काश्मीर के प्रति - साहित्य वारिधि डा. शंकर लाल 'सुधाकर' - एक समीक्षा

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काश्मीर के प्रति - साहित्य वारिधि डा. शंकर लाल 'सुधाकर' - एक पाठक समीक्षा
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ओ हिंद वीर के उच्च भाल, किन्नरियों के पावन, सुदेश ।
तेरी महिमा का अमित गान, कर सकते क्या सारद गणेश ।।

सौन्दर्य सलिल सरवर है तू, नर नलिन जहाँ सर्वत्र खिले ।
मधुकरी किन्नरी वार चुकी , मधु -रस लेकर मन मुक्त भले ।।

पर्वत पयस्विनि पादप गन , पुष्पावलि पावन विविध रंग ।
आभूषित कलित मृदुल मधु मय , प्रकृति वनिता के विविध रंग।।

जब मैंने इन पंक्तियों को पढ़ा तो सहसा ही मैथिलीशरण गुप्त और रामधारी सिंह दिनकर की स्मृतियाँ जाग उठीं| ऐसा सतत प्रवाह, ऐसा शब्द संयोजन और ऐसी भाव प्रवणता अक्सर इन लोगों की रचनाओं में ही पढ़ते रहे हैं हम। फिर आगे पढ़ा:- 

भारत माता का तू ललाट,  साहित्य,शास्त्र का सौख्य सिन्धु|
लहलही हुई है विश्व-बेलि, जिसकी लघु सी पा एक बिंदु ||

जिसका पांडित्य प्रभाकर सा, खर-प्रभा दिगंत दिखाता था |
विद्वता बनारस मागध की, हारी, मुख बंग छिपाता था ||

चाणक्य चतुर नृप नीति-विज्ञ, व्याकरण करण शालातुरीय |
उत्पन्न हुए जिन जननी से, उनका तू प्रांगण दर्शनीय ||

है विश्व विदित तव बौद्ध धर्म, ललितादित का साहस अपार |
नतमस्तक था वह चीन देश, जिसके बल सन्मुख,बन सियार ||

ऐसी विलक्षण भाषा शैली कि चित्त चकित हुए बिना न रहे सके| आप सोच रहे होंगे कि मैं आखिर बात किस बारे में कर रहा हूँ| समस्या पूर्ति मंच पर आपने शेखर को पढ़ा होगा| उनके दादा जी स्व. श्री शंकर लाल चतुर्वेदी 'सुधाकर' जी द्वारा विरचित प्रबंध खण्ड काव्य 'काश्मीर के प्रति' से उद्धृत हैं ये पंक्तियाँ|  

विवेचित काव्य में कवि ने काश्मीर को केंद्र में रख कर एक वृहद अध्ययन प्रस्तुत किया है| यह एक ऐसी काव्य कृति है जो कि शोधार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण विषयवस्तु साबित होती है|  काश्मीर के अतीत को समर्पित पंक्तियाँ:-

क्षत्रिय कुल कमल दिवाकर सा, वह काश्मीर! था सिंह गुलाब
भुज विक्रम अद्रिसुता सुत सा, जननी अवनी प्रति नेह भाव ||

रिपु गर्व रदन के भंजन को, तन मन में साहस था अपार |
तिब्बत गिलकिट तक रेख खींच, पहुँचाई सीमा चीन पार ||

कवि ने काश्मीर संधि को ले कर द्वितीय सर्ग में जो लिखा है वह भी पठनीय है| कवि की कलम पूरे खण्ड काव्य में नि:शंक चलती दिखती है जो कि कवि के काव्य के प्रति समर्पण का अप्रतिम उदाहरण है| जिन्ना के दूत का मेहरचंद से मिलना, मेहरचंद द्वारा उस प्रस्ताव को अस्वीकृत कर देना, और उस के तुरंत बाद ही मेहर चंद द्वारा भारत की राजधानी दिल्ली आ कर आगे की रणनीति हेतु विचार विमर्श का शब्दांकन कवि की समय चक्र पर पकड़ के साथ साथ कुशल प्रबंधन के अनुभव को भी दिखाता है|

