SP2/2/12 शिव के सुंदर रूप में, आँगन एक विचार - दिगम्बर नासवा


नमस्कार

फेसबुक को रात दिन कोसने वाले अक्सर फेसबुक पर ही मिलते हैं। संस्कारों की दुहाई देने वाले ही अक्सर संस्कारों की बंशी बजाते देखे गये हैं और इसी तरह छन्द के नाम पर अपने माथे पे साफ़ा बाँधने वाले भी अक्सर ही छन्द की गन्ध से अनभिज्ञ मिलते हैं। पर छन्द की गन्ध जिस की रगों में प्रवाहित हो वह सात समन्दर पार जा कर भी इसे भूलता नहीं है, बल्कि सही शब्दों में कहें तो सात समन्दर पार बसे हुये हमारे भाई-बहन ही साहित्य से अधिक निकटस्थ जान पड़ते हैं। भाई दिगम्बर नासवा जी ऐसे ही अप्रवासी भारतीय हैं। मेरे कहे की तसदीक़ करने के लिये आप इन के ब्लॉग स्वप्न मेरेपर जा कर देख सकते हैं। समस्या-पूर्ति आयोजनों के नियमित पाठक भाई दिगम्बर नासवा जी ने इस बार हमारे निवेदन को स्वीकार करते हुये आयोजन में शिरकत भी की है। आइये पढ़ते हैं सात समन्दर पार से आये सुगन्धित दोहे:-

आँगन में बिखरे रहे, चूड़ी कंचे गीत
आँगन की सोगात ये, सब आँगन के मीत

आँगन आँगन तितलियाँ, उड़ती उड़ती जायँ
इक आँगन का हाल ले, दूजे से कह आयँ

बचपन फ़िर यौवन गया, जैसे कल की बात
आँगन में ही दिन हुआ, आँगन में ही रात

आँगन में रच बस रही, खट्टी मीठी याद
आँगन सब को पालता, ज्यों अपनी औलाद

तुलसी गमला मध्य में, गोबर लीपा द्वार
शिव के सुंदर रूप में, आँगन एक विचार

आँगन से ही प्रेम है आँगन से आधार
आँगन में सिमटा हुवा, छोटा सा संसार

कूँवा जोहड़ सब यहाँ, फ़िर भी बाकी प्यास
बाट पथिक की जोहता, आँगन खड़ा उदास

दुःख सुख छाया धूप में, बिखर गया परिवार
सूना आँगन ताकता, बंजर सा घर-बार
 
रेलगाड़ी बैलगाड़ी के दोहों से बचते हुये नासवा जी ने आँगन के दोहे भेजे हैं। टीस, आनन्द, अनुभव सब कुछ तो पिरो दिया गया है इन दोहों में। व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कहना चाहूँगा कि दिगम्बर भाई अतुकान्त कविता, ग़ज़ल और दोहे सभी में असरदार हैं। मैं इन का fan हूँ। ये अक्सर ही उन पहलुओं को हमारे सामने ला कर रख देते हैं कि बरबस ही मुँह से निकल पड़ता है अरे..... यही तो मैं कहना चाहता था”........... कहना चाहता था........ कह नहीं पाया .............. और यही एक कोम्प्लिमेण्ट है आप के लिये नासवा जी। ख़ुश रहो, सलामत रहो और ख़ूब तरक़्क़ी करो भाई।

हमारे पास अब दो पोस्ट बाकी हैं, इस के बाद शरद तैलंग जी और उस के बाद धरम प्रा जी। धरम जी की पोस्ट के साथ आयोजन का समापन। धरम जी ने एक बड़ा ही स्पेशल दोहा लिखा है जिस के लिये उन की पोस्ट का इंतज़ार करना होगा। तो साथियो आनन्द लीजिये दिगम्बर नासवा जी के दोहों का, अपने सुविचार प्रस्तुत कीजिये और मैं बहुत जल्द हाज़िर होता हूँ अगली पोस्ट के साथ...

SP2/2/11 मधुमय जीवन का यही; सत्य, सार-संक्षेप - शेषधर तिवारी


नमस्कार

बी एस एन एल वालों की नींद अब तो खुल जानी चाहिये, नहीं तो फिर दोष न दें अगर भाई धर्मेन्द्र कुमार सज्जन किसी गुनाहगार को अगर दौड़ा-दौड़ा कर मारें तो............ हाँ भाई पिछली पोस्ट की टिप्पणी में चेतावनी दी है उन्होंने। हिंदुस्तान में इण्टरनेट आज भी बड़ी समस्या है, ख़ास कर नॉन-मेट्रो सिटीस में। आज जब की विकास सीधा-सीधा इण्टरनेट से जुड़ा है तो हमारे नीति-नियन्ताओं को अपनी कुम्भकर्णी नींद से जागना चाहिये।

