8 जनवरी 2014

SP2/3/2 खुर्शीद खैराड़ी + सत्य नारायण सिंह

नमस्कार।

पिछली पोस्ट में उठी शंका जो कि पाद-संयोजन से सम्बन्धित है, का समाधान एक अलग पोस्ट के ज़रिये किया गया है। उस पोस्ट को पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें

वर्तमान आयोजन की पहली पोस्ट को लोगों का अच्छा प्रतिसाद मिला है। दूसरी पोस्ट भी अपने फ्लेवर के साथ आप के समक्ष आ रही है। इस पोस्ट में हम महावीर भाई उर्फ़ खुर्शीद खैराड़ी के साथ-साथ मुम्बई निवासी भाई सत्यनारायण सिंह जी के छंदों को भी पढ़ेंगे। इस आयोजन से हम रचनाधर्मियों के मोबाइल नम्बर देना शुरू कर रहे हैं ताकि उन के प्रशंसक उन से सीधे संवाद कर सकें। जिन-जिन साथियों को अपने मोबाइल नम्बर छपने में दिक्कत न हो वह अपना-अपना मोबाइल नम्बर मेल के साथ भेजने की कृपा करें।  

तो आइये शुरुआत करते हैं भाई खुर्शीद खैराड़ी जी [9413408422] के छंदों के साथ

मैं अपनी ही खोज में ,भटक रहा दिन रात
ख़ुद, ख़ुद को मिलता नहींसुलझे कैसे बात?
सुलझे कैसे बात? सामने कैसे आऊँ?
ख़ुद अपनी ही ओट लिए ख़ुद से छुप जाऊँ।
युगों-युगों से खेल रहा हूँ खेल अनोखा
ख़ुद से ही हर बार खा रहा हूँ ख़ुद धोखा   
   
हम अपने ही देश मेंपरदेसी हैं आज
आयातित हर चीज परकरते कितना नाज
करते कितना नाज सभ्यता बेगानी पर
भूल गये हैं देश यही था देवों का घर
भारत माँ के लाल फिरंगी बनकर डोलें
निज गौरव को भूल विदेशी बानी बोलें

तुम चाहो तो देश का ,कर दो खस्ताहाल
चाहो तो श्रमजल बहा ,ऊँचा करदो भाल
ऊँचा करदो भालपुरातन यश लौटा दो
जागो भारत भाग्य विधाता भाग्य जगा दो
ख़ुद से यूँ अनजानहाशिए पे रहकर गुम
कब तक यूँ बेहोश रहोगे औसत जन तुम  ? 

इस मञ्च के पाठक सुधि-जन हैं और हर पंक्ति की मीमांसा अच्छी तरह कर सकते हैं। खुर्शीद भाई ने छंदों के परिमार्जन हेतु सतत प्रयास किया और परिणाम हमारे सामने है। दरअसल जिस तरह हम नर्सरी से स्नातक या स्नातकोत्तर का सफ़र तय करते हैं उसी तरह छंद-अभ्यास भी नित-नयी बातें सीखने के लिये प्रेरित करता है। हमें ख़ुशी है कि महावीर जी ने मञ्च के निवेदन पर अपने छंदों कों बार-बार बदला। सरल भाषा, सफल संवाद और तर्कपूर्ण संदेश इन छंदों की विशेषताएँ हैं। मञ्च को उम्मीद है कि अगली बार हमें इन से और बेहतर मिलेगा। औसत-जन के लिये विशेष बधाई।  

इस पोस्ट के अगले रचनाधर्मी हैं भाई सत्य नारायण जी [9768336346]

मैं  के चिंतन से हुआ, आत्म बोध का ज्ञान।
उस अविनाशी ब्रम्ह की, मैं  चेतन संतान।।
मैं चेतन संतान अंश उस मूल रूप का 
सहज भाव से ध्यान धरूँ मैं  उस अनूप का।।
समझाते शुचि ज्ञान सहज  हमको योगेश्वर।
शाश्वत आत्मा किन्तु मनुज का तन है नश्वर।।