अक्टूबर की छब्बिस दिनांक, तेरा भारत में विलय हुआ |
जिन्ना का, जिससे काश्मीर, पवि ह्रदय टूटकर खंड हुआ ||

काली निशि नीरव अमाख्यात, राका उजियारी के ऊपर |
काली काली घनघोर घटा, छाई आभामय नभ ऊपर ||

'ओ अल्ला ओ अकबर अल्ला’, था तुमुल घोष भू अम्बर पर |
वह्रि-विस्फोटक यन्त्र युक्त, यवनों का दल था तव उर पर ||

गृह-भवन, महल, मंदिर-मस्जिद, हो गए प्रकम्पित एक बार |
घुस गए दस्यु दल दानव से, करने को तुझ पर अना चार ||

एक रुचिकर पाठक की भाँति एक ही साँस में आगे पढ़ता चला गया मैं| काश्मीर के बारे में मैं भी कमोबेश वही सब जानता हूँ जो कि एक आम हिन्दुस्तानी जानता है, इस लिहाज से भी सोचा क्यूँ न एक बार इतिहास के पन्नों को किसी और के नज़रिए से भी पढ़ के देखा जाए| भारत पाक युद्ध बंदी के लिए रूस के हस्तक्षेप का भी वर्णन है इस पुस्तक में:-


रसिया का रुख तत्क्षण पलटा, कह दिया "करो अब युद्ध बंद" |
परिषद् से होकर साधिकार, भारत आनन को किया बंद ||

भोले शास्त्री को बहलाकर, बुलवाया उसने ताशकंद |
चव्हाण, स्वर्णसिंह गए साथ, लिख दिया पत्र वह मुहर बंद ||

लाल बहादुर शास्त्री के मन की व्यथा भी है इस में| उनके देहावसान पर ये पंक्तिया:-

जनवरी मास छासठ सन था, भारत माता का लाल उठा |
पाते ही दुखद वृत्त को तब, भारत जन-गण बौखला उठा ||

झंडे झुक गए शोक छाया, उजियाले में था अन्धकार |
हा ! लाल बहादुर चला गया, घर घर मातम था चीत्कार ||

हे काश्मीर ! तेरे कारण, खोया उस लाल-बहादुर को |
शक्ति साहस से दबा दिया, जिसने अयूब से दादुर को ||

आगे जा कर इस में बांग्ला देश मुक्ति आन्दोलन पर भी पढ़ने को मिलता है| उस दौरान की कुछ वीभत्स घटनाओं की कल्पना मात्र से ही आज भी दिल काँप उठता है, ये कुछ पंक्तियाँ:-

मार्शल-ला का हुक्म हुआ, सम्पूर्ण पूर्व बंगाले में |
जय बंगलादेश, मुजीबर जय, ये गूंज उठा बंगाले में ||

वह बंग बन्धु, वह बंग सिंह, अपने घर में था नज़र बंद |
जनता ने 'शासन को सोंपो ' की मांग ध्वनि को कर बुलंद||

नृशंस लूट खसोट हुई, लूटा सतीत्व तव अबला का|
बच्चों को लूटा जननी से, सिन्दूर भाल से महिला का ||

धन-धान्य लुटा बाज़ारों में, सुख शांति लुटी थी ग्रामों से |
कुसुमोंकी कलिता कोमलता, लुट गई सफल आरामों से||

घर-घरसे लूटी गई शांति, निर्भयता बच्चों से लूटी | 
वृद्धों से अनुभव लूट लिया, ‘आ बैल मार’ विपदा टूटी ||

कन्या का शील भंग होता, यह देख पिता क्रोधित होता |
परवश था दुष्ट पठानों से, बेचारा सिर धुनकर रोता ||

ओह, कितना वीभत्स था वह सब| इस पुस्तक में शुरू से आखिर तक काश्मीर के प्रति कई सारे तथ्यों को बतियाया गया है| काव्य से जुडी बातों को सम्पादकीय में आदरणीय विष्णु विराट जी ने विस्तार से लिखा है और इस काव्य प्रस्तुति के बारे में श्री उमेश चंद (विंग कमांडर) अध्यक्ष, वायुसेना एवं केंद्रीय विद्यालय फरीदाबाद का भेजा पत्र भी पढ़ने को मिला|

