दोहों के 23 प्रकार - नवीन

नमस्कार...... अगले आयोजन की घोषणा के पूर्व एक और पोस्ट डालना ज़रूरी लग रहा है। मेरा शुरू से यह मानना रहा है कि दोहे के प्रथम और तृतीय चरण में 212 पदभार तथा दूसरे और चौथे चरण के अंत में 21 पदभार अनिवार्य है। सम्भव है कभी कभार कहीं चूक भी हो गयी हो और अब तक इन्टरनेट पर कहीं पड़ी हुई हो, सो अब यहाँ से उसे अपडेट समझा जाय। तो बात है प्रथम और तृतीय चरण के अंत में 212 पदभार संयोजन की। पिछले आयोजनों में से किसी एक में बात यूँ उठ के आई कि दोहा कोई एक प्रकार का थोड़ा होता है, 23 प्रकार के होते हैं और सब में यह सम्भव नहीं हो सकता । दूसरे और चौथे चरण के अंत में 21 वाली बात पर भी विमर्श हुआ है। दोहों के वह 23 प्रकार जिन्हें कुछ नाम दिया जा चुका है [और जिन्हें मैं जानता हूँ :) ], पर मैं ने एक छोटा सा प्रयास किया है, अपनी मान्यता को वरीयता देते हुये; तथा यह प्रयास आप सभी विद्वत-समुदाय के समक्ष मूल्यांकन हेतु प्रस्तुत है। यदि इस प्रयास में कहीं भूल रह गई हों, तो उन के सुधार हेतु ध्यानाकर्षण करने की कृपा करें। 

दोहों के 23 प्रकार को ले कर जो एक बहुत ही बड़ा हौआ हमारे सामने अक्सर खड़ा होता रहा है, उस के भय को तनिक कम करने के उद्देश्य से मैंने तीन दोहों को एकाधिक बार किंचित बदल कर प्रस्तुत करने का प्रयास भी किया है। तो यह प्रयास पेश है आप सब की ख़िदमत में............

