11 अक्तूबर 2012

SP2/1/1 कितने सीधे श्याम जी, यथा जलेबी रूप - डा. श्याम गुप्त

।।सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन।।

एक ज़माना हुआ करता था जब टेलीविज़न परिवार के सभी सदस्यों को एक जगह एकत्र करने का पर्याय बन गया था। अब तो गेजेट्स की मेहरबानी ये है कि जितने मुंड, उतने टी. वी. सेट्स / गेजेट्स हों तो भी अचरज नहीं। कभी-कभार ही मौक़े बनते हैं जब परिवार के सभी सदस्य एक ही प्रोग्राम एक साथ देखते हों। कल ऐसा ही एक मौक़ा बना जब शाम को टी. वी. पर आमिर ख़ान वाली 'तारे ज़मीन पर' फिल्म आ रही थी। उस फिल्म के केंद्र में जो बच्चा ईशान है उस के पिता आमिर खान के पास अपने बेटे की बीमारी से संबन्धित कुछ सामग्री [इंटरनेट पर से उन के नहीं उन की पत्नी द्वारा जुटाई गई] ले कर पहुँचते हैं और बड़े ही दम्भ के साथ ये जताते भी हैं कि कोई ये न समझे कि उन्हें [ईशान के माँ-बाप को] अपने बच्चे की कोई फ़िक्र नहीं है। इस पर आमिर खान वाला किरदार क्या कहता और करता है, अमूमन सभी को पता होना तो चाहिये, न हो तो मेरी प्रार्थना है एक बार यह फिल्म देख ही लें, टाइम खोटी हरगिज न होगा। आप सोच रहे होंगे कि मैं ये सब क्यूँ लिख रहा हूँ? कारण है ये सब लिखने का! काव्य-परिचर्चा या कवि-सम्मेलन या कवि गोष्ठी के नाम पर जो कुछ सुनने / देखने को मिल रहा है, मुँह में कड़वाहट भरने के लिये पर्याप्त है। इतना ही नहीं, ऐसे प्रयासों को ले कर जो दावे किये जाते हैं, वो भी खुलेआम मंचों से पूरी तरह से उघड़े हो कर, क्षमा करना मित्रो, इस 'तारे ज़मीन पर' वाले ईशान के पिता के वक्तव्य की तरह ही लगते हैं। ख़ैर, समय अपना काम करेगा, हम और आप अपना काम करते हैं।


आइये समस्या-पूर्ति के दूसरे चक्र का श्री गणेश करते हैं।मंच ने जब 'अच्छे-दोहों' के लिये प्रार्थना की तो कुछ एक मित्रों ने 'अच्छे-दोहों' की परिभाषा पूछी। दोहा हो या काव्य की अन्य कोई विधा, उस के अच्छे होने के लिये मूल रूप से तीन बातों पर गौर किया जाता है:-
  1. छन्द अनुपालन / लय-प्रवाह इत्यादि
  2. भाव-सम्प्रेषण / सीधी ज़बान में बिना समझाये बात समझ में आ जाना
  3. अर्थ विस्फोट / अभिव्यक्ति में चमत्कृति। ऐसा बयान जिसे पढ़ते / सुनते ही मुँह 'वाह' या 'आह' कहे बिना रह न सके।
हर-एक रचनाधर्मी की प्रति-एक कृति में तीसरी बात यानि कि अर्थ-विस्फोट तलाश करना निश्चित ही 'हरेक वन में चन्दन' तलाश करने के समान है [चन्दनं न वने वने]। फिर भी पहली दो बातें छन्द-अनुपालन तथा भाव-सम्प्रेषण तो देखनी ही चाहिये। तो न्यूनतम इन दो बातों को लक्ष्य में रखते हुये हम शुभारम्भ करते हैं आयोजन का। उम्मीद करते हैं जैसे-जैसे आयोजन आगे बढ़ेगा सहभागिताएँ भी बढ़ेंगी। शुरुआत करते हैं डा.श्याम गुप्त जी के दोहों के साथ:-



डा. श्याम गुप्त

ठेस –
स्वाभिमान पर अन्य के, पहुँचे कभी न ठेस।
ऐसा तू व्यवहार कर, उपजें नहीं कलेस।।

उम्मीद –
अब उम्मीद न कछु रही, होय जिया बेचैन।
सखि री कौन जतन करूँ, मिलें पिया से नैन।।

सौंदर्य-
प्रिय तेरे सौंदर्य का, कैसे वर्णन होय।
तू ही उपमा है स्वयँ, उपमा रुचे न कोय।।

आश्चर्य-
होय बात आश्चर्य की, पर आश्चर्य न होय।
बात यही आश्चर्य की, क्यों आश्चर्य न कोय।।

हास्य-
हास्य-व्यंग्य के नाम पर, वे चुटुकुले सुनायँ।
कविगण हैं या मसखरे, बिरथा गाल बजायँ।।