पहले समस्या-पूर्ति आयोजन से ही हमारे साथ जो साथी जुड़े हुये हैं उन में भाई शेषधर तिवारी जी भी शामिल हैं। इलाहाबाद में रहते हैं, thatsme.in चलाते हैं और आजकल फेसबुक से उकताये जैसे लग रहे हैं। शेष धर जी उन रचनाधर्मियों में से हैं जिन्हों ने उस उम्र में साहित्यिक साधना आरम्भ की जब आदमी नाती-पोतों को स्कूल बस तक छोड़ने की ड्यूटी निभाने वाला हो जाता है। जिस तरह सौरभ जी से मञ्च ने चिन्तन-परक दोहों के लिये निवेदन किया था, तिवारी जी से कुछ पारिवारिक दृश्य उपस्थित करते दोहों की अपेक्षा की और तिवारी जी ने हमारी प्रार्थना का सम्मान  रख लिया। आज की पोस्ट में पढ़ते हैं भाई शेष धर जी के दोहे :-

उनकी आँखों में पढ़ा, स्नेह-सिक्त सन्देश
आश्वासन पाकर मिटे, मन के  सारे क्लेश

मधुमय जीवन का यही; सत्य, सार-संक्षेप
आती है मधुमास में, नव-सुगन्ध की खेप

बेटे को देखे बिना, लेती माँ पहचान
माँ की आँखों को मिला, दिव्य-दृष्टि का दान

विधि ने पुस्तक में लिखे जीवन के आयाम
कवियों के परिशिष्ट में है अपना भी नाम

सम्मत साक्षी के बिना मिलता किसको न्याय
दूषित मन की साधना, निष्फल होती जाय
 
मछली चारा जानि के, काँटा निगलत जात
मछुआरे को दिख रहे; पैसा, मच्छी-भात

सात जनम के साथ पर, करता हूँ विश्वास
अपना है यह सातवाँ, आगे तुलसीदास

नाम बड़ों का हो गया, करके छोटा काम
हनुमत को देते नहीं क्यूँ गिरिधर सा नाम

कर देता यदि वह फलित, हर माँ का आसीस
फिर पत्थर के सामने, कौन झुकाता सीस

हम सब ने मिल कर किया, कुदरत से खिलवाड़
फल उसका है सामने, सर पर गिरा पहाड़

मरुथल में फैले पड़े, रेता के अम्बार
मेरे जैसों का बसा, क्या अद्भुत संसार
 
बिटिया आयी मायके, बोले शुभ शुभ बोल
माँ की आँखें पारखी, मन को लीन्हा तोल

धर अधरन पर आँगुरी, बूझी मन की प्यास
गीली अँखियन में दिखीं, कुपित ननदिया-सास

बिटिया को हिय से लगा अँखियाँ लीन्हीं मूँद
मन की पीड़ा बह चली, बन आँसू की बूँद

अन्तिम तीन दोहों ने कलेज़ा चीर के रख दिया। बहुत अच्छी तरह से माँ-बिटिया के बीच के कन्सर्न्स को चित्रित किया है आप ने। विविध रंगों से सजे इन दोहों पर दिल खोल कर दाद दीजिएगा। अब हमारे पास तीन [दिगम्बर नासवा भाई और शरद तैलंग जी व् धर्मेन्द्र कुमार सज्जन भाई की] पोस्ट्स बाकी हैं। साथियों से निवेदन है कि अपने दोहे एक-दो दिन में भेजने की कृपा करें, आयोजन अब समापन की ओर अग्रसर है। एक बात आप लोगों ने भी नोट की होगी शायद और वह यह कि इस बार की विशेष दोहे की घोषणा कुछ अधिक जटिल रही।



इस आयोजन की घोषणा सम्बन्धित पोस्ट पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें
आप के दोहे navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें   

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सूचना:-

दोहा सागर
सामयिक दोहकारों से ३० - ३० प्रतिनिधि दोहे, परिचय (नाम, जन्म दिनांक / स्थान, माता-पिता-जीवन साथी का नाम, शिक्षा प्रकाशित पुस्तकें सर्जन विधाएं, पता, दूरभाष / चलभाष ई मेल आदि) तथा चित्र आमंत्रित हैं। इन्हें divyanarmada.blogspot.in में प्रकाशित किया जाएगा। जो साथी चाहेंगे उनके दोहे सहयोगाधार से प्रकाशित हो रहे दोहा सागर में संकलित-प्रकाशित किये जायेंगे। दोहे निम्न पते पर भेजें - salil.sanjiv@gmail.com

इस विषय पर सभी बात-व्यवहार डाइरेक्ट सलिल जी से ही किए जाएँ ..... 