1
भ्रमर दोहा
22 गुरु और 4 लघु वर्ण
भूले भी भूलूँ नहीं, अम्मा की वो बात।
दीवाली देती हमें, मस्ती की सौगात।।
22 2 22 12 22 2 2 21
222 22 12 22 2 221
2
सुभ्रमर दोहा
21 गुरु और 6 लघु वर्ण
रम्मा को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात।
दीवाली देती हमें, मस्ती की सौगात।।
22 2 11 2 12 22 2 2 21
222 22 12 22 2 221
3
शरभ दोहा
20 गुरु और 8 लघु वर्ण
रम्मा को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात।
जी में हो आनन्द तो, दीवाली दिन-रात।।
22 2 11 2 12 22 2 2 21
2 2 2 221 2 222 11 21
4
श्येन दोहा
19 गुरु और 10 लघु वर्ण
रम्मा को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात।
जी में रहे उमंग तो, दीवाली दिन-रात।।
22 2 11 2 12 22 2 2 21
2 2 12 121 2 222 11 21
5
मण्डूक दोहा
18 गुरु और 12 लघु वर्ण
जिन के तलुवों ने कभी, छुई न गीली घास।
वो क्या समझेंगे भला, माटी की सौंधास।।
11 2 112 2 12 12 1 22 21
2 2 1122 12 22 2 221 
6
मर्कट दोहा
17 गुरु और 14 लघु वर्ण
बुधिया को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात।
दिल में रहे उमंग तो, दीवाली दिन-रात।।
112 2 11 2 12 22 2 2 21
11 2 12 121 2 222 11 21
7
करभ दोहा
16 गुरु और 16 लघु वर्ण
झरनों से जब जा मिला, शीतल मन्द समीर।
कहीं लुटाईं मस्तियाँ, कहीं बढ़ाईं पीर।।
112 2 11 2 12 211 21 121
12 122 212 12 122 21 
8
नर दोहा
15 गुरु और 18 लघु वर्ण
द्वै पस्से भर चून अरु, बस चुल्लू भर आब।
फिर भी आटा गुंथ गया!!!!! पूछे कौन हिसाब?????
2 22 11 21 11 11 22 11 21
11 2 22 11 12 22 21 121   
9
हंस दोहा
14 गुरु और 20 लघु वर्ण
अपनी मरज़ी से भला, कब होवे बरसात?
नाहक उस से बोल दी, अपने दिल की बात।।
112 112 2 12 11 22 1121
211 11 2 21 2 112 11 2 21
10
गयंद दोहा
13 गुरु और 22 लघु वर्ण
चायनीज़ बनते नहीं, चायनीज़ जब खाएँ।
फिर इंगलिश के मोह में, क्यूँ फ़िरंग बन जाएँ।।
2121 112 12 2121 11 21
11 1111 2 21 2 2 121 11 21 
11
पयोधर दोहा
12 गुरु और 24 लघु वर्ण
हर दम ही चिपके रहो, लेपटोप के संग।
फिर ना कहना जब सजन, दिल पे चलें भुजंग।।
11 11 2 112 12 2121 2 21
11 2 112 11 111 11 2 12 121 
12
बल दोहा
11 गुरु और 26 लघु वर्ण
सजल दृगों से कह रहा, विकल हृदय का ताप।
मैं जल-जल कर त्रस्त हूँ, बरस रहे हैं आप।।
111 12 2 11 12 111 111 2 21
2 11 11 11 21 2 111 12 2 21  
13
पान दोहा
10 गुरु और 28 लघु वर्ण
अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार
शुचिकर सरस सुहावना दीपों का त्यौहार
11 211 1111 111 1111 11221
1111 111 1212 22 2 221
14
त्रिकल दोहा
9 गुरु और 30 लघु वर्ण
अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार
शुचिकर सरस सुहावना दीपावलि त्यौहार
11 211 1111 111 1111 11221
1111 111 1212 2211 221
15
कच्छप कोहा
8 गुरु और 32 लघु वर्ण
अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार
शुचिकर सरस सुहावना दीप अवलि त्यौहार
11 211 1111 111 1111 11221
1111 111 1212 21 111 221
16
मच्छ दोहा
7 गुरु और 34 लघु वर्ण
अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार
शुचिकर सुख वर्धक सरस, दीप अवलि त्यौहार
11 211 1111 111 1111 11221
1111 11211 111 21 111 221
17
शार्दूल दोहा
6 गुरु र 36 लघु वर्ण
अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार
शुचिकर सुखद सुफल सरस दीप अवलि त्यौहार
11 211 1111 111 1111 11221
1111 111 111 111 21 111 221
18
अहिवर दोहा
5 गुरु और 38 लघु वर्ण
अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अगम अपार
शुचिकर सुखद सुफल सरस दीप अवलि त्यौहार
11 211 1111 111 1111 111 121
1111 111 111 111 21 111 221
19
व्याल दोहा
4 गुरु और 40 लघु वर्ण
अचल, अटल, अनुपम, अमित, अजगुत, अगम, अपार
शुचिकर सुखद सुफल सरस दीप अवलि त्यौहार
111 111 1111 111 1111 111 121
1111 111 111 111 21 111 221
20
विडाल दोहा
3 गुरु और 42 लघु वर्ण
अचल, अटल, अनुपम, अमित, अजगुत, अगम, अपार
शुचिकर सुखद सुफल सरस दियनि-अवलि त्यौहार
111 111 1111 111 1111 111 121
1111 111 111 111 111 111 221
21
उदर दोहा
1 गुरु और 46 लघु वर्ण
डग मग महिं डगमग करत, मन बिसरत निज करम
तन तरसत, झुरसत हृदय, यही बिरह कर मरम
11 11 11 1111 111 11 1111 11 111
11 1111 1111 111 12 111 11 111
पहले और तीसरे चरण के अंत में 212 प्रावधान का सम्मान रखा गया है तथा दूसरे और चौथे चरण के अंत में 21 पदभार वाले शब्दों के अपभ्रश स्वरूप को लिया गया है  
22
श्वान दोहा
2 गुरु और 44 लघु वर्ण
डग मग महिं डगमग करत, परत चुनर पर दाग
तबहि सुं प्रति पल छिन मनुज, सहत रहत विरहाग
11 11 11 1111 111 111 111 11 21
111 1 11 11 11 111 111 111 1121 
23
सर्प दोहा
सिर्फ़ 48 लघु वर्ण
डग मग महिं डगमग करत, मन बिसरत निज करम
तन तरसत, झुरसत हृदय, इतिक बिरह कर मरम
11 11 11 1111 111 11 1111 11 111
11 1111 1111 111 111 111 11 111
पहले और तीसरे चरण के अंत में 212 प्रावधान का सम्मान रखा गया है तथा दूसरे और चौथे चरण के अंत में 21 पदभार वाले शब्दों के अपभ्रश स्वरूप को लिया गया है