वक्रोक्ति-
बड़ी सुहानी उक्ति है, यह वक्रोक्ति अनूप।
"कितने सीधे श्याम जी, यथा जलेबी रूप"।।

सीख-
मातु-पिता गुरु शास्त्र की, सीख धरे जो माथ।
सफल सुफल जीवन रहे, मिले सभी का साथ।।


खुद पर व्यंग्य कसना बड़ा ही मुश्किल काम होता है। श्याम जी ने वक्रोक्ति वाले दोहे के माध्यम से ख़ुद ही पर कटाक्ष करते हुये वक्रोक्ति का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है, इस दोहे के लिये श्याम जी को स्पेशल बधाइयाँ। आश्चर्य वाले दोहे में जिस तरह शब्दों की बुनावट के ज़रिये विस्मय के भाव उत्पन्न करने का प्रयास किया गया है, वह भी दर्शनीय / पठनीय है। शब्दों की कारीगरी का उत्तम नमूना है ये दोहा। सौन्दर्य वाले दोहे में अलग एंगल से सोचने पर आप को अतिशयोक्ति के साथ-साथ व्यंग्य का पुट भी मिल सकता है। हास्य के दोहे के माध्यम से श्याम जी ने जो बात कही है वो अमूमन हर साहित्य-प्रेमी के दिल की आवाज़ है - टीस है। श्याम जी के इस दोहे में व्यक्त टीस को ले कर कुछ बात करने का मूड बन रहा है। जबकि लगभग हर साहित्य-प्रेमी को 'ये' शिकायत है तो क्या ऐसे में योग्य रचनाधर्मियों का दायित्व नहीं बनता कि वे एक लाइन को छोटी साबित करने के लिये उसे काटने की बजाय, समानान्तर दूसरी बड़ी लाइन खींच कर दिखा दें? एक बार फिर से लिखता हूँ "क्या हम किसी लाइन को छोटी साबित करने के लिये, उसे काटने की बजाय, समानान्तर दूसरी बड़ी लाइन नहीं खींच सकते"? मेरी बातों को नकारात्मक नहीं सकारात्मक रूप में ले कर आप सभी क्षण-भर के लिये सोचें अवश्य! फिर भी मेरी बातों या व्यवहार से किसी के दिल या स्वाभिमान को ठेस पहुँचती हो तो मैं क्षमा-प्रार्थी हूँ!

तो आप इन दोहों का आनंद लेते हुये श्याम जी की 'साहित्यिक-कारीगरी' पर अपनी राय ज़ाहिर करने की कृपा करें और हम तैयारी करते हैं अगली पोस्ट की।


जय माँ शारदे!

30 टिप्‍पणियां:

  1. शुरुआत वाकई शानदार है। इन दोहों के लिए श्याम जी को बधाई।

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  2. --धन्यवाद संगीता जी, प्रकाश व धर्मेन्द्र जी...

    ---धन्यवाद नवीन जी --
    "क्या हम किसी लाइन को छोटी साबित करने के लिये, उसे काटने की बजाय, समानान्तर दूसरी बड़ी लाइन नहीं खींच सकते"? --
    ---अत्यंत ही सुन्दर, सार्थक व स्पष्ट अभिव्यक्ति है...".बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी "....

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  3. श्याम जी को बधाई, वाकई बहुत सुन्दर

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  4. नवीन जी की बात व आवाज़ पर एक छोटे से व्यंग्य से कुछ बड़ी लकीर खींचने का प्रयत्न करते हैं....कहाँ तक सार्थक है यह ..नवीन जी ही बताएँगे...

    "हम स्वतंत्र एडवांस हैं,मन में गर्व असीम,
    किन्तु ढूँढते रह गए, दरवाजे का नीम |"

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  5. दरवाज़े का नीम

    श्याम जी आप के इस दोहे की 'ठेस' का सम्प्रेषण ग़ज़ब का है!!!!!!!!!!! सच्ची......

    आप कहें तो रिप्लेस कर दूँ?

    'बड़ी लाइन खींचने' की मेरी अनुनय को संबल प्रदान करने के लिए आभार :)

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  6. बहुत बढ़िया दोहे हैं नवीन जी ! डॉ. श्याम गुप्त जी को बहुत-बहुत बधाई एवं आपको इतने सार्थक आयोजन के लिये ढेर सारी शुभकामनायें !

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  7. श्याम जी का प्रयास अत्यंत प्रशंसनीय है !
    सार्थक दोहों के लिए बधाई स्वीकार करें !