आज के दौर में जहाँ लोग अपने खुद के संसार से ही ऊपर आ नहीं पाते ऐसे में शेखर का अपने दादाजी के इस प्रबंध खंड काव्य को हम लोगों तक पहुंचाने का प्रयास निस्संदेह प्रशंसनीय और वन्दनीय है| अपने दादाजी की काव्य कृति को ब्लॉग के ज़रिये अमरत्व प्रदान करने के लिए उन्हें शत शत साधुवाद| 

जीवन के दो तिहाई भाग [अमूमन एक तिहाई भाग सार्वजनिक स्थलों पर व्यतीत होता है] को धोती बनियान में गुजारने वाले और समाज में मास्टर साब के नाम से विख्यात श्री सुधाकर जी को तत्कालीन वित्तमंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा 'सेवा श्री' सम्मान के अतिरिक्त साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा 'साहित्य वारिधि' सम्मान, ब्रज साहित्य संगम द्वारा 'ब्रज विभूति' सम्मान, ताहत माथुर चतुर्वेद केंद्रीय विद्यालय द्वारा 'कलांकर' सम्मान प्राप्त हुआ| दर्जनों भर पुस्तकों का प्रकाशन अपने जीवन काल में ही करा चुके 'सुधाकर' जी की दर्ज़न भर से अधिक पुस्तकें अब भी अप्रकाशित हैं| 

समय के इस सशक्त हस्ताक्षर से स्वयं साक्षात्कार करने के लिए उन के पोते द्वारा बनाए गये ब्लॉग पर अवश्य पधारें| उस ब्लॉग पर न केवल इन का परिचय, पुस्तकों का विवरण तथा सम्मान पत्रों की प्रतिलिपियाँ देखने को मिलेंगी वरन विवेचित पुस्तक 'काशमीर के प्रति' भी सॉफ्ट फ़ॉर्मेट में आप ऑनलाइन पढ़ सकते हैं|

ब्लॉग पर जाने के लिए  यहाँ क्लिक करें|

आओ बतियाएँ हरिगीतिका छंद पर


सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन 



उत्सवों का दौर जारी है और क्यूँ न हो - पर्वों का पावन प्रदेश जो है हमारा प्यारा हिन्दुस्तान| इस बात को ध्यान में रखते हुए ही आदरणीय 'सलिल' जी  के परामर्श अनुसार 'हरिगीतिका' छन्द को रिजर्व कर लिया गया था इन दिनों के लिए|

घनाक्षरी छन्द पर आधारित चौथी समस्या पूर्ति में आप लोगों ने सफलता के जो प्रतिमान स्थापित किये हैं, आप सभी को साष्टांग प्रणाम| पिछले आयोजन के विशेष आकर्षण रहे दो - एक तो 'विशेष पंक्ति वाले छन्द' और दूसरा 'समापन पोस्ट'| समापन पोस्ट में आप लोगों ने क़माल किया भाई क़माल| ख़ास कर भाई योगराज जी को विशेष रूप से साधुवाद देने की ज़रुरत है जिन्होंने मंच के निवेदन पर सराइकी सहित छह भाषाओं / बोलियों में प्रस्तुतियां दीं| हरियाणवी को सामान्य रूप से हास्य के लिए यूज किया जाता रहा है, पर आपने हरियाणवी में हरियाणे की प्रखर समस्या 'खाप के फैसले' को निरुपित कर एक अहम् काम को अंज़ाम दिया, जिसे आने वाले समय में लोग बार बार रेफर करते रहेंगे| भाई योगराज जी आप की इन प्रस्तुतियों के लिए सिम्पली बोले तो 'हेट्स ऑफ'|

