कोरोना काल और फेसबुक लाइव सेशन - ब्रजभाषा व्यंग्यालेख

जय श्री कृष्ण । राधे राधे ।

 

भैया यै भूतनी कौ करोना जो न दिखावै सो थोरौ है । यानें जीव-जिनावरन पै बड़ी किरपा करी है । कबूतरन कों मुक्तगगन में विचरिवे कौ लाइसेंस दै दियौ है और मनुष्यन कों फ्लैटन में यानि कबूतरन के दड़वन में कैद कर दियौ है । दारू-गुटखा भलें ही महँगे कर दिये हैं मगर पेट्रोल-डीजल यानि तेलन कौ तेल निकार दीनों है । रोज-रोज लेक्चर पेलिवे वारे नेतन कों भाषणन के लाले परवाय दीने हैं तौ घर-घर बैठे वॉट्सऐप-फेसबुक वीरन के हाथन में माइक पकराय दीने हैं ।

 

फेसबुक सों याद आयौ कि आजकल फेसबुक लाइव की फैसन चल निकसी है । जहाँ देखौ वहीं फेसबुक लाइव । कहुँ फेसबुक-ग्रुपन पै लाइव सेशन चल रहे हैं तौ कहूँ फेसबुक पेजन पै; और भैया जिनकों कोउ भाव नाँय दै रह्यौ वे अपने चेला-चपाटेन के थ्रू अवतरित है रहे हैं । लाइव-सेशनन के कछु प्रेमी विन भँगडिन के जैसे हैं जिन्हें न तौ कोउ बगीची-अखाड़े वारौ बुलाय रह्यौ है और न ही वे बिचारे रोज-रोज चेला-चपाटेन के लिएँ फ्री की छनवाय सकें । तौ भैया ऐसे पीर-फकीर अपने-अपने छज्जे-छजली यानि अपनी-अपनी टाइमलाइनन सों अभिव्यक्त है रहे हैं ।

 

अच्छा, एक बात और देखी कि लाइव सेशन काहु भी ग्रेड कौ होय यानि भलें ही कोऊ नफीरी-बैंड-बाजे वारी बरात होय या कड़ी-कड़क्का वारी या करोना काल की वर्च्युयल वेडिंग टाइप; हाजिरीन पाँच-पच्चीस या भौत सों भौत सौ-पचास ही दिखवे में आय रहे हैं । भैया जैसें सहालगन में सब बराबर ऐसें ही करोना काल में हु सब बराबर । माल मिलै तौ भीर हु जुरै । जैसे जिजमान वैसे प्रावधान ।

 

जा तरियाँ ब्याउ-बरातन में सब जगें रिस्ते निभाने परें ऐसें ही इन फेसबुक लाइवन में हु भैया फोर्मेलिटी निभानी ही परै है । वेडिंग कार्ड की तरह पहिले सों सूचित कर दियौ जावै कि कौन सौ बकरा कब कहाँ शहीद होनों है । फिर सेम डे हु इन्फॉर्म कियौ जावै कि भैया भूल मत जइयौ आप कौ ही कार्यक्रम है आप कों जरूर आनों है ।

 

अब भैया हर दिन चार-चार पाँच-पाँच और कबू-कबू तौ लैन लगाय कें लाइव-सेशन होमें हैं । समय लगभग सबन्ह कौ सेम । अब बराती का करै वाय तौ सब सों रिस्ते निभाने हैं । या तौ वौ शहीद है चुकौ है जा में सब नें रिस्ते निभाये हुते या वा की या वा के घर के काहु की शहादत ड्यू है । यानि हर तरह सों रिस्ते तौ निभाने ही हैं ।

 

अभी कछ दिन पहिले की ही बात है साब हम बड़े बन-ठन कें मतलब मन ही मन में बन-ठन कें निछावर करिवे यानि लाइव-सेशनन में हाजिर हैवे कों निकसे ।

 

