नमस्कार
फेसबुक को रात दिन
कोसने वाले अक्सर फेसबुक पर ही मिलते हैं। संस्कारों की दुहाई देने वाले ही अक्सर
संस्कारों की बंशी बजाते देखे गये हैं और इसी तरह छन्द के नाम पर अपने माथे पे
साफ़ा बाँधने वाले भी अक्सर ही छन्द की गन्ध से अनभिज्ञ मिलते हैं। पर छन्द की गन्ध
जिस की रगों में प्रवाहित हो वह सात समन्दर पार जा कर भी इसे भूलता नहीं है,
बल्कि सही शब्दों में कहें तो सात समन्दर पार बसे हुये हमारे भाई-बहन ही साहित्य
से अधिक निकटस्थ जान पड़ते हैं। भाई दिगम्बर नासवा जी ऐसे ही अप्रवासी भारतीय हैं।
मेरे कहे की तसदीक़ करने के लिये आप इन के ब्लॉग “स्वप्न मेरे”
पर जा कर देख सकते हैं। समस्या-पूर्ति आयोजनों के नियमित पाठक भाई
दिगम्बर नासवा जी ने इस बार हमारे निवेदन को स्वीकार करते हुये आयोजन में शिरकत भी
की है। आइये पढ़ते हैं सात समन्दर पार से आये सुगन्धित दोहे:-
आँगन में बिखरे रहे, चूड़ी
कंचे गीत
आँगन की सोगात ये, सब आँगन के मीत
आँगन आँगन तितलियाँ, उड़ती उड़ती जायँ
इक आँगन का हाल ले, दूजे से कह आयँ
बचपन फ़िर यौवन गया, जैसे कल की बात
आँगन में ही दिन हुआ, आँगन में ही रात
आँगन की सोगात ये, सब आँगन के मीत
आँगन आँगन तितलियाँ, उड़ती उड़ती जायँ
इक आँगन का हाल ले, दूजे से कह आयँ
बचपन फ़िर यौवन गया, जैसे कल की बात
आँगन में ही दिन हुआ, आँगन में ही रात
आँगन में रच बस रही, खट्टी मीठी याद
आँगन सब को पालता, ज्यों अपनी औलाद
तुलसी गमला मध्य में, गोबर लीपा द्वार
शिव के सुंदर रूप में, आँगन एक विचार
आँगन से ही प्रेम है आँगन से आधार
आँगन में सिमटा हुवा, छोटा सा संसार
कूँवा जोहड़ सब यहाँ, फ़िर भी बाकी प्यास
बाट पथिक की जोहता, आँगन खड़ा उदास
दुःख सुख छाया धूप में, बिखर गया परिवार
सूना आँगन ताकता, बंजर सा घर-बार
रेलगाड़ी – बैलगाड़ी
के दोहों से बचते हुये नासवा जी ने आँगन के दोहे भेजे हैं। टीस, आनन्द, अनुभव सब कुछ तो पिरो दिया गया है इन दोहों
में। व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कहना चाहूँगा कि दिगम्बर भाई अतुकान्त कविता, ग़ज़ल और दोहे सभी में असरदार हैं। मैं इन का fan
हूँ। ये अक्सर ही उन पहलुओं को हमारे सामने ला कर रख देते हैं कि बरबस ही मुँह से
निकल पड़ता है “अरे..... यही तो मैं कहना चाहता था”...........
कहना चाहता था........ कह नहीं पाया .............. और यही एक कोम्प्लिमेण्ट
है आप के लिये नासवा जी। ख़ुश रहो, सलामत रहो और ख़ूब तरक़्क़ी
करो भाई।
हमारे पास अब दो
पोस्ट बाकी हैं, इस के बाद शरद तैलंग जी और उस के बाद धरम प्रा जी। धरम जी की पोस्ट के
साथ आयोजन का समापन। धरम जी ने एक बड़ा ही स्पेशल दोहा लिखा है जिस के लिये उन की
पोस्ट का इंतज़ार करना होगा। तो साथियो आनन्द लीजिये दिगम्बर नासवा जी के दोहों का, अपने सुविचार प्रस्तुत कीजिये और मैं बहुत जल्द हाज़िर होता हूँ अगली
पोस्ट के साथ...