तेरी उलफ़त का मेरी रूह पे चस्पाँ होना - नवीन

तेरी उलफ़त का मेरी रूह पे चस्पाँ होना
जैसे तपते हुये सहरा का गुलिस्ताँ होना

जिस के हाथों के तलबगार हों अहसान-ओ-करम
उस की तक़दीर में होता है सुलेमाँ होना

वो भी इन्सान बना तब ये ख़ला, खल्क़ हुआ
यूँ समझ आया "बड़ी बात है इनसाँ होना"

ऐसे बच्चे ही बुलंदी पे मिले हैं अक्सर
जिन को रास आया बुजुर्गों का निगहबाँ होना

खुद को दफ़नाते हैं तब जा के उभरती है ग़ज़ल
दोस्त आसाँ नहीं - आलम का निगहबाँ होना

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 


फाएलातुन फ़एलातुन फ़एलातुन फालुन 
बहरे रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन
2122 1122 1122 22

3 टिप्‍पणियां:

  1. वो भी इन्सान बना तब ये ख़ला, खल्क़ हुआ
    यूँ समझ आया "बड़ी बात है इनसाँ होना"

    ऐसे बच्चे ही बुलंदी पे मिले हैं अक्सर
    जिन को रास आया बुजुर्गों का निगहबाँ होना

    वाह, वाह, बहुत खूब !!!

    जवाब देंहटाएं
  2. ऐसे बच्चे ही बुलंदी पे मिले हैं अक्सर
    जिन को रास आया बुजुर्गों का निगहबाँ होना

    बहुत सुंदर ....

    जवाब देंहटाएं

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