सब सों पहिलें झगड़ू झाँसवी के सेशन में गये । शायरी में इनकौ भौत बड़ौ नाम है साब । पचास माँगें और दस ते कम पै तौ ये यवे सहर में हु माइक हाथ में नाँय लेमें। कोरोना जो न करावै सो थोरौ । आजकल बिचारे फ्री में मुसायराय रहे हैं । तौ साब हमनें का देखौ कि झाँसवी साब पसीना-पसीना है रहे हुते । लै-दै कें 18 व्यूअर दिख रहे हुते । भैया कवि-सम्मेलन मुसायरेन में तौ सामनें भलें ही पच्चीस हु न बैठे होंय परंतु विनकी दाद और बीच-बीच में खाज यानि तारी (कबू-कबू सरोता हाथ खुजायवे के लिएँ हु तारी बजायवे के उपक्रम करें हैं) की अवाज सुनि-सुनि कें माइकेश्वर में ऊर्जा कौ संचार होतौ रहै । फेसबुक लाइव में तौ पतौ ही नाँय चलै । हमनें जब झाँसवी साब कों झूला झूलते देखौ तौ वहाँ सों चुपचाप निकस लैवौ ही ठीक समझौ ।

 

फिर हम पहुँचे सुन्दरी संतो सीतापुरी के सेशन में । संतो जी भौत ही मलूक सायरा हैं साब । एकदम शोले की बसंती टाइप । बड़े ही लटके-झटके दिखाय कें काव्य पाठ करें हैं । इन के यहाँ साब पूरे पेंसठ व्युअर अपनी-अपनी बीन बजाते भए जमे भए दिखे । ये बीन बजामें और संतो जी झूम-झूम कें दिखामें सॉरी सॉरी काव्य पाठ करें । जहाँ पहिले सों ही पेंसठ बीन बज रही होंय वहाँ अपनी पींपनी की का बखत सो भैया हम वहाँ सों हु सटक लिये ।

 

अब हम पहुँचे एक नवोदित शायर जौन जयपुरी के सेशन में । हम एंट्री लै कें कछु सुनिवे कौ उपक्रम करते वा सों पहिलें ही जौन साब बोले अरे क्या बात है आज तो हमारी बज्म में नवीन साहब भी तशरीफ लाये हैं । भैया हम भोंचक्के रह गये । पिछली दो बरातन में तौ काहु नें घास हु न डारी और यहाँ तौ आते ही वेलकम । मन प्रसन्न है गयौ साब । एक ही मिनट में हम अपने आप कों मीर-गालिबन की पंगत में बिराजमान महसूसवे लगे । परन्तु भैया हमारी खुसी भौत देर तक टिक न सकी । अब तौ साब जौन जयपुरी साब हर शेर यै ही कह कें पढ़ें नवीन साब ये शेर बतौरे-खास आप की खिदमत में पेश कर रहा हूँ और शेर कैसे-कैसे हुते एक बानगी देखौ

 

तू चौदवीं का चाँद है न आफताब है ।

पर क्या करें गुलाबो तेरा बाप नवाब है ॥

 

अब साब ऐसे शेरन पै का दाद देवें और कब तक दाद देवें । चुप रह जामें तौ पट्ठा टोकिवे लगै नवीन साब एम आय औडिबल? यानि नवीन साब क्या आप मुझे सुन पा रहे हैं? बड़े ही मरे मन सों कहनों परै वा साब वा । अपनी हालत ऐसी है गयी मानों घर सों तीन जगें निछावर करिवे कों निकसे होहु और पहिली अगयौनी (घुड़चढ़ी) में ही दूल्हे राजा के बाप नें आप कौ हाथ पकर लीनों होय । ऐसे में और करौ हु का जाय सकै । बस प्रतीक्षा करी जाय सकै काहु और रिसतेदार के आयवे की जा कौ हाथ पकारिवे के लिएँ दूल्हे राजा के पिता श्री हमारौ हाथ छोड़ें । सो भैया हमनें हु प्रतीक्षा करिवौ ही ठीक समुझौ । अगलौ शेर

 

दुखड़े भरी हैं ये जीवन की राहें ।

ऐसे में हमें चाहिए आप की बाँहें ॥

 

साब मन में आयौ कि साले कों पकरि कें द्वै-चार जमाय देंय फिर सुन्दरी संतो सीतापुरी जी की याद आय गयी । सोची या में तौ जमाय देउगे लल्ला परन्तु संतो की तरफ नेंक आँख हु तरेरी तौ वे पेंसठ बीन-बाज तुमारी खटिया खड़ी कर दिंगे । मन मसोस कें चुप्प रहिवौ ही नीकौ लगौ साब ।

 