 
आप के विचारों की प्रतीक्षा रहेगी। अगली पोस्ट में आयोजन के बारे में विचार-विमर्श करते हैं। 

विशेष:-

कल एक घटना ने हृदय आल्हादित कर दिया, वह ख़ुशी आप सभी के साथ भी साझा करने का दिल हो रहा है। कल कलर्स चेनल पर बालिका वधू सीरियल में चाइनीज मसाला मेगी के एक विज्ञापन में एक डायलाग सुना "चाइनीज खाना खाने के लिए चाइनीज बनना ज़रूरी नहीं"। इस पोस्ट में जो चाइनीज वाला दोहा है उसे इसी ब्लॉग पर नवंबर 2011 में पोस्ट किया गया था,आप सभी की टिप्पणियाँ भी हैं उस पर। मुझे नहीं पता विज्ञापन कब बना और यह डायलाग कब से किस के नाम के साथ रजिस्टर्ड है, पर हाँ मन ख़ुश हुआ अपना तो......... :)

दोहा गाथा - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

अच्छा लगता है जब कोई हम पर अधिकार जताते हुये शिकायत करता है। विगत दिनों आ. सलिल जी, सौरभ पाण्डेय जी, राजेन्द्र स्वर्णकार जी, मयंक अवस्थी जी, धर्मेन्द्र कुमार सज्जन जी तथा अरुण निगम जी सहित तमाम  सहकर्मियों ने शिकायत दर्ज़ की कि ठाले-बैठे पर छंद-साधना की गति कुछ मंथर हुई है। हमने भी अपना पक्ष रख दिया कि भाई ब्लॉग पर की साहित्य सेवा तो अकेले हाथ चल जाती है मगर आयोजन अकेले हाथ नहीं चल सकता। सभी समझदार हैं, इशारा समझ गए। तो समस्या पूर्ति के अगले आयोजन की घोषणा के पूर्व बतौर वार्म-अप आ. सलिल जी का एक आलेख पढ़ते हैं। आप सभी से सविनय निवेदन है कि अगली पोस्ट में आयोजन विषयक चर्चा में अपने सुझाव अवश्य प्रस्तुत करें।  
बहुरूपी दोहा अमर 
संजीव 
                                                                                *
बहुरूपी दोहा अमर, सिन्धु बिंदु में लीन.
सागर गागर में भरे, बांचे कथा प्रवीण.

दोहा मात्रिक छंद है, तेईस विविध प्रकार.
तेरह-ग्यारह दोपदी, चरण समाहित चार.

विषम चरण के अंत में, 'सनर' सुशोभित खूब.
सम चरणान्त 'जतन' रहे, पाठक जाये डूब.

विषम चरण के आदि में, 'जगण' विवर्जित मीत.
दो शब्दों में मान्य है, यह दोहा की रीत.

छप्पय रोला सोरठा, कुंडलिनी चौपाइ.
उल्लाला हरिगीतिका, दोहा के कुनबाइ.

सुख-दुःख दो पद रात-दिन, चरण चतुर्युग चार.
तेरह-ग्यारह विषम-सम, दोहा विधि अनुसार.

द्रोह, मोह, आक्रोश या, योग, भोग, संयोग.
दोहा वह उपचार जो, हरता हर मन-रोग.

