सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
समस्या पूर्ति मंच द्वारा घनाक्षरी छन्द पर आयोजित इस चौथी समस्या पूर्ति के चौथे चक्र में आप सभी का स्वागत है| सुरेन्द्र भाई, महेंद्र भाई और योगराज भाई के बाद अब हम पढ़ते हैं बीकानेर वाले राजेन्द्र स्वर्णकार जी को| सुरेन्द्र, महेंद्र और राजेन्द्र में 'द्र' की बारंबारता से अनुप्रास [वृत्यानुप्रास] अलंकार हुआ| अनुप्रास अलंकार के पांचों प्रकार, फिल्मी गानों के माध्यम से समझने के लिए यहाँ क्लिक करें|
तो आइये घूमने चलते हैं भाई राजेन्द्र जी के कल्पना लोक में..............

घर-परिवार है साक्षात् स्वर्ग ; स्वर्ग यह
त्याग श्रद्धा स्नेह सहयोग से सजाइए !
ईर्ष्या [ईरष्या] जलन द्वेष डाह चालबाजियों से
निंदा शक़ बैर से , माहौल न बिगाड़िए !
चैनलों के किस्सों की चपेट में उलझ कर
गृहस्थी बसी-बसाई हाथों न उजाड़िए !
देवियों ! माताओं ! बहनों ! भाभियों ! विनति है –
राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइए !
[टी वी की महारबानी से घरों में राजनीति किस कदर हावी हो चुकी है, इसे बखूबी बखाना है अपने| यही होता है कवि का धर्म, कि हमारी जड़ों को हिलाने वाले तत्वों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करे]
कलियां कोमल अंग-अंग में सजी हैं तेरे
संदली बदन तेरा दूध में नहाया है !
रूप मनहरण लुभावना है सुंदरिये !
देख’ तेरी सुंदरता चांद भी लजाया है !
गढ़ के विधाता-सा चितेरा भी हुआ है धन्य
तुम्हें चाव लगन से जिसने बनाया है ।
धरती क्या , स्वर्ग में पाताल में भी नहीं दूजी
तुमने सौंदर्य ऐसा अद्वितीय पाया है !
[हाँ भाई हाँ| हम तो कुण्डलिया वाले आयोजन में पहले ही मान चुके हैं|
आप सोलह आने सही कह रहे हैं| मित्रो अंदर की बात आप को बता दूँ -
इस पंक्ति के प्रणेता स्वयं राजेन्द्र भाई ही हैं]
वरमाल लिये’ खड़ी , सोचे वधू घड़ी-घड़ी ,
हाय दैया… लीला तेरी कैसी करतार है ?
ताड़-सा , खजूर जैसा , आठवें अज़ूबे जैसा ,
बिजली का खंभा कोई जैसे बिना तार है !
मानुष है ? जिन्न है ? तैमूर का लकड़दादा ,
बन्ने का बदन जैसे कुतुबमीनार है !
दुल्हनिया गश खाए , सखियां मंगल गाए ,
आया ठूंठ ; ऊंट-सा बछेरी पे सवार है !
[ताड़ सा खजूर जैसा, आठवे अजूबे जैसा............... ठूंठ ; ऊंट-सा................ ये कल्पना
तो पहले की तीनों कल्पनाओं से एक दम डिफ़्रेंट आई है भाई| तैमूर का लकड़दादा,
भाई आप तो हमें बचपन वाली कोमिक्स की दुनिया में ले गए|
हास्य के अद्भुत रंग बिखेरे हैं आपने|]
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और अब बारी है विशेष पंक्ति वाली समस्या पूर्ति की| इस मंच की पहली विशेष पंक्ति पर पहली प्रस्तुति आई है राजेन्द्र भाई के द्वारा| आपने इस पंक्ति पर छन्द लिखने की ठानी और कर भी दिखाया| इस पंक्ति को ले कर अपेक्षा के ऑल्मोस्ट करीब हैं आप| छन्द शिल्प एक ऐसा विषय है जिस पर अलग अलग व्यक्ति अलग अलग मत रखते हैं| इन सब बातों के बावजूद कहना होगा कि आज के दौर में जब कवियों को छंदों में विशेष लगाव रह नहीं गया है, ऐसे में मित्र राजेन्द्र जी द्वारा इस दिशा में उठाए गए कदम की भूरि-भूरि प्रशंसा की जानी चाहिए|
साधारण भाषा में कहें तो श्लेष अलंकार यानि रहस्य बनाए रखते हुए डबल मीनिंग वाली बात| बात का अर्थ वक्ता और श्रोता अपने अपने हिसाब से निकालने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिये जाएँ|
अश्लील पक्ष को नज़र अंदाज़ कर दें, तो कादर खान और आनंद बक्षी जी ने फिल्मों में इस का भरपूर उपयोग किया है| श्लेष अलंकार के बारे में और अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें|
तो आइये अब पढ़ते हैं उस विशेष पंक्ति वाली पहली प्रस्तुति:-
घर में न हो तो सूना-सूना लगे घर ; कोई
चीज़ न ठिकाने मिले और चूल्हा जले ना !
मिले न कलाई में मरीज़ की तो बैद कहे –
जान का है ख़तरा जो टाले से भी टले ना !
साथ न निभाए तो शरीर मुरझाए , और
दुनिया में घर भी किसी का फूले-फले ना !
जीवन-आधार ‘नारी-नाड़ी’ ; स्वर्णकार कहे –
काम जीव का कोई भी ‘नार’ बिन चले ना
[राजेन्द्र भाई ने 'नार' शब्द के जो दो अर्थ लिए हैं उन में से एक है नारी / स्त्री और दूसरा
है नाड़ी| मंच की प्रार्थना पर आप ने अपना सर्वोत्तम प्रस्तुत कर के साबित किया है कि
आप छंदों को ले कर कितने संजीदा हैं| व्यक्तिगत रूप से मैं आप के इस प्रयास की
जितनी भी तारीफ करूँ कम होगी]
हर मंच का दायित्व होता है कि स्थापित रचनाधर्मियों के साथ साथ नवोदित एवम् स्थापित परंतु विधा विशेष में आरम्भिक प्रयास करने वाले कवि / कवियात्रियों को भी स-सम्मान स्थान दें| इस क्रम में अगली बार हम कुछ नये सदस्यों से मिलेंगे और उन के प्रयासों को पढ़ेंगे| जिन सदस्यों को अपने छन्दों में कुछ सुधार की ज़रूरत लग रही हो, वे जल्द से जल्द नये छन्द भेजने की कृपा करें|
आप सभी राजेन्द्र भाई के कल्पना लोक की सैर करें और ये अद्भुत रचना संसार आप को कैसा लगा, टिप्पणियों के माध्यम से व्यक्त कर इस साहित्यिक आयोजन को वेग प्रदान करें, और हम वही करते हैं - एक और पोस्ट की तैयारी|
जय माँ शारदे!