चेतन = आत्मा

हम से उर में जागतेशुभ सहकारी भाव।
अहम भाव जो नष्ट कर, भरते हिय के घाव।।
भरते हिय के घाव अहम का लेश न रहता 
मिट जाता अभिमान  वहम भी शेष न रहता।।
सदियों से यह बात सनातन चलते आई 
तुम’ अरु ‘मैं’ का योग सदा ‘हम’ होता भाई।। 

तुम कारक है द्वेष का, दर्शाता पार्थक्य ।
होते आँखें  चार  ही,  दूर हुआ पार्थक्य ।।
दूर हुआ पार्थक्य, बात कैसे समझाऊँ।
जित जित जाऊँ परछाईं सी तुम’ को पाऊँ ।।
दर्शन की मन चाह मिलो तो आँख चुराऊँ ।
सरसे तुम’  से प्रेम बिना तुम’  मैं अकुलाऊँ।।

पार्थक्य पृथकता या अलगाव का भाव

साहित्य की सफलता इसी में है कि जितने रचनाधर्मी हों उतनी तरह की रचनाएँ पढ़ने को मिलें। हर व्यक्ति के अपने अनुभव और अनुभूतियाँ होती हैं। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की विविध अभिव्यक्तियों को पढ़ना ही पाठक या श्रोता का उद्देश्य होता है। गायक किशोर कुमार की हयात के दौरान तथा बाद में भी बहुतों ने उन की नकल में गाने की कोशिश की मगर क्षणिक सफलता के बाद असफल हो गये। हमें अपनी मूल अभिव्यक्ति के साथ आगे बढ़ना होता है। परन्तु मूल अभिव्यक्ति का मतलब मूल धारा से बिलगना नहीं हो सकता। मूल धारा मतलब “सरल भाषा, सफल संवाद और तर्कपूर्ण संदेश

तो साथियो आप आनन्द लीजियेगा इन छंदों का, उत्साह वर्धन कीजियेगा अपने साथियों का और हम बढ़ते हैं अगली पोस्ट की ओर।


नमस्कार 

33 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आ.गाफ़िल सा.
      आशीर्वाद के लिए आभारी हूं
      सादर

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    2. प्रस्तुति पर वाह वाही स्वरुप मिला आपका अनुमोदन मन को मुग्ध कर गया. उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार आदरणीय चन्द्र भूषण जी,

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  2. दोनों विद्वानों ने सुंदर छंद लिखे हैं। दोनों को बहुत बहुत बधाई

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    1. आ.सज्जन सा.
      हृदय की गहराई से आभार
      सादर

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    2. रचना को इस तरह से आपने सम्मान दिया आभारी हूँ आदरणीय धर्मेन्द्र जी

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  3. उत्तर
    1. आ.पांडेय जी
      बहुत २ आभार
      सादर

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    2. आपकी हौसला अफ़ज़ाई से अभिभूत हूँ आदरणीय प्रवीण पाण्डेय जी

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. मैं, हम और तुम तीनों शब्द सुन्दर भावों एवं सरल शब्दों में परिभाषित हुए है आदरणीय खैराड़ीजी बहुत बहुत हार्दिक बधाई स्वीकार करें

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    उत्तर
    1. आ.सत्यनारायणजी
      सादर प्रणाम
      अकिंचन का प्रयास आपकी विद्वतापूर्ण पंक्तियों के साथ स्थान पाकर थोडा सा चमक गया है
      आशीर्वाद एवं स्नेह बनाये रखियेगा

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    2. आदरणीय खैराडी जी आपकी विनम्रता से अभिभूत हूँ सादर आभार

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  6. भाई खुर्शीद खैराड़ीजी के सतत प्रयास / अभ्यास की बातें सुन कर उनके द्वारा मैराथन प्रक्रिया को अपनाये जाने की पुष्टि हो रही है. मन प्रसन्न है.

