आकाश में दिन भर जलकर जब
घर लौट के सूरज आया है
तब शाम ने अपने आंचल में
हौले से उसे छुपाया है
सुरमई शाम की पलकों पर
कितने अरमान मचलते हैं
कुछ ख़्वाब सजे हैं आंखों में
कुछ आस के दीपक जलते हैं
यह रात खिलेगी, चांद हसीं
जादू बनकर छा जाएगा
उस वक़्त कोई प्यारा सपना
इन आंखों को महकाएगा
उम्मीद की कल इक नई सुबह
धीमे से पलकें खोलेगी
ख़ुशियों का चेहरा चमकेगा
जब साल मुबारक बोलेगी
: देवमणि_पांडेय
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