कछु ही देर बाद ऊपर वारे नें हमारी सुन लीनी साब । यहाँ एक और रिस्तेदार आय कें टपकौ वहाँ हमारौ हाथ मुक्त भयौ और साब फिर कौन रुकै हम ये गये वे गये और नौ दो ग्यारह यानि अंतर्ध्यान है गये । जान बची और लाखों पाये । लौट कें कवि जी घर कों आये ।

 

नवीन सी चतुर्वेदी

मुम्बई
9967024593

 

अकेला कर गए हो तुम कि ये क्या कर गए हो तुम - अर्चना जौहरी

अर्चना राजेश जौहरी
अकेला कर गए हो तुम कि ये क्या कर गए हो तुम
अभी मझधार में हूँ मैं किनारा कर गए हो तुम

तुम्हारे साथ सेहरा भी मुझे गुलशन सा लगता था
खिले गुलशन को भी अब जैसे सेहरा कर गए हो तुम

तुम्हारे नाम की मेंहदी,महावर मैं रचाती थी
प अब दुनिया के सब रंगों को फीका कर गए हो तुम

तुम्हें ढूँढू कहां, आवाज़ दूं, कैसे पुकारूँ मैं
हमारे साथ को अब 'सिर्फ सपना' कर गए हो तुम

तुम्हारी 'जानजी' हूँ मैं पुकारो फिर ज़रा मुझको
यूँ चुप होकर मुझे बेनाम सहसा कर गए हो तुम

: अर्चना जौहरी

क्षणिकाएँ - बुशरा तबस्सुम

बुशरा तबस्सुम


1_
बेवजह......
बरसती बूँदो का
ढूँढ रही थी मै सिरा;
अचानक
तेरा ख्याल आ गिरा ,
छाया घन सा घनघोर
जिसका कोई
ओर न छोर,
हृदयांगन
भीग गया जगह जगह,
और वही
बेवजह।।
........
2_
अद्भुत था ..
अप्राप्य ,
न जाने क्या क्या निचोड़ा ...
मिला नही बूँद भर ;
और उस रोज़......
जब तुम मिले ..
तो बरसने लगा बेवजह'प्रेम',
संकोच के छज्जे तले
खड़े होकर भी मैं
हो गई तरबतर ।।
..................
3_
अभी फटक कर उड़ानी है
दिन भर की हलकी बातें,
अभी हृदयांगन को
सांत्वना के लेप से लीपना है ;
रगड़ कर साफ करके रखे
कुछ धुंधले हौंसले
आशाओं की धूप मे रखे थे ....
समेटना है उन्हे ,
तब ....
डाल कर एक स्वप्न सलोना
आँखो पर चढ़ा दूँगी
नींद का भगौना ।
.........
4_
मै अकसर.......
भावनाओं के सागर किनारे ....
बैठकर,
डालती रहती हूँ उसमे....
शब्द प्रस्तर ,
देर तक ....
दूर तक ,
दायरों के समान .......
फैलती हैं जो....
मुझसे उठती नही वो  कविताएं,
मिट जाती हैं बस
विस्तार पाकर ।
.............
5_
तोड़ी कोंपल.......आशाएं
मोड़ी शाखा........इच्छाएं
काट दी मुख्य जड़.....सपने
तैयार है बोनसाई..........बेटी
............
6_
बहुत स्पष्ट थी
तेरे प्रेम की मृगतृष्णा ;
मै ख्वाहिशों के काग़ज़ो से
कई नाव भी बना बैठी ।
..............................
7_
छाए थे जहाँ निराशा के घन ....
निर्मल है अब वह
हृदयाकाश,
खिली है फिर कुछ .....
ऊर्ध्वमुखी श्वेत आस ,
बेरुख ठण्डी ब्यार के विरुद्ध
लपेट लिए हैं कुछ
हल्के गर्म एहसास ,
नज़र चुराते प्रकाशराज की
धूप लग रही सुखद .......
ठहर गया है अब मुझमे भी ...
देखो
एक शरद ।।
..................
8_
बस इसलिए
कि सहूलियत रहे मुझे
बहुत खुश रहना तुम ;
...
दुख की कोई नदी पार करोगे
तो
भीग मैं भी जाऊँगी ।
......................
9_
गर्मी से मैले हुए दिन
बारिश ने धोए
तो सिकुड़ गए ,
इनसे तो अच्छा था रात का थान ,
सांझ और सवेरे ने पकड़ कर छोर
इधर उधर बढ़ाए जो दो कदम
फैल गया पाकर विस्तार
नही पड़ा ज़रा भी कम ।।
फिलहाल बरत लो
जस का तस ...
शायद यह भी  सिकुड़ जाए
अगले बरस ।
................
10_
जिस क्षण
मैने तुम्हे छुआ था
धूप बन
ओ! ओस के कण;
वो जो सतरंगी आभा तुम से होकर गुज़री थी ,
वो प्रेम था ;
तुम इतरा स्वयं पर
पुलक गए ...
और फिर पात से ढुलक गए ।
ठहरते कुछ देर तो रोक लेती
मैं स्वयं मे तुमको
सोख लेती ।।
......................
11_
हृदय के आकाश पर
उदित हुआ एक सूरज,
धीरे धीरे चढ़ा
और फैल गया ;
अब नर्म रहे धूप
या झुलसाए तन धाम
मुझे स्वीकृत नही
इस एहसास की शाम।
...............
12_
लपेटते रहो
चाहे ....
कितने भी साधन ,
दुशालो की परत से 'सब्र',
या कहलो ...
आश्वासन ;
ठिठुराती ठंड सी है "याद"
जाने कहाँ से आती है ....
और बस ,
लग जाती है ।
13_

