24 दिसंबर 2013

नया समस्या पूर्ति आयोजन

प्रणाम

हमें लगता था समस्या पूर्ति आयोजन के पाठक रचनाधर्मी व्यक्ति ही हैं। परन्तु पिछले दिनों सुखद आश्चर्य हुआ जब अनेक कविमना व्यक्तियों ने उलाहना दिया कि भाई पाँच महीने हो गये, अगली समस्या पूर्ति  कब? अच्छा लगता है यह जान कर कि कोई हमारे काम को चुपचाप देख-पढ़ रहा है। इन व्यक्तियों से जब पूछा कि अब तक का सब से अच्छा छंद कौन सा लगा तो अधिकांश लोगों का मानना रहा कि कुंडली छंद वाला आयोजन सब से ज़ियादा मज़ेदार रहा और साथ ही काका हाथरसी टाइप कुंडली को शामिल करने के लिए भी कहा। तो मन में आया क्यूँ न इस बार अधिक से अधिक लोगों को शामिल होने का मौक़ा दिया जाये। काका हाथरसी टाइप छंदों को लोग छक्का भी कहते रहे हैं और इस तरह के नामकरण से खिन्न हो कर मैंने इस तरह के छंदों को अपनी तरफ़ से नव-कुण्डलिया छन्द का नाम दिया है। आप के सुझाव चाहिए कि क्या इस बार का आयोजन नव-कुण्डलिया छन्द” पर रखा जाये? आप के सुझाव मिलने के बाद अगला क़दम उठाया जायेगा।


किसी व्यक्ति विशेष का नाम लिये बिना सभी नये-पुराने साथियों से सविनय निवेदन बल्कि साधिकार विनम्र आग्रह है कि मञ्च की गरिमा को उठाने में सहकार्य करें। 

18 टिप्‍पणियां:

  1. छंदों के बारे में मेरी राय से आप भली भांति परिचित हैं आ० नवीन भाई जी. प्रयोग है, किन्तु मेरी व्यक्तिगत राय में इस छंद के सनातनी स्वरुप को अक्षुण्ण रखना ही उचित होगा।

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    1. इस मञ्च को गति प्रदान करने वाले आदरणीय योगराज भाई जी लंबे अन्तराल के बाद आप की उपस्थिति से मन अतिशय प्रफुल्लित है। लंबी बीमारी से उबर कर आप हमारे बीच अपने वरद-हस्त के साथ उपस्थित हैं, यह हमारे लिए बेहद ख़ुशी का सबब है। आप की राय मञ्च के हित में रही है। हम सब जल्द ही इस दिशा में आगे बढ़ेंगे।

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  2. एक बार फिर से खुशनुमा बयार चलने वाली है ... आनद की छींटें पड़ने वाली हैं ...
    बधाई और शुभकामनायें ...

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    1. दिगम्बर नासवा जी हैं जहाँ, ख़ुशगवार बयार हैं वहाँ :)

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  3. ☆★☆★☆




    आदरणीय नवीन जी
    सस्नेहाभिवादन !

    काका हाथरसी टाइप कुंडली को “नव-कुण्डलिया छन्द” का नाम देते हुए
    समस्या पूर्ति का नया आयोजन किया जाता है तो यह स्वागत योग्य कदम है ।
    कुंडली का शुद्ध रूप जानने और उसमें काम करने वाले गुणी रचनाकारों के लिए भी
    इस आयोजन की रचनाएं पढ़ना अच्छे अनुभव से गुज़रने वाली बात होगी ।
    निःसंदेह ऐसे आयोजन सभी के लिए कुछ नया सीखने और श्रेष्ठ करने की प्रेरणा देने में सहायक होते हैं ।
    मेरा पूरा प्रयास रहेगा आयोजन में सक्रिय उपस्थिति के लिए...
    (आपको स्मरण ही होगा - जनवरी में मेरे दो बेटों के विवाह होने हैं
    रिश्तेदारों के यहां बहुत सारे विवाहों के अलावा)
    फिर भी मैंने "ठाले-बैठे" के हर समस्यापूर्ति आयोजन को सदैव हृदय से मान दिया है,
    आगे भी देता रहूंगा...
    क्योंकि आपके गुणों और व्यवहार के कारण आपसे और आपके सभी आयोजनों से मेरा मन जुड़ा है ।

    आयोजन की सफलता के लिए हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !

    नव वर्ष की भी अग्रिम बधाइयां !