तिलक राज कपूर जी का 'वक्ष कटि से कटा रे', महेंद्र जी का 'ठोडी पर गोरखा रूपी तिल', अजित गुप्ता जी का 'मैं तो चली काम पर', ब्रजेश  त्रिपाठी जी का 'ब्यूटी कम्पटीशन', अम्बरीश भाई की अलंकारिक जादूगरी, वीनस की 'सपा बसपा' और शेखर चतुर्वेदी का 'रात भर बदली की ओट से' ने भी काफी प्रभावित किया| श्रीमती अजित गुप्ता जी तो खैर पहले भी छन्द साहित्य से जुड़ी रही थीं, परंतु आदरणीया श्रीमती आशा सक्सेना जी के प्रयास की जितनी भी प्रशंसा की जाये कम ही होगी। मंच ने जिस जिस से भी प्रार्थना की, सभी ने उस प्रार्थना को सम्मान प्रदान करते हुए, अपना सर्वोत्तम प्रस्तुत किया| मंच को विशवास है कि अब यह सभी गुणीजन स्वत: स्फूर्त हो कर इस साहित्य सेवा में अपना अहम् योगदान अवश्य प्रदान करेंगे|  

[हाँ ये भी है कि बहुतों ने उस समापन पोस्ट को या तो पढ़ा ही नहीं, और पढ़ा भी तो टिपियाने की ज़रुरत ही नहीं समझी, और समझी भी तो बड़े ही केजुयल वे में - ये एक अपवाद भी जुड़ा है उस विशिष्ट पोस्ट के साथ, खैर अपने को तो छंद साहित्य की सेवा जारी रखनी ही है]

मई से जुलाई तक का समय कहाँ निकल गया पता ही नहीं चला| घनाक्षरी छन्द आधारित आयोजन में जिन लोगों ने चार चाँद लगाये - आगे बढ़ने से पहले, आइये मिल जुल कर उन सब का [प्रस्तुति क्रम के मुताबिक] अभिनन्दन करते हैं:-

१. श्री सुरेन्द्र सिंह झंझट 
२. श्री महेंद्र वर्मा
३. श्री योगराज प्रभाकर 
४. श्री राजेन्द्र 'स्वर्णकार'
५. श्रीमती आशा सक्सेना 
६. श्रीमती अजित गुप्ता 
७. श्री सुशील जोशी 
८. श्री आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
९. श्री धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन'
१०. श्री राणा प्रताप सिंह 
११. श्री ब्रजेश त्रिपाठी 
१२. श्री शेखर चतुर्वेदी 
१३. श्री अम्बरीश श्रीवास्तव 
१४. श्री वीनस केशरी 
१५. श्री तिलक राज कपूर 
१६. श्री रविकांत पाण्डेय 
१७. श्री रविकर 
१८. श्री शेष धर तिवारी
और 
१९. ये खाक़सार नवीन सी. चतुर्वेदी

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि मैं समस्या पूर्ति के सभी आयोजनों से दूर रहता हूँ [प्रस्तुति विषयक], परन्तु समापन पोस्ट में गुजराती और मराठी के कारण मैंने अपना ये उसूल तोड़ा| आइये अब पढ़ते हैं उन कवियों के नाम जिन्होंने चुनौती पूर्ण विशेष पंक्ति पर प्रस्तुतियां दीं:- 

१. श्री राजेन्द्र 'स्वर्णकार' 
२. श्री आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
३. श्री रविकांत पाण्डेय 

इस आयोजन में जिन भाषाओं / बोलियों पर छन्द प्रस्तुत हुए उन के नाम :-

१. प्रचलित हिंदी
२. भोजपुरी 
३. ब्रजभाषा 
४. अवधी [प्रताप गढ़]
५. राजस्थानी [बीकानेर]
६. छत्तीसगढ़ी [रायपुरिहा]
७. हिंदी+उर्दू [पंजाब आंचलिक]
८. पंजाब 
९. पंजाबी [पटियाला]
१०. हरियाणवी 
११. सराइकी 
१२. हिमाचली 
१३. अवधी [वाचाल]
१४. बुन्देली 
१५. छत्तीसगढ़ी [जबलपुर]
१६. निमाड़ी 
१७. मालवी 
१८. राजस्थानी [जयपुर]
१९. हिंदी + उर्दू [मध्य भारत आंचलिक]
२०. भोजपुरी [गोरखपुर]
२१. अवधी [नैमिष]
२२. गुजराती
२३. मराठी 