दोहा के २३ प्रकार लघु-गुरु मात्राओं के संयोजन पर निर्भर हैं। सम चरण में ११-११, विषम चरण में १३-१३ तथा दो पदों में २४-२४ मात्राओं के बंधन को मानते हुए २३ प्रकार के दोहे होना पिंगालाचार्यों की अद्‍भुत कल्पना शक्ति तथा गणितीय मेधा का जीवंत प्रमाण है। विश्व की किसी अन्य भाषा के पास ऐसी सम्पदा नहीं है। 

छंद गगन के सूर्य  दोहा की रचना के मानक समय-समय पर बदलते गए, भाषा का रूप, शब्द-भंडार, शब्द-ध्वनियाँ जुड़ते-घटते रहने के बाद भी दोहा प्रासंगिक रहा उसी तरह जैसे पाकशाला में पानी। दोहा की सरलता-तरलता ही उसकी प्राणशक्ति है। दोहा की संजीवनी पाकर अन्य छंद भी प्राणवंत हो जाते हैं। इसलिये दोहा का उपयोग अन्य छंदों के बीच में रस परिवर्तन, भाव परिवर्तन या प्रसंग परिवर्तन के लिए किया जाता रहा है। निम्न सारणी देखिये-
क्रमांक   नाम   गुरु   लघु   कुल कलाएं   कुल मात्राएँ 
- -                      २४     ०           २४              ४८
- -                      २३      २          २५              ४८
१.         भ्रामर   २२      ४           २६              ४८
२.      सुभ्रामर   २१      ६          २७               ४८
३.       शरभ      २०      ८          २८               ४८
४.       श्येन      १९     १०          २९               ४८
५.       मंडूक     १८    १२          ३०               ४८
६.       मर्कट     १७    १४          ३१                ४८
७.      करभ
     १६     १६          ३२               ४८
८.
        नर       १५     १८         ३३               ४८
९.
        हंस       १४     २०         ३४               ४८
१०.
     गयंद     १३      २२        ३५               ४८
११.
    पयोधर   १२     २४        ३६               ४८
१२.       बल       ११     २६         ३७               ४८
१३.      पान       १०     २८        ३८               ४८
१४.     त्रिकल      ९     ३०        ३९               ४८
१५.    कच्छप     ८     ३२        ४०               ४८
१६.      मच्छ       ७    ३४        ४१               ४८
१७.     शार्दूल      ६     ३६        ४२               ४८
१८.     अहिवर    ५    ३८        ४३               ४८
१९.     व्याल       ४     ४०       ४४               ४८
२०.    विडाल      ३     ४२       ४५              ४८
२१.     श्वान        २     ४४        ४६              ४८
२२.      उदर       १      ४६       ४७              ४८
२३.      सर्प        ०      ४८       ४८              ४८

इस लम्बी सूची को देखकर घबराइये मत। यह देखिये कि आचार्यों ने किसी गणितज्ञ की तरह समस्त संभावनायें तलाश कर दोहे के २३ प्रकार बताये। दोहे के दो पदों में २४ गुरु होने पर लघु के लिए स्थान ही नहीं बचता। सम चरणों के अंत में लघु हुए बिना दोहा नहीं कहा जा सकता।
२३ गुरु होने पर हर पद में केवल एक लघु होगा जो सम चरण में रहेगा। तब विषम चरण में लघु मात्र न होने से दोहा कहना संभव न होगा। आपने जो दोहे कहे हैं या जो दोहे आपको याद हैं वे इनमें से किस प्रकार के हैं, रूचि हो तो देख सकते हैं। क्या आप इन २३ प्रकारों के दोहे कह सकते हैं? कोशिश करें...कठिन लगे तो न करें...मन की मौज में दोहे कहते जाएँ...धीरे-धीरे अपने आप ही ये दोहे आपको माध्यम बनाकर बिना बताये, बिना पूछे आपकी कलम से उतर आयेंगे।

साखी से सिख्खी हुआ...

