत्रों के विवाह हेतु मंगलकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सज्जन धर्मेन्द्र जी
छंदों की सराहना के लिए आभार !
मेरे सुपुत्रों के विवाह हेतु मंगलकामनाओं के लिए हृदय से कृतज्ञ हूं !!
सादर शुभकामनाओं सहित...
आ.राजेंदर जी
जवाब देंहटाएंइतने सुंदर प्रेमपगे छंदों के लिए कोटि बधाईयाँ स्वीकार करें
मंगलोत्सव की शुभकामनायें
सादर
आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी जी
आपको मेरे छंद अच्छे लगे - मेरा सौभाग्य !
हृदय से आभार बंधुवर !
आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएं !
सादर...
जवाब देंहटाएंप्रेम माधुर्य की छटा बिखेरती इन अनुपम कुंडलियों के लिए आ. राजेंद्र जी को ढेरों हार्दिक बधाई एवं मंच से जुड़े सभी सुधी जनों को मकर संक्रांति की शुभ कामनाओं के साथ साथ आ. राजेंद्र जी को उन के घर होने वाले मांगलिक कार्य हेतु शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ.
आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी
प्रणाम !
कुंडलियों को आपने पसंद किया , मेरे लिए हर्ष की बात है...
और श्रेष्ठ करते रहने के मेरे निश्चय को संबल मिला ।
आपको भी मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !
मेरे सुपुत्रों के विवाह हेतु आशीर्वाद रूपी शुभकामनाओं के लिए हृदय से कृतज्ञ हूं !!
सादर...
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जवाब देंहटाएंआदरणीय रविकर जी
प्रणाम !
सादर शुभकामनाओं सहित...
आदरणीय गुणीश्रेष्ठ नवीन जी
सुप्रिय बंधुवर नवीन जी
आपके स्नेह से अभिभूत हूं...
आप औरों के अस्तित्व को महत्व देते हैं ,
यह आपके श्रेष्ठ रचनाकार होने के साथ श्रेष्ठ इंसान होने का प्रमाण है...
यही कारण है कि इस मंच पर आते रहने को मन करता है ।
आपको और मंच से जुड़े समस्त् स्नेहीजनों को मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !
मेरे सुपुत्रों के विवाह हेतु आशीर्वाद रूपी शुभकामनाओं के लिए हृदय से कृतज्ञ हूं !!
सचमुच बहुत व्यस्तता है ,
अब दसवें (२५जनवरी) और पंद्रहवें दिन (३१जनवरी) तो बच्चों के विवाह ही है...
बाज़ार , कुंकुं पत्रिका वितरण , रिश्तेदारी में भी आयोजनों में भागीदारी
:)
फिर अभी कंस्ट्रक्शन भी चल रहा है घर में...
क्षमा चाहता हूं, कि आयोजन में कल्पना रामानी जी, खुर्शीद खैराड़ी जी, सत्यनारायण जी, सौरभ पांडेय जी और श्याम गुप्ता जी की श्रेष्ठ सुंदर प्रविष्टियां पढ़ने के उपरांत साधुवाद और बधाई प्रेषित नहीं कर पाया
सभी को बहुत बहुत बधाई और मंगलकामनाएं !
शुभकामनाओं सहित...
बहुत ख़ूबसूरत और मनभावन प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंनवीन जी राजेंद्र जी के छंद इस ब्लॉग तक खींच लाये ....और सच मानिये आनंद का पारावार नहीं है .....एक तो शुभ सूचना मिली .......हार्दिक बधाई राजेंद्र जी एवं शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंदूजे उनके शृंगार रस के छंद पढने को मिले .......तथा आपकी सुरुचि पूर्ण संक्षिप्त समीक्षा ...धन्यवाद
रस, लय व लालित्य से परिपूर्ण राजेन्द्र स्वर्णकार जी के तीनों ही छंद उत्कृष्ट कोटि के हैं जो कि सनातनी शिल्प के ढाँचे में एकदम फिट बैठते हैं ...इनके भावों के क्या कहने ...इन्हें बाँचकर हृदय प्रसन्न हो गया ... भाई राजेन्द्र जी को इस सृजन के लिए कोटि-कोटि बधाई .....
जवाब देंहटाएंसुन्दर सुन्दर छंदों के लिए राजेन्द्र जी को बधाई....
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