SP2/2/10 तू मुझमें बहती रही, लिये धरा-नभ-रंग - सौरभ पाण्डेय


नमस्कार

पिछले एक हफ़्ते में दो बार यह ब्लॉग अन्तरिक्ष के हवाले हो गया यानि अन्तरर्ध्यान हो गया यानि ‘Blog not found’ जैसा मेसेज आया। मेरे साथ यह पहली बार हुआ है इस लिए समझ नहीं पा रहा हूँ कि यह एक सामान्य तकनीकी समस्या है या कोई असामान्य करतूत। ब्लॉग पर तीन सालों में जो सामग्रियाँ इकट्ठा की हैं उन्हें ले कर चिन्तित होना स्वाभाविक भी है। आप में से जिन के लिये सम्भव हो, इस विषय पर मेरा मार्गदर्शन करने की कृपा करें।

साथियो, सौरभ पाण्डेय जी से हम में से अधिकतर लोग परिचित हैं। तत्व आधारित चिन्तन इन की विशेषता है। मञ्च के निवेदन पर इन्होंने चिन्तन-परक दोहे भेजे हैं। बेशक़ साहित्य का सहज व सरस पक्ष ही  अधिक चर्चा में रहता है, परन्तु किसी को तो गूढ बातें बतियाने के लिये आगे आना होता है। सौरभ जी ने हमारे निवेदन पर यह ज़वाबदारी ख़ुद उठाई है। आइये पढ़ते हैं सौरभ पाण्डेय जी के दोहे

तू  मुझमें  बहती  रही, लिये धरा-नभ-रंग
मैं    उन्मादी   मूढ़वत,   रहा  ढूँढता  संग

सहज हुआ अद्वैत पललहर  पाट  आबद्ध
एकाकीपन साँझ का, नभ-तन-घन पर मुग्ध

होंठ पुलक जब छू रहे,   रतनारे   दृग-कोर
उसको उससे ले गयीहाथ पकड़ कर भोर

अंग-अंग  मोती  सजलमेरे तन पुखराज
आभूषण बन छेड़ देंमिल रुनगुन के साज

संयम त्यागा स्वार्थवशअब  दीखे  लाचार
उग्र  हुई  चेतावनीबूझ  नियति  व्यवहार

जैसा कि मैं ने कहा कि किसी को तो कठिन कार्य को हाथ में लेना होता है सो यह दायित्व भाई सौरभ जी ने वहन किया जिस के लिये उन का बहुत-बहुत आभार। पहले दोहे में कस्तुरी कुण्डल बसे से जो चिन्तन शुरू हुआ है वह अन्तिम दोहे के सामयिक चिन्तन तक पुरअसर है। सौरभ जी को बहुत-बहुत बधाई। तो साथियो प्रयास कीजिये इन दोहों की सघनता तक पहुँचने का, अपने सुविचार व्यक्त कीजिएगा और मैं बढ़ता हूँ अगली पोस्ट की तरफ़। 


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**** शेखर चतुर्वेदी जी अपरिहार्य कारणों से पोस्ट अटेण्ड नहीं कर पा रहे हैं, स्वाथ्य लाभ होते ही पोस्ट्स पर हाज़िर होंगे।

SP2/2/9 चंदा चंचल चाँदनी, तारे गाएँ गीत - ऋता शेखर मधु

नमस्कार

हाइकु के बारे में तो जानते थे पर हाइगा के बारे में जिन्हों ने बताया उन का नाम है ऋता शेखर मधु। आज ऋता दीदी का हेप्पी-हेप्पी वाला डे है, जी हाँ आज [3 जुलाई] यह बच्ची एक साल और बड़ी हो गयी :) आइये पढ़ते हैं ऋता दीदी के दोहे :-

सदगुणियों के संग से, मनुआ बने मयंक
ज्यों नीरज का संग पा, शोभित होते पंक

चंदा चंचल चाँदनी, तारे गाएँ गीत
पावस की हर बूँद पर, नर्तन करती प्रीत

शुभ्र नील आकाश में, नीरद के दो रंग
श्वेत करें अठखेलियाँ, श्याम भिगावे अंग

हिल जाना भू-खंड का, नहीं महज संजोग
पर्वत भी कितना सहे, कटन-छँटन का रोग

नीलम पन्ना लाजव्रत, लाते बारम्बार
बिना यत्न सजता नहीं, सपनों का संसार

महँगाई के राज में, बढ़े इस तरह दाम
लँगड़ा हो या मालदा, रहे नहीं अब आम

ऋता दीदी आप को जन्म दिन की बहुत-बहुत शुभ-कामनाएँ। ऋता दी के साथ जो लोग साहित्यिक प्रयासों में संलग्न हैं, तसदीक़ करेंगे कि ऋता जी काम को जुनून के साथ पूरा करती हैं और इन्हें चुनौतीपूर्ण कार्य करना अच्छा लगता है। देखते ही देखते आप ने छन्दों पर जिस तरह प्रगति की है, आश्चर्यचकित करती है। ऋता जी को जन्म दिन की शुभ-कामनाएँ देने के साथ ही साथ उन के दोहों पर भी ज़रूर बतियाएँ। जल्द हाज़िर होता हूँ अगली पोस्ट के साथ। चलते-चलते ऋता जी द्वारा कल्पना रामानी जी और अरुण निगम जी के दोहों पर बनाया गया छन्द-चित्र:- 



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