दुर्गा की पूजा
कन्या की भ्रूण हत्या
दोगलापन.
रात का दर्द
समझा है किसने
देखी है ओस?
न जाने कब
फिसली थी उँगली
यादें ही बचीं
विकृत मन
देखे केवल देह
बालिका में भी.
कन्या की भ्रूण हत्या
दोगलापन.
रात का दर्द
समझा है किसने
देखी है ओस?
न जाने कब
फिसली थी उँगली
यादें ही बचीं
विकृत मन
देखे केवल देह
बालिका में भी.
नयन उठे,
बेरुखी थी आँखों में,
बरस गये
:- कैलाश शर्मा
बहुत ही बेहतरीन हाइकू की रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार के "रेवडियाँ ले लो रेवडियाँ" (चर्चा मंच-1230) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सीधा सपाट संदेश..
ReplyDeleteबहुत खूब हाइकू |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
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