झुर्रियाँ
****
साफ तनी चादर पर
करवटें बदलते रहे
अनुभव ;
और
सलवटों के बीच
खो गई कहीं
सारी उम्र ।
2_
समतल थी वह
पहाड़ी सतह
तो बह जाते थे समस्त
नयन निर्झर व्यर्थ ,
बनाए हैं कुछ सीढ़ीनुमा खेत ...
अब
सोख लेते हैं जल
अनुभव की फसल
काम आएगी कल ।।

:- बुशरा तबस्सुम

किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है


हमें इस आन का थोथा गुमान थोड़ी है ।
ये देवभूमि है ईराक़-ईरान थोड़ी ह

शुरू ही ‘हिन्दु’ से होता है इसका पावन नाम ।
ये सिर्फ़ नाम का हिन्दोसतान थोड़ी है ॥

सहिष्णुता व सदाचार लक्ष्य हैं इसके ।
बग़ावतों के लिये संविधान थोड़ी है ॥

हैं संविधान की नज़रों में सब समान, मगर ।
असम, असम है, हिमाचल समान थोड़ी है ॥

विरोध करने का अधिकार सबको है, लेकिन ।
उठापटक के लिये प्रावधान थोड़ी है ॥

हरेक बात पै ही मोल-भाव क्यों करना ।
ये अपना देश फलों की दुकान थोड़ी है ॥

हम इसकी 'बीम' पै 'हैमर' चला नहीं सकते ।
ये अपना घर भी है केवल मकान थोड़ी है ॥

जो इसपै वार करेगा वो फल भी भुगतेगा ।
“किसी के बाप का हिन्दोसतान थोड़ी है" ॥

Navin C. Chaturvedi

पुरुष दिवस पर कविता - अर्चना चतुर्वेदी


मर्द के दर्द

तुमने कहा एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो ?
मैं खटता रहा दिन रात ताकि जुटा सकूँ
सिंदूर के साथ गहने कपड़े तुम्हारे लिए
और देख सकूँ तुम्हे मुस्कुराते हुए ..

तुमने कहा मर्दों के दिल नहीं होता
और मैं मौन आंसू पीता रहा .और छुपाता रहा अपने हर दर्द को
और उठाता रहा हर जिम्मेदारी हँसते हँसते ..
ताकि तुम महसूस ना कर सको किसी भी दर्द को और खिलखिलाती रहो यूँ ही

तुम मुझे बदलना चाहती थी और जब मैंने ढाल लिया खुद को तुम्हारे मुताबिक
और एक दिन कितनी आसानी से तुमने कह दिया
तुम बदल गए हो ...
और इस बार मैं मुस्कुरा दिया था हौले से

अबकी तुमने कहा ‘तुम मर्द एक बार में सिर्फ एक काम ही कर सकते हैं
हम महिलाएं ही होती हैं मल्टीटास्किंग में महारथी
और मैं ऑफिस ,बॉस ,घरबच्चे ,माँ और
तुम्हें खुश रखने के सारे जतन करता रहा
बिना थके बिना हारे