कबीर ने दोहा को शिक्षा देने का अचूक अस्त्र बना लिया। शिक्षा सम्बन्धी दोहे साखी कहलाये। गुरु नानकदेव ने दोहे को अपने रंग में रंग कर माया में भरमाई दुनिया को मायापति से मिलाने का साधन बना दिया। साखी से सिख्खी हुए दोहे की छटा देखिये-
पहले मरण कुबूल कर, जीवन दी छंड आस.
हो सबनां दी रेनकां, आओ हमरे पास..
सोचै सोच न होवई, जे सोची लखवार.
चुप्पै चुप्प न होवई, जे लाई लिवतार..
इक दू जीभौ लख होहि, लाख होवहि लख वीस.
लखु लखु गेडा आखिअहि, एकु नामु जगदीस..
दोहा की छवियाँ अमित

दोहा की छवियाँ अमित, सभी एक से एक.
निरख-परख रचिए इन्हें, दोहद सहित विवेक..

दोहा के तेईस हैं, ललित-ललाम प्रकार.
व्यक्त कर सकें भाव हर, कवि विधि के अनुसार..

भ्रमर-सुभ्रामर में रहें, गुरु बाइस-इक्कीस.
शरभ-श्येन में गुरु रहें, बीस और उन्नीस..

रखें चार-छ: लघु सदा, भ्रमर सुभ्रामर छाँट.
आठ और दस लघु सहित, शरभ-श्येन के ठाठ..


भ्रमर- २२ गुरु, ४ लघु=४८

बाइस गुरु, लघु चार ले, रचिए दोहा मीत.
भ्रमर सद्रश गुनगुन करे, बना प्रीत की रीत.

सांसें सांसों में समा, दो हो पूरा काज,
मेरी ही तो हो सखे, क्यों आती है लाज?


सुभ्रामर - २१ गुरु, ६ लघु=४८

इक्किस गुरु छ: लघु सहित, दोहा ले मन मोह.
कहें सुभ्रामर कवि इसे, सह ना सकें विछोह..

पाना-खोना दें भुला, देख रहा अज्ञेय.
हा-हा,ही-ही ही नहीं, है सांसों का ध्येय..


शरभ- २० गुरु, ८ लघु=४८

रहे बीस गुरु आठ लघु का उत्तम संयोग.
कहलाता दोहा शरभ, हरता है भव-रोग..

हँसे अंगिका-बज्जिका, बुन्देली के साथ.
मिले मराठी-मालवी, उर्दू दोहा-हाथ..


श्येन- १९ गुरु, १० लघु=४८

उन्निस गुरु दस लघु रहें, श्येन मिले शुभ नाम.
कभी भोर का गीत हो, कभी भजन की शाम..

ठोंका-पीटा-बजाया, साधा सधा न वाद्य.
बिना चबाये खा लिया, नहीं पचेगा खाद्य..


दोहा के २३ प्रकारों में से चार से परिचय प्राप्त करें और उन्हें मित्र बनाने का प्रयास करें.
 
दोहा के आकर्षण से भारतेंदु हरिश्चन्द्र के अंग्रेज मित्र स्व. श्री फ्रेडरिक पिंकोट नहीं बच सके। श्री पिंकोट का निम्न सोरठा एवं दोहा यह भी तो कहता है कि जब एक विदेशी और हिन्दी न जाननेवाला इन छंदों को अपना सकता है तो हम भारतीय इन्हें सिद्ध क्यों नहीं कर सकते? प्रश्न इच्छाशक्ति का है, छंद तो सभी को गले लगाने के लिए उत्सुक है।  

बैस वंस अवतंस, श्री बाबू हरिचंद जू.
छीर-नीर कलहंस, टुक उत्तर लिख दे मोहि.

शब्दार्थ: बैस=वैश्य, वंस= वंश, अवतंस=अवतंश, जू=जी, छीर=क्षीर=दूध, नीर=पानी, कलहंस=राजहंस, तुक=तनिक, मोहि=मुझे.

भावार्थ: हे वैश्य कुल में अवतरित बाबू हरिश्चंद्र जी! आप राजहंस की तरह दूध-पानी के मिश्रण में से दूध को अलग कर पीने में समर्थ हैं. मुझे उत्तर देने की कृपा कीजिये.

श्रीयुत सकल कविंद, कुलनुत बाबू हरिचंद.
भारत हृदय सतार नभ, उदय रहो जनु चंद.