    शुभकामनाओं सहित...
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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    1. आदरणीय राजेन्द्र भाई जी सप्रेम नमस्कार और दौनों बच्चों की शादी के उपलक्ष्य में अनेक शुभ-कामनाएँ। ईश्वर दौनों बच्चों के दाम्पत्य जीवन के तमाम खुशियों से भर दें। नव-कुण्डलिया का सुझाव आया था, मेरा भी मानस बन गया; परन्तु जैसा कि आप भी जानते हैं कि हम सभी आपस में विचार विमर्श कर के ही आगे बढ़ते हैं, सो जल्द ही इस विषय में निर्णय लिया जायेगा।

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  4. इस आयोजन में विद्वत समुदाय से कुछ नयी बातें साहित्य के नए गुर सीखने को
    मिलेंगे
    आयोजन की सफलता के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनायें

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    1. अन्तर्जाल पर आने के साथ ही से मैं कहता रहा हूँ कि हम सभी विद्यार्थी हैं, आज भी वही दुहराऊँगा

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  5. हमें तो कुछ नए की प्रतीक्षा है
    आयोजन के लिए शुभकामनाएँ

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  6. आपके मेल को कई कारणॊं से नवीनभाईजी अभी देख पा रहा हूँ. इस अपेक्षित मेल के लिए हार्दिक धन्यवाद.

    इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रवाह मात्र प्रगति ही नहीं, उत्साह और शुद्धता की भी निशानी है. कहते हैं न, ,. बहता पानी निर्मला, बंधा गंदा होय. यह उक्ति हमारे दृश्य-अदृश ’संसार’ के समस्त व्यवहारों और क्रियाकलापों के लिए सत्य है.

    इस क्रम में हम शास्त्रीय छंदों की उत्पत्ति, उनके प्रचलन और स्वीकार्य मान्यताओं के इतिहास पर भी दृष्टिपात करें तो इस व्यवहार की सफलता को देखते हैं. यानि मान्य छंदों पर हुई रचनाओं में कई चमत्कार और कौतुक के सफल प्रयोग हुए हैं. चार पदों की सवैया-रचनाओं में पहला पद किसी सवैया से प्रारम्भ हुआ तो अगला पद किसी और सवैया से हुआ तो अंत किसी और ही सवैया से ! ये मिश्र-सवैया के नाम से जाने जाते हैं.

    रचनाओं का लेकिन ऐसा कोई कौतुक कभी स्थायी भाव का नहीं माना गया. बल्कि मात्र सुविधा और कौतुक ही मूल में रहा है. ऐसे सारे प्रयोग रचनाकार की व्यक्तिगत रुचि और उनके रचना-व्यवहार का हिस्सा भर हो कर रह गये. मूल छंद आजतक वही रहे हैं जो शाश्वत हैं.

    कुण्डलिया के साथ पहले भी कई प्रयोग हुए हैं.
    काका हाथरसी का प्रयोग अत्यंत प्रसिद्ध भी हुआ. लेकिन काका की बयार काका की थी. उसका अनुकरण कई रचनाकार आजभी करते हैं. लेकिन जिस शास्त्रीयता को हमारा, हम सभी का, मन स्वीकारता है और यह मंच भी जिसका अनुमोदन करता है, उसकी टेक मूल छंद ही होनी चाहिये.
    प्रयोगधर्मिता को हम मान दें, लेकिन उस प्रयोगधर्मिता का उद्येश्य स्पष्ट होना चाहिये. यह मंच छंद के प्रचार-प्रसार को अपना धर्म मानता है तो कोई आयोजन मूल छंद पर ही आधारित हो, नकि बनावटी या मिश्र छंदों पर आधारित रचनाओं पर.
    सादर

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    1. आप जैसे मनीषी ही तो इस मञ्च की गरिमा हैं। आप के विचारों का पूर्ण सम्मान है। हम लोग जल्द ही इस विषय में किसी निष्कर्ष पर पहुँचेंगे। आ. योगराज जी भी आप के मत से सहमत हैं। देवमणि पाण्डेय जी और राजेन्द्र जी नव-कुण्डलिया छंद के पक्ष में भी हैं। अन्य साथियों के विचारों की प्रतीक्षा है।

      कुण्डलिया छंद को मुश्किल समझने वाले लोगों को शायद इस तरह मूल छंद तक पहुँचने में आसानी रहेगी, ये सोच कर सुझाव को पटल तक पहुँचाया। सभी के विचार आने के बाद हम लोग मिल कर निर्णय लेंगे।

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  7. हम तो आनन्दपूर्वक देख रहे हैं, छन्दों की महारत है आपका।

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  8. मेरा वोट मूल छंद के पक्ष में। छूट देने के लिए ऐसा कर सकते हैं कि दो कुंडलिया मूल छंद पर और एक नव कुंडलिया छंद पर।

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