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  8. बहुत सुन्दर शुरूवात है |बधाई |
    आशा

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  9. श्याम जी के दोहों में पिंगलीय नियमों का पूर्णतः पालन है. दो पदों में १३-११ के विषम-सम चार चरण... तथा पदांत में गुरु-लघु सहज दृष्टव्य है. भाव, रस तथा बिम्बविधान भी सटीक है. दोहाकार को बहुत-बहुत बधाई.

    मेरा निवेदन भाषा को लेकर है. सामान्यतः खड़ी बोली में कलेस (क्लेश), कछु (कुछ), होय (हो), कोय (कोई) शब्दों का प्रयोग वर्ज्य माना गया है. अवधी, ब्रज, भोजपुरी, बुंदेली आदि लोक भाषाओँ में ये शब्द-रूप मान्य हैं. लोक कवि तथा भक्त कवि इन शब्द रूपों का प्रयोग करते रहे हैं. नम्र निवेदन मात्र यह है कि यथासंभव शुद्ध तथा शब्द रूप प्रयोग में लाने का प्रयास किया जाना चाहिए. विश्वविद्यालयीन परीक्षाओं में हिंदी के पाठ्यक्रम में उक्त शब्द रूप गलत कहे गये हैं. हमारी रचनाओं में इन्हें पढ़कर विद्यार्थी यदि प्रयोग में लायेगा तो उसके अंक कम कर दिये जायेंगे.

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  10. जैसा कि नवीन भाई ने स्पष्ट किया है कि रचना का अंतिम पड़ाव अर्थ विस्फोट है। अर्थ विस्फोट होने के लिए आवश्यक है कि दोहे में छंद, लय, प्रवाह और भाव संप्रेषण के साथ साथ कविता भी हो। कविता होने के लिए जैसा कि नामवर जी ने अपनी पुस्तक कविता के नए प्रतिमान (साहित्य अकादमी से पुरस्कृत) में कहा है कि "अनुभूति की तीव्रता", "अनुभूति की प्रमाणिकता" और "अनुभूति की व्यापकता" आवश्यक है। यानि इन भावों से होकर आप गुजरे हों और इन भावों का आपने गहराई से अनुभव किया हो (व्यापकता तो इन भावों में है ही)।
    अर्थात अर्थ विस्फोट होने के लिए भावों की गहरी अनुभूति आवश्यक है।
    "कितने सीधे श्याम जी, यथा जलेबी रूप" से ये बात स्पष्ट हो जाती है। यहाँ अर्थ विस्फोट की स्थिति बन रही है। श्याम जी को पुनः बधाई।

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  11. दोहाकारों से विशेष निवेदन:-

    दोहों पर जो लोग काम कर रहे हैं, या जिन के दोहे अभी आने बाकी हैं वो धर्मेन्द्र भाई के अर्थ-विस्फोट के अर्थ के संदर्भ में दिये गए स्पष्टीकरण पर गौर करें, दोहे ख़ुद-ब-ख़ुद बोलते हुये हो जाएँगे।

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  12. आ. सलिल जी

    आप ने एकदम दुरुस्त फ़रमाया है, आप की बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। पर जैसा कि मैंने आप से भी ख़ुद भी फोन पर अनुरोध किया था कि थोड़ा-थोड़ा आंचलिक पुट ले कर चलने का मानस है, ताकि माटी की सौंधास बनी रहे :)

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  13. ---नवीन जी, साधना जी, मर्मज्ञ जी व आशाजी को धन्यवाद...

    --धर्मेद्र जी को विश्द व्याख्या हेतु आभार ..

    -- सलिल जी को गहन अवलोकन हेतु आभार,..बहुत बहुत धन्यवाद....मेरे अनुसार ये दोहे विशुद्ध या क्लिष्ट अथवा तकनीकी खड़ी बोली में नहीं हैं न खड़ी बोली की परीक्षा हेतु ..अपितु बोलचाल की भाषा में हैं जो ब्रज मिश्रित खड़ी बोली है तथा उत्तर भारत में यही बोलचाल की भाषा है .. ..वास्तव में तो राष्ट्र-भाषा -खड़ी बोली स्वयं आगरा के आसपास की ब्रज मिश्रित हिन्दी है और उसी से उद्भूत हुई है ...
    --- सलिल जी का विचार सत्य हो सकता है परन्तु जहाँ तक मेरा विचार है हमें हिन्दी की प्रगति हेतु अत्यंत परिष्कृत,क्लिष्ट व तकनीकी खड़ी बोली की अपेक्षा जन-सामान्य की भाषा' सामान्य हिन्दी' में काव्य-रचना करनी चाहिए ताकि जन-जन को स्पष्ट व तीब्र भाव सम्प्रेषण हो....

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  14. पुनश्च....

    जहां तक पाठ्यक्रम की बात है..खड़ी बोली की गद्य रचनाओं व आलेख, निबंध आदि में ये सलिल जी द्वारा इंगित शब्द त्रुटिपूर्ण होंगे...