भावार्थ: हे सभी कवियों में सर्वाधिक श्री संपन्न, कवियों के कुल भूषण! आप भारत के हृदयरूपी आकाश में चंद्रमा की तरह उदित हुए हैं.

सुविख्यात सूफी संत अमीर खुसरो (संवत १३१२-१३८२) ने दोहा का दामन थामा तो दोहा ने उनकी प्यास मिटाने के साथ-साथ उन्हें जन-मन में प्रतिष्ठित कर अमर कर दिया-

गोरी सोयी सेज पर, मुख पर डारे केस.
चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस..

खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग.
तन मेरो मन पीउ को, दोउ भये इक रंग..

सजन सकारे जायेंगे, नैन मरेंगे रोय.
विधना ऐसी रैन कर, भोर कभी ना होय..


गोष्ठी के समापन से पूर्व एक रोचक प्रसंग

एक बार सद्‍गुरु रामानंद के शिष्य कबीरदास सत्संग की चाह में अपने ज्येष्ठ गुरुभाई रैदास के पास पहुँचे। रैदास अपनी कुटिया के बाहर पेड़ की छाँह में चमड़ा पका रहे थे। उन्होंने कबीर के लिए निकट ही पीढ़ा बिछा दिया और चमड़ा पकाने का कार्य करते-करते बातचीत प्रारंभ कर दी। कुछ देर बाद कबीर को प्यास लगी। उन्होंने रैदास से पानी माँगा। रैदास उठकर जाते तो चमड़ा खराब हो जाता, न जाते तो कबीर प्यासे रह जाते... उन्होंने आव देखा न ताव समीप रखा लोटा उठाया और चमड़ा पकाने की हंडी में भरे पानी में डुबाया, भरा और पीने के लिए कबीर को दे दिया। कबीर यह देखकर भौंचक्के रह गये किन्तु रैदास के प्रति आदर और संकोच के कारण कुछ कह नहीं सके। उन्हें चमड़े का पानी पीने में हिचक हुई, न पीते तो रैदास के नाराज होने का भय... कबीर ने हाथों की अंजुरी बनाकर होठों के नीचे न लगाकर ठुड्डी के नीचे लगाली तथा पानी को मुँह में न जाने दिया। पानी अंगरखे की बाँह में समा गया, बाँह लाल हो गयी। कुछ देर बाद रैदास से बिदा लकर  कबीर घर वापिस लौट गये और अंगरखा उतारकर अपनी पत्नी लोई को दे दिया। लोई भोजन पकाने में व्यस्त थी, उसने अपनी पुत्री कमाली को वह अंगरखा धोने के लिए कहा। अंगरखा धोते समय कमाली ने देखा उसकी बाँह  लाल थी... उसने देख कि लाल रंग छूट नहीं रहा है तो उसने मुँह से चूस-चूस कर सारा लाल रंग निकाल दिया... इससे उसका गला लाल हो गया। तत्पश्चात कमाली मायके से बिदा होकर अपनी ससुराल चली गयी।

कुछ दिनों के बाद गुरु रामानंद तथा कबीर का काबुल-पेशावर जाने का कार्यक्रम बना। दोनों परा विद्या (उड़ने की कला) में निष्णात थे। मार्ग में कबीर-पुत्री कमाली की ससुराल थी। कबीर के अनुरोध पर गुरु ने कमाली के घर रुकने की सहमति दे दी। वे अचानक कमाली के घर पहुँचे तो उन्हें घर के आँगन में दो खाटों पर स्वच्छ गद्दे-तकिये तथा दो बाजोट-गद्दी लगे मिले। समीप ही हाथ-मुँह धोने के लिए बाल्टी में ताज़ा-ठंडा पानी रखा था। यही नहीं उन्होंने कमाली को हाथ में लोटा लिये हाथ-मुँह धुलाने के लिए तत्पर पाया। कबीर यह देखकर अचंभित रह गये ककि  हाथ-मुँह धुलाने के तुंरत बाद कमाली गरमागरम खाना परोसकर ले आयी।

