मुझे
पहले यूँ लगता था करिश्मा चाहिये मुझको
मगर
अब जा के समझा हूँ क़रीना चाहिये मुझको
करिश्मा – चमत्कार,
क़रीना
– तमीज़, शिष्टता
तो
क्या मैं इतना पापी हूँ कि इक लाड़ो नहीं बख़्शी
बहू
के रूप में ही दे – तनूजा चाहिये मुझ को
तनूजा – बेटी
हिमालय
का गुलाबी जिस्म इन हाथों से छूना है
कहो
सूरज से उग भी जाय, अनुष्का चाहिये मुझको
अनुष्का – रौशनी,
सूरज
की पहली किरण
करोड़ों
की ये आबादी कहीं प्यासी न मर जाये
हरिक
लाख आदमी पर इक बिपाशा चाहिये मुझको
बिपाशा – नदी
नहीं
हरगिज़ अँधेरों की हिमायत कर रहा हूँ मैं
नई इक
भोर की ख़ातिर शबाना चाहिये मुझको
शबाना – रात
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे हजज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222
1222 1222 1222
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (03-06-2013) के :चर्चा मंच 1264 पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ |
जवाब देंहटाएं.बहुत सुन्दर प्रस्तुति .बधाई हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
BHARTIY NARI .
एक छोटी पहल -मासिक हिंदी पत्रिका की योजना
ये नूतन - सी गज़ल प्यारी,बड़ी भोली सी चाहत है
जवाब देंहटाएंमहक जूही की शेरों में , कयामत है - कयामत है
नगीना है , ये मीना है , कहन का क्या करीना है
गज़ल है या कि मधुबाला ,इनायत है - इनायत है
जहाँ मुमताज है ज़िंदा , महल ये संगमरमर का
जहां के वास्ते मांगी , मोहब्बत की इबादत है
बधाई हो ! गज़ल अच्छी , ये रस की माधुरी लाई
खिंची मुस्कान की रेखा,मिली इस दिल को राहत है .
सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंLATEST POSTअनुभूति : विविधा ३
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आदरणीय बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल ... बधाई !
जवाब देंहटाएंwaah bahut sundar .....
जवाब देंहटाएंभई वाह ..
जवाब देंहटाएंसर घुमा दिया आपने ..