यदि किसी का उल्लेख होने से रह गया हो तो हमें बताने की कृपा करें, हम क्षमा प्रार्थना सहित अगली पोस्ट में इसे अवश्य कवर करेंगे| तो ये तो थी पिछले आयोजन सम्बंधित बातें| अब बतियाते हैं अगले आयोजन के बारे में|

जैसा कि आप सभी को मालुम है कि अगला आयोजन हरिगीतिका छन्द पर होने जा रहा है| हर बार की भाँति इस बार भी हम सब से पहले इस छन्द पर बतियाते हैं| मंच कुछ उदाहरण दे रहा है, आप सभी भी अपनी अपनी जानकारियाँ [सिर्फ हरिगीतिका सम्बंधित] यहाँ सभी के साथ साझा करने की कृपा करें| इस परिचर्चा के बाद समस्या पूर्ति की पंक्ति की घोषणा की जायेगी|


हरिगीतिका छन्द के बारे में 
  • हरिगीतिका छन्द एक मात्रिक सम छन्द होता है 
  • ये छन्द कुल चार चरणों वाला छन्द होता है
  • प्रत्येक दो पंक्तियों में तुकांत समान होना चाहिए, वैसे चारों पंक्तियाँ भी समान हो सकती हैं|
  • प्रत्येक चरण में १६+१२=२८ मात्रा 
  • १६ वीं मात्र पर यति [बोलते हुए रुकने का क्रम]
  • प्रत्येक चरण के अंत में लघु गुरु अनिवार्य 
  • इस छन्द में हर्फ़ /अक्षर / वर्ण गिराना स्वीकार्य नहीं 
  • इस छंद की लय कुछ इस तरह से होती है :- 
                   ला - ला - ल - ला         ला - ला - ल - ला -  ला
                   ला - ल - ला        ला - ला - ल - ला


                   श्री - रा - म - चं        द्र  कृ  - पा - लु - भज      -  मन
                   हर - ण - भव       भय - दा - रु - णं

[ऊपर की पंक्ति में 'चंद्र' का 'द्र' और 'कृपालु' का 'कृ' संयुक्त अक्षर की तरह एक मात्रिक गिने गए हैं]               

अब एक उदाहरण तुलसी कृत रामायण से :-

श्री राम चन्द्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणं।
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ।।
कंदर्प अगणित अमित छवि नव-नील नीरद सुन्दरं ।
पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि  जनकसुता वरं।।
[यह स्तुति यू ट्यूब पर भी उपलब्ध है]

मात्रा गणना :-

श्री राम चन्द्र कृपालु भज मन 
२ २१ २१ १२१ ११ ११ = १६ मात्रा और यति  

हरण भव भय दारुणं 
१११ ११ ११ २१२ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु 

नव कंज लोचन कंज मुख कर 
११ २१ २११ २१ ११ ११ = १६ मात्रा और यति 

कंज पद कंजारुणं
२१ ११ २२१२ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु 

कंदर्प अगणित अमित छवि नव 
२२१ ११११ १११ ११ ११ = १६ मात्रा और यति 

नील नीरद सुन्दरं
२१ २११ २१२ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु 

पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि 
११ २१ २११ १११ ११ ११ = १६ मात्रा और यति 

नौमि जनकसुता वरं
२१ ११११२ १२ = १२ मात्र, अंत में लघु गुरु 

हमारे कुछ साथियों को शंका थी कि ये तो संस्कृत या बहुत ही शुद्ध हिन्दी वाला छन्द है| ख़ास कर उन मित्रों के लिए दो उदाहरण राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी वाले:-

वो वस्त्र कितने सूक्ष्म थे, कर लो कई जिनकी तहें।
शहजादियों के अंग फिर भी झांकते जिनसे रहें ।।
थी वह कला या क्या कि कैसी सूक्ष्म थी अनमोल थी ।
सौ हाथ लम्बे सूत की बस आध रत्ती तोल थी ।।
[भारत भारती से]




अभिमन्यु-धन के निधन से, कारण हुआ जो मूल है।
इस से हमारे हत हृदय को, हो रहा जो शूल है ।।
उस खल जयद्रथ को जगत में, मृत्यु ही अब सार है ।
उन्मुक्त बस उस के लिए रौ'र'व नरक का द्वार है ।।