भोजन कर गुरु आराम फरमाने लगे तो मौका देखकर कबीर ने कमाली से पूछा कि उसे कैसे पता चला कि वे दोनों आने वाले हैं? वह बिना किसी सूचना के उनके स्वागत के लिए तैयार कैसे थी? कमाली ने बताया कि रंगा लगा कुरता चूस-चूसकर साफ़ करने के बाद अब उसे भावी घटनाओं का आभास हो जाता है। तब कबीर समझ सके कि उस दिन गुरुभाई रैदास उन्हें कितनी बड़ी सिद्धि बिना बताये दे रहे थे तथा वे नादानी में वंचित रह गये।

कमाली के घर से वापिस लौटने के कुछ दिन बाद कबीर पुनः रैदास के पास गये... प्यास लगी तो पानी माँगा... इस बार रैदास ने कुटिया में जाकर स्वच्छ लोटे में पानी लाकर दिया तो कबीर बोल पड़े कि पानी तो यहाँ कुण्डी में ही भरा था, वही दे देते। तब रैदास ने एक दोहा कहा-

जब पाया पीया नहीं, था मन में अभिमान.
अब पछताए होत क्या नीर गया मुल्तान.


कबीर ने इस घटना अब सबक सीखकर अपने अहम् को तिलांजलि दे दी तथा मन में अन्तर्निहित प्रेम-कस्तूरी की गंध पाकर ढाई आखर की दुनिया में मस्त हो गये और दोहा को साखी का रूप देकर भव-मुक्ति की राह बताई -

कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढें बन माँहि .
ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नाँहि.


आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

मुझे पहले यूँ लगता था करिश्मा चाहिये मुझको - नवीन

मुझे पहले यूँ लगता था करिश्मा चाहिये मुझको
मगर अब जा के समझा हूँ क़रीना चाहिये मुझको
करिश्मा – चमत्कार, क़रीना – तमीज़, शिष्टता

तो क्या मैं इतना पापी हूँ कि इक लाड़ो नहीं बख़्शी
बहू के रूप में ही दे – तनूजा चाहिये मुझ को
तनूजा – बेटी

हिमालय का गुलाबी जिस्म इन हाथों से छूना है
कहो सूरज से उग भी जाय, अनुष्का चाहिये मुझको
अनुष्का – रौशनी, सूरज की पहली किरण

करोड़ों की ये आबादी कहीं प्यासी न मर जाये
हरिक लाख आदमी पर इक बिपाशा चाहिये मुझको
बिपाशा – नदी

नहीं हरगिज़ अँधेरों की हिमायत कर रहा हूँ मैं
नई इक भोर की ख़ातिर शबाना चाहिये मुझको
शबाना – रात

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे हजज मुसम्मन सालिम 
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 

1222 1222 1222 1222

ये एक अब्र का टुकड़ा कहाँ-कहाँ बरसे - शकेब जलाली

जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है
मेरी तरह से अकेला दिखाई देता है
सहरा - रेगिस्तान

न इतनी तेज़ चले, सरफिरी हवा से कहो
शजर पे एक ही पत्ता दिखाई देता है
शजर - पेड़ 

ये एक अब्र का टुकड़ा कहाँ-कहाँ बरसे
तमाम दश्त ही प्यासा दिखाई देता है
अब्र - बादल, दश्त - जंगल / कानन

वहीं पहुँच के गिराएँगे बादबाँ अपने
वो दूर कोई जज़ीरा दिखाई देता है
 बादबाँ - पाल, जज़ीरा - टापू

वो अलविदाअ का मंज़र, वो भीगती आँखें
पसेगुबार भी क्या-क्या दिखाई देता है
 अलविदाअ - विदाई, मंज़र - दृश्य, पसेगुबार - धूल के पीछे 

मेरी निगाह से छुप कर कहाँ रहेगा कोई
कि अब तो संग भी शीशा दिखाई देता है
संग - पत्थर

:- शकेब जलाली 
बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ
मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
1212 1122 1212 22

