7 जुलाई 2013

SP2/2/12 शिव के सुंदर रूप में, आँगन एक विचार - दिगम्बर नासवा


नमस्कार

फेसबुक को रात दिन कोसने वाले अक्सर फेसबुक पर ही मिलते हैं। संस्कारों की दुहाई देने वाले ही अक्सर संस्कारों की बंशी बजाते देखे गये हैं और इसी तरह छन्द के नाम पर अपने माथे पे साफ़ा बाँधने वाले भी अक्सर ही छन्द की गन्ध से अनभिज्ञ मिलते हैं। पर छन्द की गन्ध जिस की रगों में प्रवाहित हो वह सात समन्दर पार जा कर भी इसे भूलता नहीं है, बल्कि सही शब्दों में कहें तो सात समन्दर पार बसे हुये हमारे भाई-बहन ही साहित्य से अधिक निकटस्थ जान पड़ते हैं। भाई दिगम्बर नासवा जी ऐसे ही अप्रवासी भारतीय हैं। मेरे कहे की तसदीक़ करने के लिये आप इन के ब्लॉग स्वप्न मेरेपर जा कर देख सकते हैं। समस्या-पूर्ति आयोजनों के नियमित पाठक भाई दिगम्बर नासवा जी ने इस बार हमारे निवेदन को स्वीकार करते हुये आयोजन में शिरकत भी की है। आइये पढ़ते हैं सात समन्दर पार से आये सुगन्धित दोहे:-

आँगन में बिखरे रहे, चूड़ी कंचे गीत
आँगन की सोगात ये, सब आँगन के मीत

आँगन आँगन तितलियाँ, उड़ती उड़ती जायँ
इक आँगन का हाल ले, दूजे से कह आयँ

बचपन फ़िर यौवन गया, जैसे कल की बात
आँगन में ही दिन हुआ, आँगन में ही रात

आँगन में रच बस रही, खट्टी मीठी याद
आँगन सब को पालता, ज्यों अपनी औलाद

तुलसी गमला मध्य में, गोबर लीपा द्वार
शिव के सुंदर रूप में, आँगन एक विचार

आँगन से ही प्रेम है आँगन से आधार
आँगन में सिमटा हुवा, छोटा सा संसार

कूँवा जोहड़ सब यहाँ, फ़िर भी बाकी प्यास
बाट पथिक की जोहता, आँगन खड़ा उदास

दुःख सुख छाया धूप में, बिखर गया परिवार
सूना आँगन ताकता, बंजर सा घर-बार
 
रेलगाड़ी बैलगाड़ी के दोहों से बचते हुये नासवा जी ने आँगन के दोहे भेजे हैं। टीस, आनन्द, अनुभव सब कुछ तो पिरो दिया गया है इन दोहों में। व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कहना चाहूँगा कि दिगम्बर भाई अतुकान्त कविता, ग़ज़ल और दोहे सभी में असरदार हैं। मैं इन का fan हूँ। ये अक्सर ही उन पहलुओं को हमारे सामने ला कर रख देते हैं कि बरबस ही मुँह से निकल पड़ता है अरे..... यही तो मैं कहना चाहता था”........... कहना चाहता था........ कह नहीं पाया .............. और यही एक कोम्प्लिमेण्ट है आप के लिये नासवा जी। ख़ुश रहो, सलामत रहो और ख़ूब तरक़्क़ी करो भाई।

हमारे पास अब दो पोस्ट बाकी हैं, इस के बाद शरद तैलंग जी और उस के बाद धरम प्रा जी। धरम जी की पोस्ट के साथ आयोजन का समापन। धरम जी ने एक बड़ा ही स्पेशल दोहा लिखा है जिस के लिये उन की पोस्ट का इंतज़ार करना होगा। तो साथियो आनन्द लीजिये दिगम्बर नासवा जी के दोहों का, अपने सुविचार प्रस्तुत कीजिये और मैं बहुत जल्द हाज़िर होता हूँ अगली पोस्ट के साथ...

29 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर दिल को छूते दोहे...

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  2. आँगन पर इतनी तरह से भी दोहे लिखे जा सकते हैं क्या? बहुत अच्छे दोहे हैं। बारंबार बधाई दिगम्बर जी को इन शानदार दोहों के लिए।

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  3. SHREE DIGAMBAR NASWA JI KEE LEKHNI KA MAIN MUREED HUN . UNKE DOHE BAHUT PASAND AAYE HAIN . VE YUN HEE LOKHTE RAHEN AUR ANANDIT KARTE
    RAHEN .