[जयद्रथ वध से]
[यहाँ 'जयद्रथ' को संधि विच्छेद का प्रयोग तथा उच्चारण कला का इस्तेमाल करते हुए यूँ बोला जाएगा 'जयद्द्रथ'। पुराणों के अनुसार नरकों के विभिन्न प्रकारों में 'रौरव [रौ र व] नरक' बहुत ही भयानक नरक होता है]
 
तो ये थे तीन उदाहरण| पहले की मात्रा गणना के अनुसार बाकी दो की मात्रा गणना सहज ही की जा सकती है| फिर भी किसी नवागंतुक को कठिनाई आ रही हो तो मंच को सूचित करने की कृपा करें| हर संभव सहायता यहाँ सभी के लिए सहज ही उपलब्ध है| नो गुरु चेला - ओनली साहित्य मेला| वैसे ठाले बैठे पर भी इस छंद के कुछ  उदाहरण देखे जा सकते हैं:- 



श्री गणेश वंदना हरिगीतिका छन्द में


कुछ परामर्श भी चाहिए आप लोगों से

१. क्या 'विशेष पंक्ति' वाली घोषणा को जारी रखा जाए ?
२. क्या समस्या पूर्ति के लिए एक से अधिक विकल्प दिए जाएँ [पंक्ति/शब्द] ?
३. क्या एक व्यक्ति के द्वारा भेजे जाने वाले छंदों की संख्या निश्चित की जाए ?
४. क्या अन्य भाषाओं / बोलियों वाला प्रयोग जारी रखा जाए ?
५. और यदि [४] पर हाँ है, तो क्या इसे सम्बंधित कवि की उसी पोस्ट के साथ ही जोड़ दिया जाए - या फिर पिछले आयोजन की तरह समापन पोस्ट में लिया जाए ?

अपने-अपने सुविचारों को रखते हुए आप सभी इस परिचर्चा को आगे बढायें, उस के बाद फिर हर बार की तरह समस्या पूर्ति की पंक्ति की घोषणा की जायेगी| अगली पोस्ट में कुछ औडियो लिंक्स भी दिये जाएँगे|




जय माँ शारदे!

आवाज़ की जगह तो स्विचों ने संभाल ली - नवीन

वो बात क्या कि जिस में हक़ीक़त बयाँ न हो |
वो शे'र क्या कि जिस पे समय का निशां न हो |१|

कर देगा सूर्य भस्म हमें इक सेकंड में |
फैला हमारे सर पर अगर आसमाँ न हो |२|

'विनिवेश' वक़्त की है ज़रूरत, कुबूल है |
पर यह गुलामियत का नया तर्जुमाँ न हो |३|

मंदी में और पुख्ता  हुई है हमारी सोच |
उपलब्धि है ये, इस पे हमें क्यूँ गुमाँ  न हो |४|

आवाज़ की जगह तो स्विचों ने संभाल ली |
कल आने वाली नस्ल कहीं बेज़ुबाँ न हो |५|

उम्मीद करता हूँ कि कठिन बहर और ट्रेडीशनल काफ़ियों का प्रयोग करते हुए ozon, disinvestment, recession और technology की अंधी होड पर कहे गए ये अशआर आप लोगों को ज़रूर पसंद आएंगे|

मफ़ऊलु फाएलातु मुफ़ाईलु फाएलुन
221 2121 1221 212
बहरे मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ़ महजूफ

श्री गणेश वंदना

SHRI GANESH

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वन्‍दहुँ विनायक, विधि-विधायक, ऋद्धि-सिद्धि प्रदायकम्।
गजकर्ण, लम्बोदर, गजानन, वक्रतुण्ड, सुनायकम्।।
श्री एकदन्त, विकट, उमासुत, भालचन्द्र भजामिहम।
विघ्नेश, सुख-लाभेश, गणपति, श्री गणेश नमामिहम ।।

नवीन सी. चतुर्वेदी

[इस हरिगीतिका छंद को स्वर दिया है भाई श्री राजेन्द्र स्वर्णकार जी ने]

Youtube Link:- https://www.youtube.com/watch?v=MVeJargL3eI