सच कहा तुमने ,
नहीं जानता मैं सिंदूर की कीमत
ना ही होता है मुझे दर्द आखिर मैं हूँ मर्द
और मर्द के दर्द नहीं होता ।।

अर्चना चतुर्वेदी

माँ सरस्वती के चालीस नाम वाली सरस्वती वन्दना - नवीन

हे मरालासन्न वीणा-वादिनी माँ शारदे।

वागदेवीभारतीवर-दायिनी माँ शारदे॥

 

श्वेत पद्मासन विराजितवैष्णवी माँ- शारदे।

हे प्रजापति की सुताशतरूपिणी माँ शारदे।।

 

चंद्रिकासुर-वंदिताजग-वंदितावागेश्वरी।

कामरूपाचंद्रवदनामालिनी माँ शारदे॥

 

अम्बिकाशुभदासुभद्राचित्रमाल्यविभूषिता।

शुक्लवर्णाबुद्धिदासौदामिनी माँ शारदे॥

 

दिव्य-अंगापीतविमलारस-मयीभामाशिवा।

रक्त-मध्याविंध्यवासागोमती माँ शारदे॥

 

पद्म-निलयापद्म-नेत्रीरक्तबीजनिहंत्रिणी।

धूम्रलोचनमर्दनाअघ-नासिनी माँ- शारदे॥

 

हे महाभोगापरापथभ्रष्ट जग सन्तप्त है।

वृष्टि कीजै प्रेम कीअनुराग की माँ शारदे॥

 

नवीन सी चतुर्वेदी

विष्णु की विराटता में शारदे कौ वास है - नवीन चतुर्वेदी


अग्नि-वर्ण धातु धार, हृदय प्रसन्न होंय,

स्वर्ण की विविधता में शारदे कौ वास है ।

 

सत्य, शान्ति, शील, धैर्य मातु शारदे की दैन,

प्रति एक शुचिता में शारदे कौ वास है ।

 

पाहन सों चक्र, चक्रवातन सों विश्व बन्यौ,

नित्य की नवीनता में शारदे कौ वास है ॥

 

कल्पना विहीन विश्व कैसें विसतार पातो,

विष्णु की विराटता में शारदे कौ वास है ।।

 

नवीन सी. चतुर्वेदी

 

सरस्वती वन्दना, घनाक्षरी छन्द

बारम्बार प्रणाम कन्हैया बारम्बार प्रणाम

बारम्बार प्रणाम कन्हैया बारम्बार प्रणाम।
कंकर-कंकर,
अक्षर-अक्षर,
हर नाम तुम्हारा नाम।
बारम्बार प्रणाम कन्हैया बारम्बार प्रणाम।

कठिन-समय में आते हो और
सच्ची राह दिखाते हो।
हम से जो हो पाए न सम्भव
चुटकी में कर जाते हो।
प्रीत-पन्थ के तुम्हीं प्रवर्तक,
तुम्हीं नियामक, दिग्दर्शक। 
बहिर्मुखों को भी अपनाकर
कृपासिन्धु कहलाते हो।
गिरने से पहले ही भगत को
लेते हो तुम थाम।।
बारम्बार प्रणाम कन्हैया बारम्बार प्रणाम।

तुम जागो तो दुनिया जागे,
सोते ही जग सो जाए।
तुम हाज़िर तो सबकुछ हाज़िर,
नहीं तो सब कुछ खो जाए।
कण-कण में तुम रचे-बसे हो,
जन-जन के मन के रंजन।
छोड़ तुम्हारी नगरी कोई
किसकी नगरी को जाए।
तुम ही हो आगाज़ सभी का,
तुम ही हो अंज़ाम।
बारम्बार प्रणाम कन्हैया बारम्बार प्रणाम।

क़ायनात जोगी की माला,
धरती तो इक दाना है।
गीता की गहरी बातों को
दुनिया भर ने माना है।
बिना तुम्हारी कृपा कृपालु,
अच्छे-अच्छे भटके हैं।
इसीलिये गुरुमन्तर जपकर
भवसागर तर जाना है।
सावधान हो कर ही मन को,
मिलता है विश्राम।
बारम्बार प्रणाम कन्हैया बारम्बार प्रणाम।

Navin C. Chaturvedi