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  15. आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ९/१०/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी

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  16. संदेश अच्छा है ही ,और कलापक्ष का निर्वाह भी ख़ूब !

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  17. डॉ. श्याम गुप्त जी ने और नवीन चतुर्वेदी जी ने बतरस की सभा लगायी है.... आनंद आया.

    एक लाइन को छोटी साबित करने के लिये उसे काटने की बजाय, समानान्तर दूसरी बड़ी लाइन खींच कर दिखा दें...
    @ राधा 'श्याम की स्मित रेख' को जिस ढंग से छोटा करती हैं... वह या तो कोई प्यारा गोदी बालक कर सकता है या फिर वह स्वयं.

    एक चित्र देखिये :
    श्याम 'गुप्त मुस्कान' में, 'छोटी रेख' छिपाय ।
    राधा चुम्बन गाल पे, अति छोटी हो जाय ।।
    ......... ['राधा' की जगह 'बालक' भी कर सकते हैं]


    "दरवाजे का नीम" .........

    ठाले बैठे फाँकते, लेखक सभी अफीम ।
    इससे पाठक हैं भले, दरवाजे के नीम ।।

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  18. श्याम गुप्त साहब ने बड़े अच्छे दोहे लिखे हैं।मेरे विचार में दोहा एक बहुत ही कठिन विधा है।और नवीन भाई आपको विशेष बधाई कि आपने ग़ज़ल के साथ-साथ दोहा और अन्य हिंदी छंद की विधाओं में भी निपुणता प्राप्त की है।

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  19. बढिया प्रस्तुति .मन गदगद हुआ .थोड़े में पूरी बात कहनी पड़ती है यही तो दोहों की विशेषता होती है श्याम जी के दोहे इस कसौटी पे खरे उतरतें हैं -

    ठेस –
    स्वाभिमान पर अन्य के, पहुँचे कभी न ठेस।
    ऐसा तू व्यवहार कर, उपजें नहीं कलेस।।

    ठेस –
    स्वाभिमान पर अन्य के, कभी न पहुँचे ठेस।
    ऐसा तू व्यवहार कर, उपजें नहीं कलेस।।.....ऐसा करने पर गेयता और भी बढ़ जाती है .श्यामजी गौर करें .

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  20. ---धन्यवाद ---सौरभ जी, प्रतुल जी, प्रतिभाजी, प्रवीण पांडे जी,राजेश कुमारी जी एवं उड़न तश्तरी जी...
    --प्रतुल जी के दोहे भी ठसक रखते हैं ..

    --- आप सबकी प्रशंसा के आभार के साथ ...यह भी कहना चाहूँगा कि इसमें नवीन जी का परामर्श भी सम्मिलित है....उन्हें भी बधाई ..

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  21. एक सार्थक शुभारम्भ हेतु डा श्याम जी का हार्दिक आभार !! उनकी प्रतिभा के हम सभी पहले से कायल हैं –पोस्ट इस बात की तस्दीक कर रही है – दोहों में सत्य की उदघोषणा सतर्क हुई है – परम्परा के वे बेहद नज़दीक हैं –दोहों की कामयाबी यही है कि ये दोहे याद रह जाते हैं और पढने के फौरन बाद स्वीकार्य की श्रेणी में आते हैं – जो भी प्रश्न उठाये जा सकते थे –विज्ञ मित्रो ने पहले ही उठा दिये हैं और संशयों का समाधान डा श्याम जी ने स्वयं कर ही दिया है – इसके बाद इस पोस्ट पर और इस शुभारम्भ पर नवीन भाई आपको डा श्याम जी को और सभी विज्ञ मित्रों को बधाई – मयंक अवस्थी

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  22. गुप्त जी के दोहे सचमुच रससिक्त करते हैं, उन्हें बधाई ।

    सरस और पठनीय काव्य के लिए मंच उपलब्ध कराने हेतु नवीन जी को बधाई।

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  23. शानदार शुरुआत,सभी दोहे उत्कृष्ट और सार्थक लगे|
    डॉ श्याम गुप्त जी को बधाई और इस आयोजन के लिए समस्या पूर्ति मंच के आयोजक को शुभकामनाएँ!!
    विनम्र नवेदन है कि सौन्दर्य और आश्चर्य वाले दोहों को उदाहरण के साथ लिखा जाए तो नए सीखने वालों को मदद मिलेगी|
    सादर

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  24. अच्छी और ज्ञानवर्धक बातें अक्सर कम शब्दों में ही कही जाती हैं....!!

    पूरे भाव के साथ...
    सम्पूर्ण..!

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  25. I greatly appreciate all the info I've read here. I will spread the word about your blog to other people. Cheers.

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  26. धन्यवाद मयंक जी, महेंद्र जी , ऋता जी , संगीता जी एवं पूनम जी....और एनोनीमस जी ..

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