हमारे घर से समन्दर दिखाई देता है - सुनील आफ़ताब

हरेक डूबता मंज़र दिखाई देता है
हमारे घर से समन्दर दिखाई देता है

मैं जिस के साये से बच कर निकलना चाहता हूँ
वो मुझको राह में अक्सर दिखाई देता है 

उसे कभी भी न इस बात की ख़बर हो पाये
वो अपने आप से बेहतर दिखाई देता है 

हमारे बीच ये नज़दीकियाँ ही काफ़ी हैं
तुम्हारे घर से मेरा घर दिखाई देता है 

बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ
मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
1212 1122 1212 22

मेरे मकान से दरिया दिखाई देता है - अहमद मुश्ताक़

दिलों की ओर धुआँ सा दिखाई देता है
ये शहर तो मुझे जलता दिखाई देता है
 
जहाँ कि दाग़ है याँ आगे दर्द रहता था
मगर ये दाग़ भी जाता दिखाई देता है
 
पुकारती हैं भरे शह्र की गुज़र-गाहें
वो रोज़ शाम को तन्हा दिखाई देता है
 
ये लोग टूटी हुई कश्तियों में सोते हैं
मेरे मकान से दरिया दिखाई देता है
 
ख़िज़ाँ के ज़र्द दिनों की सियाह रातों में
किसी का फूल सा चेहरा दिखाई देता है
 
कहीं मिले वो सर-ए-राह तो लिपट जाएँ
बस अब तो एक ही रस्ता दिखाई देता है

:- अहमद मुश्ताक़


बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ
मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
1212 1122 1212 22

चलो कि अपनी मुहब्बत सभी को बाँट आएँ - जाँनिसार अख़्तर

उफुक़ अगरचे पिघलता दिखाई पड़ता है
मुझे तो दूर सवेरा दिखाई पड़ता है
उफुक़ – क्षितिज, अगरचे – हालाँकि


हमारे शह्र में बे-चहरा लोग बसते हैं
कभी-कभी कोई चहरा दिखाई पड़ता है

चलो कि अपनी मुहब्बत सभी को बाँट आएँ
हर एक प्यार का भूखा दिखाई पड़ता है

जो अपनी ज़ात से एक अंजुमन कहा जाये
वो शख़्स तक मुझे तनहा दिखाई पड़ता है
ज़ात – व्यक्तित्व, अंजुमन – सभा


न कोई ख़्वाब न कोई ख़लिश न कोई ख़ुमार
ये आदमी तो अधूरा दिखाई पड़ता है
ख़लिश – दर्द या टीस का भाव, ख़ुमार – नशे के उतार की अवस्था


लचक रही हैं शुआओं की सीढ़ियाँ पैहम
फ़लक से कोई उतरता दिखाई पड़ता है
शुआअ – रश्मि / किरण / आलोक, पैहम – लगातार, फ़लक - आकाश


चमकती रेत पे ये गुस्ल-ए-आफ़ताब तेरा
बदन तमाम सुनहरा दिखाई पड़ता है
गुस्ल – स्नान, आफ़ताब – सूर्य, गुस्ल-ए-आफ़ताब - sunbath


:- जाँनिसार अख़्तर

बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ
मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
1212 1122 1212 22

बड़ा अजीब सा मंज़र दिखाई देता है - कुमार अनिल

बड़ा अजीब सा मंज़र दिखाई देता है 
 तमाम शह्र ही खंडर दिखाई देता है  

जहाँ, उगाई थी हमने फ़सल मुहब्बत की
वो खेत आज तो बंजर दिखाई देता है


जो मुझको कहता था अक्सर कि आइना हो जा
उसी के हाथ में पत्थर दिखाई देता है 

 
हमें यह डर है किनारे भी बह न जाएँ कहीं
अजब जुनूँ में समन्दर दिखाई देता है


अजीब बात है, जंगल भी आजकल यारो
तुम्हारी बस्ती से बेहतर दिखाई देता है


न जाने कितनी ही नदियों को पी गया फिर भी
युगों का प्यासा समन्दर दिखाई देता है


वो ज़र्द चेहरों पे जो चाँदनी सजाता है
मुझे ख़ुदा से भी बढ़कर दिखाई देता है 

:- कुमार अनिल

बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ
मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
1212 1122 1212 22