    आदरणीय सत्यनारायणजी को एक अरसे से पढ़ता रहा हूँ, आपकी सतत प्रक्रिया आशान्वित करती है.
    छंद रचनाओं को तथ्यों से समृद्ध करने का आपका प्रयास सदा से ध्यान आकृष्ट करता रहा है.

    दोनों छंद अभ्यासियों को मेरी सादर शुभकामनाएँ.

    सादर

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    1. आ.सौरभ भाईसा.
      सादर प्रणाम
      आपका स्नेहाशीष मेरी छंदोभ्यास की साधना में उत्प्रेरक का कार्य करेगा
      स्नेहाकांक्षी अनुज

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    2. परम आदरणीय सौरभ जी रचना पर आपकी उपस्थिति और टिप्प्णी से मन प्रसन्न हुआ. उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार. छंद सीखने के क्रम मे आदरणीय नवीन जी एवं आदरणीय आपकी सलाह और सहायता की हमेशा ज़रूरत रहेगी, ऐसे ही स्नेह भविष्य में बनाये रखें.

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  7. दोनों आदरणीय ने बहुत ही सुन्दर छंद प्रस्तुतु किये हैं ... मन को छूते हैं ...
    बधाई ...

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    उत्तर
    1. आ.दिगम्बर सा.
      आशीर्वाद के लिए आभार
      सादर

      हटाएं
    2. आ.दिगम्बर सा.
      आशीर्वाद के लिए सादर आभार

      हटाएं
    3. आपका अनुमोदन मिला, बहुत खुशी हुई, सराहना के लिये आपका आभारी हूँ आदरणीय नासवा जी

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  8. छंदों की समृद्ध भाषा में सुंदर प्रस्तुति केलिए दोनों विद्वानों को बहुत बहुत बधाई

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    1. आ. दीदी
      सादर प्रणाम
      आपके छंदों से सीखकर ही थोड़ा बहुत अभ्यास किया है ,आपके आशीर्वाद से मनोबल बढ़ गया है |हृदय से आभार |
      सादर

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    2. रचना पर आपकी उपस्थिति और टिप्प्णी से मन प्रसन्न हुआ. उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार आदरेया

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  9. आ.नवीन भाईसा.
    सादर प्रणाम
    आपके स्नेह एवं आशीर्वाद के बिना छंदों का अभ्यास असंभव था|आपके सतत मार्गदर्शन से ही भावपुष्प छन्दमाल में गूँथ पाया हूं |आपने एक सच्चे हितेषी की तरह ,एक एक शब्द के प्रति सावचेत किया ,आपके सहयोग से अभिभूत हूं ,आभार शब्द आपके योगदान के आगे छोटा है |
    स्नेह बनाये रखियेगा
    सादर

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  10. शीर्षक को परिभाषित करती दोनों रचनाकारों की नव कुण्डलिया सुन्दर और सार्थक हैं...आदरणीय खुर्शीद जी एवं सत्यनारायण जी को सादर बधाई !!

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    1. आ.ऋता दीदी
      सादर आभार ,आपका स्नेह पाकर प्रफुल्लित हूं
      सादर

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  11. रचना पर आपकी उपस्थिति और टिप्प्णी से मन प्रसन्न हुआ. उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार आदरेया.

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  12. श्री खुर्शीद खैराड़ी व श्री सत्य नारायण सिंह दोनों के द्वारा रचित छंद अत्यंत हृदयस्पर्शी हैं ...उन्हें हमारी और से बहुत-बहुत बधाई.... यदि थोड़ा सा श्रम और किया जाता तो ये सभी छंद पिंगल के साँचे में भी फिट बैठ सकते थे ...

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    1. आ. अम्बरीश जी
      सादर आभार ,सतत प्रयास से छंदों में निखार हेतु साधनारत रहूँगा ,स्नेह बनाये रखियेगा

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