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  4. भाई दिगम्बरजी ने जिस आत्मीयता से दोहा छंद के विधान का निर्वहन किया है, वह आपकी सतत संलग्नता और रचनाधर्मिता का सुन्दर उदाहरण है.

    आँगन को केन्द्र में रखकर भाई दिगम्बरजी ने बहुत आत्मीय दोहे कहे हैं. बहुत-बहुत बधाई, भाईजी.

    भाई दिगम्बर नासवा जी, आपसे सादर सम्मति लेते हुए मैं संदर्भ ले रहा हूँ आँगन आँगन तितलियाँ, उड़ती-उड़ती जाएँ...

    मेरी तनिक जानकारी के अनुसार, भाईजी, जाए के या जाएँ के एँ की दो मात्राएँ होती हैं.
    दोहा छंद का पदांत गुरु या दो मात्रिक अक्षर से नहीं होता.

    वैसे भी प्रयुक्त शब्द की उचित अक्षरी जायँ है.

    विश्वास है, मेरे कहे का आशय स्पष्ट हुआ होगा.
    सादर
    सौरभ

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  5. बहुत सुन्दर

    दिगम्बर दा जबाब नहीं....चक दे फट्टे!! :)





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  6. दिगम्बर जी ...जिन्दाबाद...सच में!!

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  7. आँगन पर लिख दिये हैं , सुंदर सरल विचार
    आँगन में ही जीत है , आँगन में ही हार ।


    नासवा जी के खूबसूरत दोहे पढ़वाने का आभार ।

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  8. आदरणीय आपने अति सुन्दर दोहावली रची है अतएव हार्दिक बधाई.

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  9. आप सबका आभार मेरे नोसिखिये दोहों को पसंद करने का ...
    नवीन जी का विशेष आभार जिन्होंने मुझे दोहे लिखने के लिए न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि दोहों की बारीकियों से भी अवगत कराया ...
    सौरभ जी का भी बहुत आभार जिन्होंने सकारात्मक दृष्टि से इन दोहों को देखा और गलतियों से अवगत कराया ... आपका बहुत बहुत आभार ...

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  10. दिगंबर जी, बहुत ही मनभावन दोहे। आपके बारे में जानकर अपार हर्ष हुआ कि आप विदेश में रहते हुए भी हिन्दी साहित्य से इतना लगाव रखते हैं। हार्दिक बधाई आपको...
    आपके ये दोहे विशेष पसंद आए-

    तुलसी गमला मध्य में, गोबर लीपा द्वार
    शिव के सुंदर रूप में, आँगन एक विचार

    कूँवा जोहड़ सब यहाँ, फ़िर भी बाकी प्यास
    बाट पथिक की जोहता, आँगन खड़ा उदास

    बहुत ही मार्मिक...
    और अंत में इसी संदर्भ में लिखा हुआ मेरा एक पुराना दोहा--

    जो बसते परदेस में, मन में बसता देश।
    जोड़ा अंतर्जाल ने, अंतर रहा न शेष।

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  11. सच कहा आपने कल्पना जी ... विदेश में देश यादें ताज़ा रहती हैं ... आपका आभार ...

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  12. वाह...ग़ज़ल के बाद अब दोहे...दिगम्बर सर के बहुत अच्छे अच्छे दोहे पढ़ने को मिलेंगे...सादर बधाई|
    इन दोहों को पढ़कर मैंने भी एक कोशिश की...

    आँगन के ही मध्य में, बैठ पढ़ी यह छंद
    तुलसी के गुणगान से, कण-कण भरा अणंद

    मंच संचालक महोदय का आभार इन प्रस्तुतियों के लिए !!

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  14. वाह...ग़ज़ल के बाद अब दोहे...अब तो बहुत अच्छे अच्छे दोहे पढ़ने को मिलेंगे दिगम्बर सर के...सादर बधाई|
    आँगन के ही मध्य में, बैठ पढ़ी यह छंद
    तुलसी के गुणगान से, कण-कण भरा अणंद...सादर

    मंच संचालक महोदय का सादर आभार इन प्रस्तुतियों के लिए !!

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  15. ऋता शेखर जी आपका आभार इन्हें पसंद करने का ...दोहे लिखने का प्रयास जारी रखूँगा ...

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  16. आदरणीय श्याम जी ... पहली पंक्ति के साथ इस दोहे में मैंने आँगन के स्वरुप को एक विचार की तरह केनवस पे उतारने का प्रयास किया था ... शायद स्पष्ट नहीं कर सका अपनी बात को इस दोहे में ... आगे से इसका ध्यान रखूँगा ...

