15 जून 2012

चंद अश'आर - अनवारे इसलाम


अनवारे इस्लाम


मैं धरती पर मुहब्बत चाहता हूँ
हवाओं पे मेरा पैगाम लिख दे 
*
कैसे बच्चों को खेलते देखूँ
दिन तो रस्ते में डूब जाता है
*
वो अपनी माँ को समझाने लगी है
मेरी बिटिया सयानी हो रही है
*
पत्थरों का नगर काँच का "जिस्म" है
ले के "माँ की अमानत" मैं जाऊँ कहाँ
*
 मेरा वजूद बाप की शफ़क़त [प्यार] से ढँक गया
जब भी किसी बुजुर्ग ने बेटा कहा मुझे
*
चारों तरफ़ बबूल हैं सरसों के खेत में
किसकी ये साजिशें हैं कोई सोचता नहीं
*
नई दुनिया बसाई जा रही है
तबाही भी मचाई जा रही है
*
झुकाया जा रहा है आस्माँ को
ज़मीं सर पर उठाई जा रही है
*
किसी के हाथ मिट्टी से सने हैं
कोई ख़ुशबू से ख़ुशबू धो रहा है 
*
देख कर तुमको याद आता है 
हमने क्या खो दिया जवानी में 
*
बारिशों में हो साथ कोई तो
लुत्फ़ आता है भीग जाने में
*
ख़ुदा मुझको वहाँ जन्नत ही देगा
जहन्नुम तो यहीं पर दे दिया है 
*
हमने तमाम उम्र अँधेरों में काट दी
लेकिन किसी चिराग़ से सौदा नहीं किया
*
सूखा पड़ा तो सूख गई फ़स्ल धान की
सूरज की धूप पी गयी मेहनत किसान की
*
वो इस तरह से भी तारीकियाँ बढ़ा देगा
चिराग़ जितने हैं रौशन उन्हें बुझा देगा 
*
 हवा के साथ चिराग़ों ने दोसती कर ली
अज़ीब लोग हैं घबरा के ख़ुदकुशी कर ली
*
हम दिमाग़ों में बस गये होते
दिल की बातों में गर नहीं आते
*
है ख़तरा बस्तियों के डूबने का
समन्दर पैर फैलाने लगा है
*
तुमको मिला जो हुस्न, मुझे शाइरी मिली
दौनों पे रहमतें मिरे परवरदिगार की
 *
ख़्वाबों में मेरे आज तक उतरी नहीं परी
दादी ने जो सुनाये वो क़िस्से फ़जूल थे
*

 'मिजाज़ कैसा है' से उद्धृत

अनवारे इस्लाम
सम्पादक - सुखनवर पत्रिका
C-16, सम्राट कौलोनी,
अशोका गार्डन,
भोपाल - 462023
मोबाइल - +91 98 93 66  3536
ईमेल - sukhanwar12@gmail.com

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ...........

    एक से बढ़ कर एक...लाजवाब शेर.....
    शुक्रिया नवीन जी....

    सादर

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  2. बेहतरीन गज़ल.................

    हमारी टिपण्णी स्पाम में गयी???

    सादर

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  3. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. किसी के हाथ मिट्टी से सने हैं
    कोई ख़ुशबू से ख़ुशबू धो रहा है

    चारों तरफ़ बबूल हैं सरसों के खेत में
    किसकी ये साजिशें हैं कोई सोचता नहीं

    बहुत खूब

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  5. भूल हुई जो ध्यान से पढ़ा ||

    आभार |
    सुन्दर प्रस्तुति |
    खुबसूरत रचना ||

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  6. @ravikar [gupta ji]

    आप निस्संदेह, विधिवत, समीक्षक के अधिकार व् दायित्वों के साथ समीक्षा प्रस्तुत करिएगा गुप्ता जी,
    स्वागत है - इसीलिए आप को फोन किया था.
    [parody nahin]

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