जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है
मेरी तरह से अकेला दिखाई देता है
सहरा - रेगिस्तान
न इतनी तेज़ चले, सरफिरी हवा से कहो
शजर पे एक ही पत्ता दिखाई देता है
शजर - पेड़
ये एक अब्र का टुकड़ा कहाँ-कहाँ बरसे
तमाम दश्त ही प्यासा दिखाई देता है
अब्र - बादल, दश्त - जंगल / कानन
वहीं पहुँच के गिराएँगे बादबाँ अपने
वो दूर कोई जज़ीरा दिखाई देता है
बादबाँ - पाल, जज़ीरा - टापू
वो अलविदाअ का मंज़र, वो भीगती आँखें
पसेगुबार भी क्या-क्या दिखाई देता है
अलविदाअ - विदाई, मंज़र - दृश्य, पसेगुबार - धूल के पीछे
मेरी निगाह से छुप कर कहाँ रहेगा कोई
कि अब तो संग भी शीशा दिखाई देता है
संग - पत्थर
:- शकेब जलाली
बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ
मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
1212 1122 1212 22
वाह ॥बहुत खूबसूरत गज़ल पढ़वाई ...आभार
जवाब देंहटाएंक्या देखे दिल्ली और क्या मीनारों-बाज़ार..,
जवाब देंहटाएंचौफेर शहेमात का तमाशा दिखाई देता है.....