राजनीति में कितना बल है
वह हर चीज़ बदल सकती है
अपने हित में जो संभव है
उस कुमार्ग पर चल सकती है
जो भी सोचे ऊंचा
नेता
उसकी सोच सही होती है
अन्य जनों से क्या मतलब है
जनता तो हरदम रोती है
कितनी बौनी सोच हो गयी
बस सत्ता में रहना सबकुछ
डंका बजा रहे बंदीजन,
ईश्वर है नेता का श्रीमुख
कारपोरेट की लार जलेबी
नायक है धनिकों का जेबी
नाम देश का,काम सेठ का,
नीति कुटेबी,चाल फरेबी
सब डरते हैं सन्नाटा है
स्वार्थ सिद्धि का यह डाका है
नेता सेवक नहीं किसी का
वह तो स्वामी है आक़ा है
आई है चुपचाप गुलामी
हर ज़र्रा दे रहा सलामी
जनता धूल धूसरित उतनी
जितना होगा नेता नामी
: अनिल गौड़
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें