पितृ-पक्ष समाप्त होते ही गाजों-बाजों के साथ माँ दुर्गा का आगमन हो चुका है। पर्वों का पर्याय, उत्सव प्रधान देश भारत उत्सव-काल में प्रवेश कर चुका है। पहले नवरात्रि, फिर दशहरा, फिर शरद पूर्णिमा, धनतेरस, दिवाली, विजया दशमी और लाइन लगा कर न जाने कितने पर्व, अलग अलग प्रदेश में अलग अलग पर्व। इस उत्सव-पर्व की सकल जगत को शुभकामनाएँ।
पिछले शनि-रवि को मुंबई में 24 घण्टे वाला अखण्ड कवि सम्मेलन समाप्त हुआ जिस की रिपोर्ट एक-दो दिन में आप तक पहुँचेगी। यहाँ ठाले-बैठे पर भी आप सभी के सहयोग से बड़ा ही सुहाना और अनुकरणीय साहित्यिक माहौल बना हुआ है। वक्रोक्ति को ले कर जो भ्रांतियाँ थीं, न सिर्फ़ दूर हो गईं, वरन मेरे और आप में से कुछ एक के जैसे सूचना-पिपासुओं के भावी संदर्भों के लिये यह जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध हो गई। इस चर्चा के आधार श्याम जी और विश्लेषण के लिए सलिल जी, प्रतुल जी सहित आप सभी का सहृदय आभार।
भाई अरुण कुमार निगम जी पहली बार मंच पर अपना स्नेह बरसा रहे हैं। आज की पोस्ट में हम पढ़ते हैं उन के दोहे।
अरुण कुमार निगम |
ठेस
दर्शकदीर्घा में खड़े, वृद्ध पिता अरु मात
बेटा मंचासीन हो , बाँट रहा सौगात
दर्शकदीर्घा में खड़े, वृद्ध पिता अरु मात
बेटा मंचासीन हो , बाँट रहा सौगात
ऐसा दृश्य देख कर तो पत्थर की प्रतिमूर्ति इंसान के दिल को भी ठेस पहुँचे। अरुण जी अच्छा दोहा है।
उम्मीद
प्राण निछावर कर गया,रण में पिछले साल
माई स्वेटर बुन रही , शायद लौटे लाल
प्राण निछावर कर गया,रण में पिछले साल
माई स्वेटर बुन रही , शायद लौटे लाल
लास्ट पोस्ट की बात दुहराता हूँ, सिर्फ़ 'उम्मीद' शब्द ठूँस देने भर से काम नहीं बनता बल्कि उम्मीद का शब्द-चित्र भी बनाना पड़ता है। अरुण जी ने अच्छा शब्द-चित्र बनाया है।
सौंदर्य
कुंतल कुण्डल छू रहे , गोरे - गोरे गाल
लज्जा खंजन नैन में,सींचे अरुण गुलाल
अहा! अहा! अहा! तबीयत ख़ुश कर दी अरुण भाई, बहुत ख़ूब।
आश्चर्य
कुंतल कुण्डल छू रहे , गोरे - गोरे गाल
लज्जा खंजन नैन में,सींचे अरुण गुलाल
अहा! अहा! अहा! तबीयत ख़ुश कर दी अरुण भाई, बहुत ख़ूब।
आश्चर्य
हिस्से की चाहत लिये, जबसे आये गाँव
बेटा सेवा में जुटा , बहू दबाती पाँव
दोहे के माध्यम से अच्छा संदेश दे रहे हैं।
हास्य-व्यंग्य
छेड़ा था इस दौर में , प्रेम भरा मधु राग
कोयलिया दण्डित हुई , निर्णायक हैं काग
कोयलिया दण्डित हुई , निर्णायक हैं काग
बड़ा ही महीन और सीधे-सीधे संप्रेषित होता व्यंग्य है अरुण जी। बधाई।
वक्रोक्ति / विरोधाभास
बाँटे से बढ़ता गया ,प्रेम विलक्षण तत्व |
दुख बाँटे से घट गया,रहा शेष अपनत्व ||
वक्रोक्ति - व्यंग्योक्ति की चर्चा के बाद एक अच्छा विरोधाभास वाला दोहा पढ़ कर मन प्रसन्न हुआ।
सीख
नश्वर माटी से बना, भट्टी तपा शरीर
नश्वर माटी से बना, भट्टी तपा शरीर
भरी सुराही बाँटती, झुक-झुक शीतल नीर
नो शक़ भाई जी! नो शक़!!
नो शक़ भाई जी! नो शक़!!
अरुण जी आप पहली बार मंच पर पधारे हैं, और वो भी टीचरी से दूर, कोमल भावनाओं को सहजता से व्यक्त करते मस्त-मस्त दोहों के साथ। भाई सच बोलें तो आप ने दिल जीत लिया, बाकी की बातें पाठक ख़ुद बताएँगे आप को। मंच से जुड़े रहिएगा तथा अपने अन्य साथियों का भी उत्साह वर्धन करियेगा।
!!जय माँ शारदे!!
aafreen...adbhut.....behtaree sabhi dohe..
जवाब देंहटाएंmaja aa gaya padh kar:-)
वस्तु जगत के यथार्थ को बड़ी संजीदगी के साथ बयान करते बेहतरीन दोहे अरुण जी ! अनेकानेक बधाइयाँ आपको !
जवाब देंहटाएंसारे ही दिल जीतू दोहे हैं। इस बार अर्थ विस्फोट के साथ साथ ये आयोजन ब्लॉग जगत में भी विस्फोट करने वाला है। अरुण जी को बहुत बहुत बधाई इन शानदार दोहों के लिए।
जवाब देंहटाएं---अच्छे दोहे हैं---- अरुण जी को बधाई...
जवाब देंहटाएं१. उम्मीद ..
प्राण निछावर कर गया, रण में पिछले साल
माई स्वेटर बुन रही , शायद लौटे लाल - ---निश्चय ही यहाँ उम्मीद वाचक शब्द 'शायद' उपस्थित है...
२. सौंदर्य--
---सौंदर्य का सौंदर्यमय वर्णन
३.आश्चर्य
हिस्से की चाहत लिये, जबसे आये गाँव
बेटा सेवा में जुटा, बहू दबाती पाँव
---- आश्चर्य जब होता है जब मंतव्य अज्ञात हो...
३.व्यंग्य
---अच्छा व्यंग्य है
४ विरोधाभास
बाँटे से बढ़ता गया ,प्रेम विलक्षण तत्व |
दुख बाँटे से घट गया, रहा शेष अपनत्व || --- विरोधाभास कहां है... यह तो विश्वमान्य सत्य तथ्य का सामान्य वर्णन है,
५.सीख
नश्वर माटी से बना, भट्टी तपा शरीर
भरी सुराही बाँटती, झुक-झुक शीतल नीर
--- सुन्दर अन्तर्निहित सीख है....अन्योक्ति के माध्यम से ...
अरुण सर के दोहे मैं उनके ब्लॉग पर पढ़ती रहती हूँ...आज भी सारे दोहे सार्थक और सुंदर हैं...बधाई|
जवाब देंहटाएंसब एक से बढ़कर एक हैं
जवाब देंहटाएंविलक्षण दोहे .... अभिभूत हूँ।
जवाब देंहटाएंइस रसास्वादन कराने के लिए अरुण जी को सादर नमन।
आदरणीय गुप्त जी, कैसे संतुष्ट होंगे? लगता है हमें और अधिक श्रम करना होगा!!
उनकी उपस्थिति में तो कल्पना भी अपने पंख नहीं फैला पा रही है। :)
हे राम!
कैसे करूँ .... अभी फिलहाल ....
श्याम हमेशा बोलते, उजली उजली बात।
गुप्त भाव से छोड़ते, मुक्के घूँसे लात।। .... यहाँ तो जरूर विरोधाभास होना चाहिए!
'गुप्त' जब खुलकर सामने हो तब तो जरूर विरोधाभास होगा!!
अन्यार्थ न लीजिएगा .... क्षमा भाव के साथ
आज एक अरसे बाद क्षमा-प्रार्थना के साथ मंच पर आया हूँ. ’व्यक्तिगत व्यस्तता और मैं’ मेरी परिस्थिति का समीचीन शीर्षक हो सकता है.
जवाब देंहटाएंभाई अरुण जी को इस मंच पर उनकी प्रस्तुति के साथ देखना सुखद लगा. आपके प्रस्तुत सभी दोहे उत्कृष्ट लगे, भाईजी. सभी का मतलब सिर्फ़ सभी होता है. अरुण भाईजी को हार्दिक बधाई.
भाई प्रतुल वशिष्ठ जी को उनकी साफ़गोई के लिये हृदय से साधुवाद. आपकी उक्तियों से स्पष्ट है कि शास्त्रीय छंदों को भी जीया जाता है.. और जीने का एक स्पष्ट तरीका हुआ करता है.
महाभारत में एक प्रसंग है. शल्य ने युद्धभूमि में कर्ण को कौवे और हंस की एक शिक्षाप्रद कथा सुनायी थी. यह कथा मेरे अनहद-स्वर का हिस्सा बन गयी है. गूँजती रहती है.
एक उत्कृष्ट साहित्यिक वातावरण हेतु सादर प्रणाम, नवीनभाईजी.
अरुण जी के इन दोहों में लेखन की परिपक्वता स्पष्ट झलक रही है।
जवाब देंहटाएंबधाई अरुण जी और नवीन जी को।
क्या बात है!!
जवाब देंहटाएंबिलकुल सीखने के लिए पर्याप्त है. Paryapt hi nahi bharpoor hai khazanaa
प्रतुल जी ---अन्यथा लेने का तो कोई सवाल ही नहीं ..यह तो विचार-विमर्श है ..
जवाब देंहटाएं"काव्य शास्त्र विनोदेन,कालो गच्छति धीमताम"
---साफ़ साफ़ लिखने हेतु साधुवाद ...आप भी मेरे साथ आने लगे हैं..धन्यवाद ...
"टेडी नज़र से देखते हैं, देखते तो हैं ,
मैं हूँ प्रसन्न,हूँ तो उनकी निगाह में | "
--- श्रीमती जी हिन्दी में एम् ए हैं -हाँ सामान्य घरेलू महिला हैं---यूँही उनकी नज़र एक दोहे पर पडी ..अनायास ही बोल पड़ीं ..
" हैं! ये क्या दोहा है...-- कुंतल तो कुंडल छूएंगे ही यह क्या बात हुई |" तो यदि --शब्द, भाषा, भाव व अर्थ एक साथ जुगलबंदी न करें तो काव्य का स्पष्टता से कैसे सम्प्रेषण हो.... काव्य-सौंदर्य एक पृथक तत्व है..
---आशा है अन्यथा न लिया जायगा ..
छेड़ा था इस दौर में , प्रेम भरा मधु राग
जवाब देंहटाएंकोयलिया दण्डित हुई , निर्णायक हैं काग
बहुत बढि़या दोहा है यह, अपने समय के सत्य को उजागर करता हुआ। दोहों की मात्रिक पुष्टता देखकर लग रहा है कि अरूण जी एक सिद्धहस्त कवि हैं । मेरी बधाई।
ठाले बैठे ब्लॉग पर टिप्पणियों को न तो मोडरेट किया जाता है न डिलीट। उम्मीद की जाती है कि सभी अपनी मर्यादा को समझेंगे।
जवाब देंहटाएंश्याम जी अपने स्वभावानुसार ब्लॉग जगत पर अपनी उपस्थिती दर्ज़ कराते रहे हैं। मेरे लिए संतुष्टि की बात ये है कि उन की वज़्ह से वक्रोक्ति पर अच्छी चर्चा छिड़ सकी। मैं सार-सार को गहने में यक़ीन रखता हूँ।
कुंतल को ले कर जो शंका व्यक्त की गई है उस के समाधानार्थ कुंतल शब्द के विभिन्न अर्थों को देखने की प्रार्थना करता हूँ
एक अज़ीब सी टिप्पणी आज डिलीट करनी पड़ी है, उस में श्याम जी के दोहों के आकलन और श्याम जी द्वारा अन्य व्यक्तियों के दोहों पर की जाने वाली टिप्पणियों पर जो कहा गया, अरुचिकर था।
प्रार्थना है कि साहित्यिक माहौल को बनाये रखें। अभी तो और भी अच्छे-अच्छे दोहे पढ़ना बाकी है।
प्रत्येक दोहा बेहद प्रभावी ....बधाई अरुण जी को
जवाब देंहटाएंबहुरंगी दोहे बहुत अच्छे लगे !
जवाब देंहटाएं--- नवीन जी के आदेशानुसार---- अब आप स्वयं ही देखें --समझें --
जवाब देंहटाएं----हिन्दी - हिन्दी शब्दकोश से हिन्दी शब्द "प्याला" के लिए हिन्दी अर्थ…
1. करोट, कटोरा, चाय काफीः बरतन सूची, छोटा कटोरा, मद्यपान पात्र, कासा, पाली, कोश्कि, भिक्षा भांड सूची, "--कुंतल---", कप अँ, चषक, जाम, पैमाना, प्याला
----"घूँघर" के लिये पर्यायवाची शब्द,
"--कुंडल---", छलला,"-- कुंतल---", केश, केश गुच्छ, घूँघर, लच्छा, घुँघराला, घुँघराले केश
---पर्यायवाची शब्द-- केश = बाल, शिरोरुह, कच, "---कुंतल---", पश्म, चिकुर, अलक।
वाह ... बहुत ही बढिया
जवाब देंहटाएंबधाई सहित शुभकामनाएं
बहुत ही सुन्दर...
जवाब देंहटाएंठाले-बैठे पर मुझे , लाये भ्रात नवीन
जवाब देंहटाएंप्रकट करूँ आभार मैं , हुए स्वप्न रंगीन |
प्रथम प्रेम सी टिप्पणी,श्री प्रकाश से प्राप्त
जवाब देंहटाएंलेखन सार्थक हो गया,हर्ष हृदय में व्याप्त |
सफल साधना हो गई , ईश्वर का आभार
जवाब देंहटाएंपाया है सत्संग से , वस्तु जगत का सार |
दिल जीतू विस्फोट कह ,दिल जीते धर्मेंद्र
जवाब देंहटाएंलेखन में परिपक्वता , लखते भ्रात महेंद्र |
भाये छप्पन भोग नहिं ,श्याम कहें नवनीत
जवाब देंहटाएंलाय सुदामा पोटली , चाँवल भीनी प्रीत |
जिनकी सेवा हो रही , वे अचरज में तात
चाहत कवि बतला रहा, सेवक मुख नहिं बात |
भाये छप्पन भोग नहिं ,श्याम कहें नवनीत
जवाब देंहटाएंलाय सुदामा पोटली, चाँवल भीनी प्रीत |
--- मेरी समझ से ऊपर की बात है---
चाँवल(=चावल )भीनी प्रीति = चावल से भीनी प्रीति ?
अरुण कुमार निगम जी के दोहों का आकर्षण से अभी तक बँधा हूँ ...
जवाब देंहटाएं'कुंतल कुंडल' शब्द युग्म में जो श्लेष देखने को मिला है वह अद्भुत है ...
— यदि पहला अर्थ (कुण्डलनुमा घुँघराली लटें गालों को छू रही हैं) लेंगे, तो विपरीत लिंगीय आकर्षण न होने से 'भाव' भली प्रकार उद्दीप्त नहीं होगा जिससे वह सहजता से संयोग शृंगार मान लिया जाए। यहाँ घुँघराली लटें स्त्रीवाची है।
— यदि दूसरा अर्थ (केशों के मध्य कुण्डल गालों को छू रहे हैं) लेंगे, तो 'भाव' उद्दीपन भली प्रकार होगा। यहाँ 'कुण्डल' स्वयं गालों को छू रहा है और यह पुर्लिंग है।
हमने जब शब्द की दोहरावट में अर्थ की भिन्नता देखी तब उसे 'यमक' कहा और जब वाक्य की दोहरावट में अर्थ की भिन्नता देखी तब उसे 'लाट' अनुप्रास कह दिया। .... नामकरण करने के भी क्या अद्भुत आधार हैं? आनंद आता है सोच-सोचकर!
वैसे ही ... हम जब एक शब्द में एकाधिक अर्थ पाए ... तब तक उसे श्लेष कहते हैं। और ... जब वाक्य में एकाधिक अर्थ पायें वह तब भी श्लेष ही रहता है।
वैसे इस वर्गीकरण का कोई विशेष महत्व नहीं है, फिर भी हम सही-सही श्लेष को पहचान सकें, बस हेतु ही इसे बाँट कर समझ रहे हैं। इसका वर्गीकरण इस तरह कर सकते हैं :
[1] शब्द श्लेष
[2] युग्म श्लेष/ पद श्लेष
[3] वाक्य श्लेष
........... तीनों-चारों में है अर्थ की ही श्लिष्टता।
यहाँ कुंतल कुंडल के साथ मिलकर अलंकारों पुंज बन गया है।
न केवल अनुप्रासों की चकाचौंध यहाँ पर है, अपितु अर्थ अलंकारों की गूँज भी यहाँ है। ....अलंकारों का ऐसा आनंद बहुत कम देखने को मिलता है।
साधुवाद।
*(केशों के मध्य से कुण्डल गालों को छू रहे हैं)
जवाब देंहटाएंअतुल तुला पर तौलते , कहें एक से एक
जवाब देंहटाएंमानों भावों का हुआ , अनुरागी अभिषेक |
सूर्यकांत क्या बात है , आये बन उपहार
जवाब देंहटाएंमिले धनी मैं हो गया,दमक उठा घरबार |
सौरभ सुरभित स्नेह से,सफल सकल संसार
जवाब देंहटाएंगुरुवर के दर्शन हुये , सपन सभी साकार |
गौतम तम मन का हरें,जग का हरें दिनेश
जवाब देंहटाएंसतत सत्य की खोज में, विचरें देश विदेश ||
मधु वचनों में शक्ति है , पिघल उठें पाषाण
जवाब देंहटाएंसदा मधुर ही बोलिये, मधुमय हों मन प्राण |
संतन संगत कीजिये , सँवरे रूप - स्वरूप
जवाब देंहटाएंहिय की हलचल शांत हो, बिखरे सुख की धूप |
मन से कीजे वंदना, मनके का क्या काम
जवाब देंहटाएंबाहर हाहाकार है , मन के भीतर राम |
बाँधे कब बँध पात हैं , प्रतिभा और सुवास
जवाब देंहटाएंकिसके रोके रुक सका , है मौसम मधुमास |
सदा वाह ! बढ़िया कहें , सही दिखायें राह
जवाब देंहटाएंनये पथिक को चाहिये,कदम कदम उत्साह |
मथुरा वृन्दावन सदा , मोहन मदन सुहाय
जवाब देंहटाएंप्रेम बँसुरिया कर लिये,जग को रहे रिझाय |
कुंतल कुंडल देखकर , राधा के मुख हास
जवाब देंहटाएंमानों पूछें श्याम जी , कहिये कौन समास
कहिये कौन समास,बात इतनी नहिं हल्की
कुछ तो होगा खास,भाव की गगरी छलकी
सिर्फ नहीं अनुप्रास, यहाँ पर कुंतल कुंडल
राधा के मुख हास , देखकर कुंडल कुंतल ||
छा गए भाव अभिव्यंजना और रागात्मक अभिव्यक्ति में अरुण भाई निगम
जवाब देंहटाएंठेस
दर्शकदीर्घा में खड़े, वृद्ध पिता अरु मात
बेटा मंचासीन हो , बाँट रहा सौगात
वक्रोक्ति / विरोधाभास
बाँटे से बढ़ता गया ,प्रेम विलक्षण तत्व |
दुख बाँटे से घट गया,रहा शेष अपनत्व ||
हास्य-व्यंग्य
छेड़ा था इस दौर में , प्रेम भरा मधु राग
कोयलिया दण्डित हुई , निर्णायक हैं काग
विलक्षण व्यंग्य आज की खान्ग्रेस पर हम तो कहते ही काग रेस हैं जहां काग भगोड़ा प्रधान है .
सौंदर्य
कुंतल कुण्डल छू रहे , गोरे - गोरे गाल
लज्जा खंजन नैन में,सींचे अरुण गुलाल
कान्हा(काना ) ने कुंडल ल्यावो रंग रसिया ,
म्हार हसली रत्न जड़ावो सा ओ बालमा .
नायिका का तो नख शिख वर्रण और श्रृंगार ही होगा ......
"--- श्रीमती जी हिन्दी में एम् ए हैं -हाँ सामान्य घरेलू महिला हैं---यूँही उनकी नज़र एक दोहे पर पडी ..अनायास ही बोल पड़ीं ..
" हैं! ये क्या दोहा है...-- कुंतल तो कुंडल छूएंगे ही यह क्या बात हुई |"ख़ुशी की बात हैं हम तो कहतें हैं डी .लिट होवें भाभी श्री .पर डिग्री का साहित्य से क्या सम्बन्ध हैं
?पारखी दृष्टि से क्या सम्बन्ध है है तो कोई बताये और प्रत्येक सम्बन्ध सौ रुपया पावे .
सौन्दर्य देखने वाले की निगाह में है ,और महिलायें कब खुलकर दूसरी की तारीफ़ करतीं हैं वह तो कहतीं हैं साड़ी बहत स्मार्ट लग रही है यह कभी नहीं
कहेंगी यह साड़ी आप पर बहुत फब रहीं हैं साड़ी को भी आप अपना सौन्दर्य प्रदान कर रहीं हैं मोहतरमा ..तो साहब घुंघराले बाल ,गोर गाल ,लातों में
उलझा मेरा लाल -
घुंघराले बाल ,
गोर गाल ,
गोरी कर गई कमाल ,
गली मचा धमाल ,
मुफ्त में लुटा ज़माल .
दोहे भाव जगत की रचना है जहां कम शब्दों में पूरी बात कहनी होती है एक बिम्ब एक चित्र बनता है ,ओपरेशन टेबिल पर लिटा कर स्केल्पल चलाने की
चीज़ नहीं हैं .
पढ़ो ! अरुण जी के दोहे और भाव गंगा, शब्द गंगा में डुबकी लगाओ .
सभी दोहे कमाल के है...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन.....
शुभकामनाएँ....
:-)
डा. श्याम गुप्त said...
जवाब देंहटाएंभाये छप्पन भोग नहिं ,श्याम कहें नवनीत
लाय सुदामा पोटली, चाँवल भीनी प्रीत |
--- मेरी समझ से ऊपर की बात है---
चाँवल(=चावल )भीनी प्रीति = चावल से भीनी प्रीति ?
आदरणीय, आशय यह है कि राज महल में दास दासियाँ छप्पन भोग परोस गये (मेरे दोहों की तरह)किंतु श्याम जी को भा नहीं रहे हैं (जैसे आपको नहीं भा रहे)श्याम तो नवनीत की जिद कर रहे हैं. ठीक उसी समय मित्र सुदामा (मेरी तरह) आ गये. सुदामा अपनी सामर्थ्य के अनुसार ऐसे चाँवल की पोटली लेकर आ गये जिसमें मित्रता प्रीत भीनी हुई है.
अब यदि छप्पन भोग को नापसंद करने वाले श्याम, नवनीत की जिद नहीं छोड़ते तो मित्रता का अनादर हो रहा है(पोटली धरी की धरी रह जायेगी) और यदि सुदामा के चाँवल खाते हैं तो दास-दासियों का सेवा-भाव आहत होता है(छप्पन भोग बहुत आदर और सम्मान से परोसे गये हैं). श्याम ही निर्णय लें कि उन्हें क्या करना चाहिये जिससे ना तो सुदामा को चोट लगे और ना ही दास दासियों के भाव आहत हों.
अरुण जी आप की ये दास-दासियों वाली टिप्पणी को एक बार और पढ़ने की कृपा करें, मुझे लग रहा है कि आप भावावेश में कुछ अधिक ही कह गये हैं।
जवाब देंहटाएंआप ने डा. श्याम जी को उस कृष्ण की उपमा दे दी जिसने केवल प्रेम ही बाँटा, आप की मर्ज़ी!!!! ख़ुद को सुदामा कहा - आप का बड़प्पन..... पर ये दास दासी किस को संबोधित कर रहे हैं बंधुवर? मैं समझ सकता हूँ आप जैसे धीमन्त व्यक्ति किसी का दिल नहीं दुखाते, परंतु शब्द अपना काम कर रहे हैं,,,,,,,
आये भाये छा गये , भ्राता प्रतुल वशिष्ठ
जवाब देंहटाएंलिखूँ किस तरह सोच में,मैं कमजोर कनिष्ठ |
श्लेष लगा अद्भुत अहा , हुई लेखनी धन्य
तन-मन पुलकित हो गया,हृदय-प्राण चैतन्य |
अलंकार के जौहरी , यमक श्लेष अनुप्रास
चकित अरुण है देखकर,शब्दों का विन्यास |
मोहक मुख मुस्कान के, हैं पर्याय प्रवीण
जवाब देंहटाएंदोहों को सुंदर कहा, पुलकित काया क्षीण |
"वीरू भैया" आपका , बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंमिले सर्वदा अरुण को,निर्मल निश्छल प्यार |
आदरणीय नवीन जी, राजमहल के दृश्य में दास- दासियाँ दोहाकार ही है (यानि मैं एक दोहाकार के रूप में) जिसने सेवा भाव से छप्पन भोग तैयार कर परोसे हैं.सुदामा अरुण निगम है(यानि मैं मित्र के रूप में)जो प्रेम पगे चाँवल लेकर उपस्थित है.श्याम जी से निवेदन करने का प्रयास किया है कि निर्णय ऐसा लें जिससे न दोहाकार आहत हो और न ही मित्र आहत हो.
जवाब देंहटाएंकृपया इसे अन्यथा भाव से न लें.यदि मेरी बात से ठेस पहुँची हो तो मैं हृदय से क्षमाप्रार्थी हूँ.दूर दूर तक मेरे मन में किसी को आहत करने का विचार नहीं है.यदि उचित समझें तो मेरी उपरोक्त टिप्पणी को डिलीट कर दीजियेगा.जो शब्द प्रेम में बाधक बन रहे हैं उन्हें मिटा देना ही उचित होगा.
आ. अरुण जी हम सब समान सहभागी हैं, कार्य=भार अनुरूप समय विशेष पर हमारे क्रिया-कलाप भिन्न हो सकते हैं। आप को या किसी को भी किसी की अनुकम्पा / अनुग्रह की आवश्यकता नहीं। कमेन्ट हटाना या सुधारना मैं आप के विवेक पर छोड़ता हूँ। आप भले मंच पर पहली बार आए हैं परन्तु साहित्य संबन्धित सूझ-बूझ का आप का अपना स्तर है, जिस का मैं पूर्ण सम्मान करता हूँ।
जवाब देंहटाएंप्रतुल वशिष्ठ जी !! विजयेन्द्र भाई !! नवीन जी , डा श्याम जी गुप्त !! आपके कमेण्ट कमाल के हैं और इस पोस्ट के वैभव में आपके बयानो ने अभिबृद्धि ही की है !! यह साहित्य की महती आवक़्श्यकता है -इस मंच को नमन !! एक अच्छी खासी साहित्यिक गोष्ठी दर्ज़ हो गई इन पन्नों पर जो कभी भी पढी जा सकती है -- बाकी अरुण निगम साहब आपके दोहों से अभिभूत हूँ !! बेमिस्ल दोहे कहे आपने बेमिस्ल यकीनन !! इनकी प्रशंसा यदि शब्द बद्ध की जा सकती हो तो कोई करें अन्यथा यह मेरे लिये शब्दातीत है बहुत बहुत बधाई आपको इन दोहों के लिये -- रचना पर तब्सरे ज़रूरी भी है मुख्तलिफ कारणों से -- एक शेर यहाँ कहना उचित है --
जवाब देंहटाएंमुझे तंज़ो मलामत की बड़ी दरकार यूँ भी है
अना को सान भी तो चाहिये शमशीर होने तक --- मयंक
भाई अरुण जी सभी दोहे उन्नत भावों से परिपूर्ण हैं...
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया पढ़कर...
इस शानदार साहित्यिक आयोजन के लिए सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय नवीन भाई जी...