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  17. वाह ! दिगम्बर जी ! दिल खुश हो गया इन दोहों को पढ़ कर.
    सच में आज के युग में हम आँगन का महत्व भूलते जा रहे हैं . आज कल आगन कहाँ देखने को मिलते हैं . वाही आँगन जिसमें मंडप भी सजता है और अर्थी भी. मन भावुक हो गया . आपको बंधाई !!

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  18. दिगंबर जी की रचनाओं का घनघोर प्रेमी हूँ , माँ सरस्वती के लाडले इस पुत्र की लेखनी जिस विधा पर चलती है उसी में चार चाँद लगा देती है. इन्हें पढना एक सुखद से अनुभव से गुजरने जैसा है . आँगन पर इतने अद्भुत दोहे मैंने शायद ही कभी कहीं पढ़ें हों. एक एक दोहा बार बार पढने लायक है और बार बार पढने के बावजूद भी मन नहीं भरता. कमाल किया है दिगंबर जी कमाल .

    नीरज

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  19. निन्दक नियरे राखिए,आँगन कुटी छवाय

    आँगन पर यह दोहा याद आ गया...इसलिएः)

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  20. तुलसी गमला मध्य में, गोबर लीपा द्वार
    शिव के सुंदर रूप में, आँगन एक विचार

    @ रहा किनारे तैरता, पहुँचा ना मँझधार
    वह क्या समझे नासवा, आँगन एक विचार

    आँगन में बिखरे रहे, चूड़ी कंचे गीत
    आँगन की सोगात ये, सब आँगन के मीत

    @ छुवा-छुवौवल तो कभी,बन जाते थे रेल
    याद अचानक आ गये, आँगन के सब खेल

    आँगन आँगन तितलियाँ, उड़ती उड़ती जायँ
    इक आँगन का हाल ले, दूजे से कह आयँ

    @ परी बनी सब तितलियाँ, गई पिया के गाँव
    भुला न पाई पर कभी, आँगन की दो बाँह

    बचपन फ़िर यौवन गया, जैसे कल की बात
    आँगन में ही दिन हुआ, आँगन में ही रात

    @ गरमी की रातें अहा, बिछती आँगन खाट
    सुखमय गहरी नींद वह, आज ढूँढता हाट

    आँगन में रच बस रही, खट्टी मीठी याद
    आँगन सब को पालता, ज्यों अपनी औलाद

    @ जिस आँगन की धूल में,बचपन हुआ जवान
    वहीं तीर्थ मेरे सभी, वहीं मेरे भगवान


    आँगन से ही प्रेम है आँगन से आधार
    आँगन में सिमटा हुवा, छोटा सा संसार

    @ आँगन जो तज कर गया, सात समुंदर पार
    उसके दिल से पूछिये, है कितना लाचार

    कूँवा जोहड़ सब यहाँ, फ़िर भी बाकी प्यास
    बाट पथिक की जोहता, आँगन खड़ा उदास

    @आँगन पथरीला किया, हृदय बना पाषाण
    हाय मशीनी देह में,प्रेम हुआ निष्प्राण

    दुःख सुख छाया धूप में, बिखर गया परिवार
    सूना आँगन ताकता, बंजर सा घर-बार

    @”मेरा-तेरा” भाव से, प्रेम बना व्यापार
    आँगन रोया देख कर, बीच खड़ी दीवार

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  21. आँगन आमंत्रण भरा ,खुला हुआ आकाश ,
    बीत गया वह युग,कहाँ अब स्वजनों का साथ .

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  22. अभी तक तो अरुण जी के मुरीद थे अब उनके शागिर्द भी हो गए हम ... मुझसे तो एक दोहा बनाने में इतनी मुश्किल हो रही थी ... अरुण जी ने तो खजाना ही खोल दिया ... इसे कहते हैं माँ सरस्वती का आशीर्वाद ... गज़ब सर ...

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  23. नीरज जी अपने ही हैं और इसलिए इतनी तारीफ़ कर रहे हैं ... जबकि उनकी गज़लों से ही गज़ल कहना सीखा है मैंने भी ...
    प्रतिभा जी का भी बहुत बहुत आभार ... उनका स्नेह भरा आशीष हमेशा मिलता रहता है ...

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  24. वाह क्या बात है...


    एक तो बेमिसाल आंगन की खुशबू में रचे बसे दोहे...

    दिगम्बर को साधुवाद.

    दुसरे सभी टीपकर्ता का भी अभिनन्दन... जिहोने कई छूटे पहलुओं पर ध्यान दिया.

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  25. प्रियवर दिगम्बर नासवा जी
    शानदार दोहे लिखे हैं...
    आभार !
    बधाई !

    शुभकामनाओं सहित
    सादर...
    राजेन्द्र स्वर्णकार


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