भाग्यशाली हूँ, ईर्ष्या, कुण्ठा, प्रतिस्पर्धा का कारण हूँ
वैसे तो रीढ़ की हड्डी ही उसके संसार की हूँ ,पर
ब्रांडेड, चमकदार कपड़ों से ढँकी -छुपी रहती हूँ
एक बड़े आदमी की पत्नी हूँ मैं…
मेरी खामोशी व्हिस्की के गिलास की बर्फ है
धीरे-धीरे पिघलती है ,ठण्डक बनाये
रखती हूँ
सावन के अंधे सी हरी-भरी
रहती, दिखती हूँ
एक बड़े आदमी की पत्नी हूँ मैं…
एक इंची मुस्कान ही मेरी, मेरा गुज़ारा-भत्ता है
टॉमी की पीठ पर हाथ फिरा मुझे पुचकारता है
मेरी औकात शब्दों से नहीं इशारों में समझाता है
एक बड़े आदमी की पत्नी हूँ मैं…
मेरी दमक-गमक का सेहरा उसके माथे पे सजता है
उसके रूतबे का कोहिनूर मेरे मंगलसूत्र में चमकता है
मेरा संस्कार सिंदूर की कीमत चुकाता है
एक बड़े आदमी की पत्नी हूँ मैं...
चढ़ावे में चढ़ाये नारियल सा मुझे पूजता है
प्रतिष्ठा की हथेली पर खैनी सा मुझे मलता है
फूँक मार कर मेरी अपेक्षा को गर्द सा उड़ाता है
एक बड़े आदमी की पत्नी हूँ मैं...
उसकी अय्याशी मेरी चुप्पी के बिछौने पर गंधाती है
चाँद पर सूत कातती बुढ़िया देर रात मुझे समझाती है
सप्तपदी के सात वचन प्रेमचंद का "पर्दा" बन जाते
हैं
एक बड़े आदमी की पत्नी हूँ मैं
: सन्ध्या यादव
धन्यवाद साहित्यम
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