यहाँ जो कुछ भी है सब कुछ तुम्हारे दायरे में है
तुम्हारा बुतकदा भी तो तुम्हारे बुतकदे में है
कोई आखिर भला क्यूँ रौशनी की राह रोकेगा
वहाँ से चल चुकी है और शायद रासते में है
अमाँ! दो-चार बूँदों से कहीं फ़स्लें पनपती हैं
मज़ा तो यार ख़ुशियों को मुसलसल बाँटने में है
जिसे पाने की ख़ातिर देवता धरती पे आते थे
वो जन्नत का मज़ा तो भोर वाले जागने में है
जुनूँ में जोश दिखलाता है और उड़ता है ख़्वाबों में
तो मतलब आदमी कमज़ोर केवल जागते में है
ग़मेदौराँ की हम सारे वकालत करते हैं लेकिन
ग़मेजानाँ ज़ियादातर सभी के हाफिज़े में है
बिना पूछे ही उस से आज तक मिलते रहे हैं हम
भला क्यूँ पूछिये, सारी मुसीबत पूछने में है
न ये इल्ज़ाम पहला है न ये तौहीन है पहली
बस इतना फ़र्क़ है इस बार वो भी कठघरे में है
मुहब्बत ने जिसे ख़ुद अपने हाथों से बनाया था
मुहब्बत का वो बागीचा हमारे आगरे में है
: नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
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